आधुनिक जीवनशैली में खानपान की गलत आदतों और अनियमित दिनचर्या की वजह से भारत में लिवर सिरोसिस की समस्या तेजी से फैल रही है। आमतौर पर लिवर से संबंधित तीन समस्याएं सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं-फैटी लिवर, हेपेटाइटिस और सिरोसिस। आज हम बात कर रहे हैं लिवर सिरोसिस। इसमें में लिवर से संबंधित कई समस्याओं के लक्षण एक साथ देखने को मिलते हैं। इसमें लिवर के टिशूज क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।
आमतौर पर ज्यादा एल्कोहॉल के सेवन, खानपान में वसा युक्त चीजों, नॉनवेज का अत्यधिक मात्रा में सेवन और दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से भी यह समस्या हो जाती है। इसके अलावा लिवर सिरोसिस का एक और प्रकार होता है, जिसे नैश सिरोसिस यानी नॉन एल्कोहोलिक सिएटो हेपेटाइटिस कहा जाता है, जो एल्कोहॉल का सेवन नहीं करने वालों को भी हो जाता है।
सिरोसिस की तीन अवस्थाएं
- सिरोसिस की इस अवस्था में अनावश्यक थकान, वजन घटना और पाचन संबंधी गडबडियां देखने को मिलती हैं।
- दूसरी अवस्था में चक्कर और उल्टियां आना, भोजन में अरुचि और बुखार जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।
- तीसरी और अंतिम अवस्था में उल्टियों के साथ खून आना, बेहोशी और मामूली सी चोट लगने पर ब्लीडिंग का न रुकना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इसमें दवाओं का कोई असर नहीं होता और ट्रांस्प्लांट ही इसका एकमात्र उपचार है।
कैसे होता है लिवर ट्रांस्प्लांट
इसकी सामान्य प्रक्रिया यह है कि जिस व्यक्ति को लिवर प्रत्यारोपण की जरूरत होती है उसके परिवार के किसी सदस्य (माता/पिता, पति/पत्नी के अलावा सगे भाई/बहन) द्वारा लिवर डोनेट किया जा सकता है। इसके लिए मरीज के परिजनों को स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन काम करने वाली ट्रांस्प्लांट ऑथराइजेशन कमेटी से अनुमति लेनी पडती है। यह संस्था डोनर के स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक और सामाजिक स्थितियों की गहन छानबीन और उससे जुडे करीबी लोगों से सहमति लेने के बाद ही उसे अंग दान की अनुमति देती है।
लिवर के संबंध में सबसे अच्छी बात यह है कि अगर इसे किसी जीवित व्यक्ति के शरीर से काटकर निकाल भी दिया जाए तो समय के साथ यह विकसित होकर अपने सामान्य आकार में वापस लौट आता है। इससे डोनर के स्वास्थ्य पर भी कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इसके अलावा अगर किसी मृत व्यक्ति के परिवार वाले उसके देहदान की इजाजत दें तो उसके निधन के छह घंटे के भीतर उसके शरीर से लिवर निकाल कर उसका सफल प्रत्यारोपण किया जा सकता है।
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इसमें मरीज के लिवर के खराब हो चुके हिस्से को सर्जरी द्वारा हटाकर वहां डोनर के शरीर से स्वस्थ लिवर निकालकर स्टिचिंग के जरिये प्रत्यारोपित किया जाता है। इसके लिए बेहद बारीक िकस्म के धागे का इस्तेमाल होता है, जिसे प्रोलिन कहा जाता है। लंबे समय के बाद ये धागे शरीर के भीतर घुल कर नष्ट हो जाते हैं और इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।
ट्रांस्प्लांट के बाद मरीज का शरीर नए लिवर को स्वीकार नहीं पाता, इसलिए उसे टैक्रोलिनस ग्रुप की दवाएं दी जाती हैं, ताकि मरीज के शरीर के साथ प्रत्यारोपित लिवर अच्छी तरह एडजस्ट कर जाए। सर्जरी के बाद मरीज को साल में एक बार लिवर फंक्शन टेस्ट जरूर करवाना चाहिए।
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