आपने कई फिल्मों में ये डायलॉग तो जरूर सुना होगा कि 'साइंस ने काफी तरक्की कर ली है' लेकिन यह बात वाकई हकीकत में तब्दील हो चुकी है। क्या आपने कभी सोचा है कि मानव के शरीर से किसी अंग को निकालकर उसे एक सप्ताह तक जिंदा रखा जा सकता है? अगर नहीं तो आप हैरत में पड़ने वाले हैं। जी हां, शोधकर्ताओं ने एक ऐसी नई मशीन बनाई है, जो इंसानों के क्षतिग्रस्त लिवर को रिपेयर कर सकती है और उन्हें सप्ताहभर शरीर से बाहर जिंदा रख सकती है। शोधकर्ताओं की इस खोज से ट्रांसप्लांटेशन के लिए उपबल्ध अंगों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
तकनीक में लोगों की जान बचाने की क्षमता
शोधकर्ताओं के मुताबिक, क्षतिग्रस्त लिवर इस नई तकनीक के समर्थन से कई दिनों तक सही तरीके से काम कर सकता है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक में लिवर रोगों और कुछ प्रकार के कैंसर से जूझ रहे मरीजों की जिंदगियों को बचाने की क्षमता है। इस शोध में स्विट्जरलैंड के ETH ज्यूरिख के शोधकर्ता भी शामिल थे।
कैसे करता है अंगों की मदद
इस उपकरण के बारे में जर्नल नेचर बायोटेक्नोलॉजी में विस्तार से बताया गया है। यह एक प्रकार का कॉम्पलेक्स परफ्यूजन सिस्टम है, जो लिवर के सभी कार्यों की नकल कर अंगों को समर्थन करता है।
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4 साल में तैयार की गई तकनीक
अध्ययन के मुताबिक, सर्जन, बायोलॉजिस्ट और इंजीनियर के एक समूह द्वारा चार साल की अवधि में विकसित किए गए इस अनूठे परफ्यूजन सिस्टम की सफलता ने ट्रांसप्लांटेशन में कई नए तरीकों के लिए रास्ता तैयार किया है। ETH ज्यूरिख के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक पियरी-एलाविन क्लैवीन ने बताया कि इसके साथ ही इस नई तकनीक ने लिवर उपलब्ध न हो पाने के कारण कैंसर की दवाईयों के सेवन पर निर्भर मरीजों को भी एक नई राह दिखाई है।
पहले केवल 12 घंटे तक रखा जा सकता था लिवर को जिंदा
अध्ययन के मुताबिक, जब 2015 में ये प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तब वैज्ञानिकों ने कहा था कि लिवर को केवल 12 घंटों के लिए ही मशीन में रखा जा सकता है। लेकिन इस नई तकनीक के इजात होने के बाद वे खराब अवस्था में पहुंच चुके लिवर को दुरुस्त बनाने के लिए सात दिनों तक अपने पास रख सकते हैं। इस नई तकनीक के साथ वे
- लिवर में मौजूद पुरानी चोटों को ठीक कर सकते हैं।
- लिवर में जमा फैट को साफ कर सकते हैं।
- लिवर के एक हिस्से में फिर से सुधार कर सकते हैं।
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क्या थी सबसे बड़ी चुनौती
ETH ज्यूरिख के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक फिलिप रूडॉफ वोन रोहर का कहना है कि हमारे प्रोजेक्ट के शुरुआती चरण में सबसे बड़ी चुनौती एक आम भाषा का पता लगाने की थी, जो डॉक्टरों और इंजीनियरों के बीच संपर्क को बेहतर बना सके।
वैज्ञानिकों ने दिए प्रमाण
वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के साथ 10 में से छह खराब अवस्था के इंसानी लिवरों को दिखाया, जिन्हें यूरोप के सभी अस्पतालों ने ट्रांसप्लांट करने से मना कर दिया था। लेकिन इस नई तकनीक के साथ उन्होंने एक सप्ताह के भीतर लिवर को फिर से काम करने के लिए तैयार किया।
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