डिप्रेशन के साथ-साथ डिमेंशिया के खतरे को भी बढ़ा सकती है नकारात्‍मक सोच, शोध में हुआ खुलासा

Negative Thoughts And Dementia: नई रिसर्च में पाया गया है कि हमेशा चिंतित रहना और नकारात्‍मक सोचना डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है। 

Sheetal Bisht
Written by: Sheetal BishtUpdated at: Jun 09, 2020 10:13 IST
डिप्रेशन के साथ-साथ डिमेंशिया के खतरे को भी बढ़ा सकती है नकारात्‍मक सोच, शोध में हुआ खुलासा

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हम में से अधिकांश लोग भविष्‍य की चिंता में खोए रहते हैं, जिसके चलते हमारे मन में कई नकारात्‍मक विचार भी आते हैं। लेकिन क्‍या आप जानते हैं, आपकी नकारात्‍मक सोच आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक है? जी हां, नकारात्‍मक सोच से आपके लिए डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा हम नई यह नई रिसर्च कहती है कि अगर आपके मन में भी अक्‍सर नकारात्मक विचार आते हैं, तो नए शोध के अनुसार, आपकी नकारात्मक सोच मनोभ्रंश या डिमेंशिया होने की संभावनाओं को बढ़ा सकती है। देखा जाए, तो मानव स्‍वाभाव ही ऐसा है, कि हम कुछ अच्‍छा तो कुछ बुरा भी सोचते हैं। लेकिन हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम अच्‍छा सोचें, क्‍योंकि अच्‍छा सोचने से आप स्‍वस्‍थ रहेंगे और सभी चीजें भी सही होंगी। 

नकारात्‍मक सोच और डिमेंशिया के बीच संबंध 

अल्जाइमर एंड डिमेंशिया जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि लगातार नकारात्मक सोच पैटर्न में हमारे दिमाग को उलझाए रखती है, जिससे कि हम लगातार एक ही चीज या खराब चीजों के बारे में सोचते हैं। इस तरह हमारा उलझे हुए दिमाग के कारण संज्ञानात्मक गिरावट हो सकती है। 

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55 वर्ष से अधिक आयु के 292 लोगों पर हुआ अध्‍ययन 

इस अध्‍ययन को शोधकर्ताओं की टीम ने 55 वर्ष से अधिक आयु के 292 लोगों का अध्ययन करके शुरू किया। जिसमें दो वर्षों तक उन्‍हें फॉलो किया गया, अध्ययन अवधि के दौरान प्रतिभागियों ने बताया कि वे आमतौर पर नकारात्मक अनुभवों के बारे में कैसे सोचते हैं। अध्ययन ने उनके अतीत के बारे में अफवाह और भविष्य के बारे में चिंता करने जैसे RNT यानि रिपिटेड नेगेटिव थिंकिंग (बार-बार नकारात्मक सोच) पैटर्न पर ध्यान केंद्रित किया।

संज्ञानात्मक कार्य पर नकारात्मक सोच के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने स्मृति, ध्यान, अनुभूति और भाषा को मापा। अध्ययन ने ताऊ और एमिलॉयड (दो मस्तिष्‍क प्रोटीन) की जमा राशि को मापने के लिए पीईटी ब्रेन स्कैन का भी अध्ययन किया। इन दो प्रोटीनों को सबसे सामान्य प्रकार के डिमेंशिया, अल्जाइमर रोग का कारण माना जाता है, जब वे मस्तिष्क में निर्माण करते हैं।

 repetitive negative thinking increase risk of dementia

अध्‍ययन के निष्‍कर्ष क्‍या रहे?

अध्‍ययन के निष्‍कर्ष में शोधकर्ताओं ने पाया कि खराब सोच या नकारात्‍मक सोच का पैर्टन डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से अध्ययन के प्रमुख लेखक, नताली मार्केंट ने कहा: "यहां, हमने पाया कि कुछ सोच पैटर्न अवसाद और चिंता में फंस गए हैं, वहीं एक अंतर्निहित कारण हो सकता है कि उन विकारों वाले लोगों में डिमेंशिया विकसित होने की अधिक संभावना है।" इससे पहले हुए एक अध्‍ययन में यह भी पाया गया था कि नकारात्‍मक सोच डिप्रेशन का कारण बन सकती है।  

उन्होंने यह भी पता लगाया कि RNT बाद के संज्ञानात्मक गिरावट के साथ-साथ अल्जाइमर से जुड़े हानिकारक मस्तिष्क प्रोटीन के चित्रण से जुड़ा हुआ है। जो लोग नकारात्मक सोच पैटर्न के थे, उनके मस्तिष्क में अधिक एमिलॉयड और ताऊ जमा होने का उच्च जोखिम था। रिसर्च में प्रतिभागियों को पहले से ही अवसाद और चिंता के लक्षणों के विकास की एक उच्च संभावना थी। 

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डिप्रेशन और चिंता का डिमेंशिया से लिंक 

डिप्रेशन और चिंता बाद के संज्ञानात्मक गिरावट के साथ जुड़े हुए हैं। ये मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां एमिलॉयड या ताऊ को सीधे प्रभावित नहीं करती हैं। इससे पता चलता है कि विशेष रूप से बार-बार नकारात्‍मक सोच पैर्टन इसका मुख्य कारण हो सकता है कि डिप्रेशन और चिंता डिमेंशिया के जोखिम में योगदान करती हैं।

 dementia Rsk

शोधकर्ताओं ने पाया है कि दोहराव वाली नकारात्मक सोच वास्तव में अल्जाइमर के जोखिम में योगदान कर सकती है। इतना ही नहीं, नकारात्मक सोच पैटर्न द्वारा बनाया गया तनाव हाई ब्‍लड प्रेशर जैसे स्वास्थ्य के मुद्दों को भी आमंत्रित करता है। 

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