AIIMS: हार्ट अटैक आने पर पेशेंट का घर पर इलाज करने जाएंगे एम्‍स के डॉक्‍टर-नर्स!

'मिशन डेल्ही' (दिल्ली इमरजेंसी लाइफ हार्ट-अटैक इनिशिएटिव) के तहत, मोटरसाइकिल से चलने वाले प्रशिक्षित नर्स तुरंत पहुंचकर ट्रीटमेंट देते हैं।
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AIIMS: हार्ट अटैक आने पर पेशेंट का घर पर इलाज करने जाएंगे एम्‍स के डॉक्‍टर-नर्स!

एम्स की 5 किलोमीटर की परिधि में रहने वाले लोगों को अब कभी भी हार्ट अटैक या सीने में दर्द होने की स्थिति में आपातकालीन मोबाइल चिकित्सा सेवा की मदद मिल सकती है। यह सुविधा, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS)और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक संयुक्त पहल है, जो हार्ट अटैक जैसी गंभीर समस्या में आपातकालीन मदद दे सकती है। इस पहल को अप्रैल में शुरू किया गया था और पहले ये सेवा 3 किमी के दायरे में ही उपलब्ध थी। पर अब ये दायरा बढ़ा दिया गया है और इससे अब एम्स के आसपास के 5 किलोमीटर में रहने वाले लोगों को इमरजेंसी सुविधाएं उपलब्ध हो पाएंगी। आइए जानते हैं इस सुविधा के बारे में विस्तार से।

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क्या है मोबाइल इमरजेंसी केयर?

'मिशन डेल्ही' (दिल्ली इमरजेंसी लाइफ हार्ट-अटैक इनिशिएटिव) के तहत, मोटरसाइकिल से चलने वाले प्रशिक्षित पैरामेडिक नर्सों की एक जोड़ी हार्ट अटैक के मरीजों के पास तुरंत पहुंचकर उन्हें ट्रीटमेंट देती है।इस पहल को अब तक 44 मामले मिल चुके हैं। एम्स के एक वैज्ञानिक डॉ. चांदनी सुवर्णा की मानें तो, ये परियोजना अब एम्स, नई दिल्ली के आसपास 78 वर्ग किलोमीटर तक विस्तारित हो गई है और अब राष्ट्रीय राजधानी में 20-25 लाख की आबादी को हार्ट अटैक के वक्त ये आपातकालीन मदद मिल पाएगी।

कैसे करें इस सुविधा का इस्तेमाल

  • -मिशन दिल्ली के टोल-फ्री आपातकालीन हेल्पलाइन नंबरों (1800111044 और 14430) पर कॉल करके 5 किलोमीटर में रहने वाला कोई भी व्यक्ति इस सेवा का लाभ उठा सकता है। इस नंबर पर आप कभी भी कॉल कर सकते हैं।
  • -कॉल करने के बाद मोबाइल मेडिकल नर्स टीम को रोगी की जांच के लिए तुरंत भेज दिया जाता है। 
  • -ये नर्स मरीज की जांच करके उन्हें आवश्यक दवा और ट्रीटमेंट प्रदान करते हैं। 
  • - एम्स मोबाइल मेडिकल नर्स टीम को सीपीआर, इमरजेंसी किट और ईसीजी आदि प्रदान करती है।
  • - मामला गंभीर होने पर कैट्स यानी कि (Centralized Ambulance Trauma Services)एम्बुलेंस आ जाती है और रोगी को आगे के उपचार के लिए अस्पताल ले जाती है।
  • -यहां तक कि जब मरीज अस्पताल के रास्ते में होता है, तो एम्स के नियंत्रण केंद्र के डॉक्टर उपचार के दौरान अन्य नर्सों से प्राप्त आंकड़ों का मूल्यांकन करते रहते हैं ताकि मरीज का अच्छे से अच्छा और बेहतर इलाज किया जा सके।

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मोबाइल इमरजेंसी केयर से जुड़ी अन्य बातें-

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)ने इस परियोजना के लिए CATS (सेंट्रलाइज्ड एम्बुलेंस ट्रॉमा सर्विसेज) के साथ एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। बाइक-एंबुलेंस और प्रशिक्षित नर्सों के साथ, मिशन दिल्ली बहुत तेजी से समय पर पहुंचकर हार्ट-अटैक के मरीज का उपचार करने में कारगार है। शहर में उच्च घनत्व वाले यातायात की स्थिति को देखते हुए जहां फोर व्हीलर एम्बुलेंस पहुंच नहीं पाती वहां ये मोबाइल इमरजेंसी केयर सुविधा तुरंत पहुंच सकती है।

एसटीईएमआई से पीड़ित मरीजों के लिए है कारगार (STEMI Heart Attack Patients)

एसटी-सेगमेंट एलिवेशन मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (एसटीईएमआई) दिल का दौरा एक तीव्र, उच्च जोखिम, समय के प्रति संवेदनशील और जीवन के लिए खतरनाक बीमारी है। एसटीईएमआई हार्ट अटैक रोगी के लिए शुरुआती 90 मिनट काफी कीमती होते हैं। इस 90 मिनट के भीतर इलाज शुरू करने और अस्पताल पहुंचने के 30 मिनट के भीतर रोगी को क्लॉट बस्टर थेरेपी प्रदान करना अत्यंत जरूरी हो जाता है। अस्पताल पहुंचने और क्लॉट बस्टर थेरेपी की शुरुआत में देरी स्टेमी हार्ट अटैक के मरीजों में होने वाली मौतों का प्रमुख कारणों में से एक है।

देश के अन्य हिस्सों में भी होगी शुरुआत

एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया के अनुसार, देश के दूर दराज के क्षेत्रों में भी इस सुविधा को शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन विशेष रूप से ये उन लोगों के लिए ही है जो दिल की परेशानी से पीड़ित हैं। गुलेरिया कहते हैं कि इस पहल के जरीए हमारी कोशिश 10 मिनट के भीतर मरीजों तक पहुंचने की है। उन्होंने कहा ''दिल एक कमरे की तरह है, जो पूरे शरीर में रक्त पंप करता है। रक्त को शरीर में पंप करने से पहले, इसे तीन पाइपों (कोरोनरी धमनियों) के माध्यम से हृदय की दीवारों पर पंप किया जाता है। अगर इनमें से किसी भी पाइप में क्लॉटिंग हो जाए, तो हृदय के उस हिस्से के टिशूज मर जाते हैं। रक्त के प्रवाह को रोकने वाले थक्के को हटाना महत्वपूर्ण है। ऐसे में अगर हृदय की दीवारें क्षतिग्रस्त होती हैं, तो उनकी मरम्मत नहीं की जा सकती है। क्लॉट बस्टर्स एंजियोप्लास्टी के लगभग बराबर हैं।

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संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में की तुलना में भारतीय आबादी में हृदय से जुड़ी परेशानी में औसत आयु 53 से 55 वर्ष में ही हो जाती है।आनुवांशिक प्रवृति इसका एक महत्वपूर्ण कारण है लेकिन, भारत में धूम्रपान और तम्बाकू भी इसमें बड़ें पैमाने पर योगदान देती है। दुनिया में तम्बाकू चबाने वाले नब्बे फीसदी प्रचलन भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में हैं। वहीं डॉक्टरों की मानें, तो युवाओं में हृदय से जुड़ी ज्यादातर परेशानियों का कारण तम्बाकू का सेवन है। 

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