
मानव शरीर में समय समय पर बदलाव होते रहते हैं। जैसे कि हमारे बाल, नाखून इत्यादि बढ़ते हैं ठीक वैसे ही हमारी त्वचा में भी परिवर्तन होता है। जब हमारे शरीर में पूरी नयी त्वचा बनती है तो उस दौरान शरीर के एक हिस्से में नई त्वचा 3-4 दिन में ही बदल जाती है। यानी सोरायसिस के दौरान त्वचा इतनी कमजोर और हल्की पड़ जाती है कि यह पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती है। इस कारण सोरायसिस की जगह पर लाल चकते और रक्त की बूंदे दिखाई पड़ने लगती है। हालांकि सोरायसिस कोई छूत की बीमारी नहीं हैं और ये ज्यादातर पौष्टिक आहार ना लेने की वजह से होती है।
यदि आपके खानपान में पौष्टिक तत्वों की कमी है और आप घी-तेल भी बिल्कुल ना के बराबर खाते हैं तो आपको यह रोग हो सकता है। सोरायसिस त्वचा पर मॉश्चराइजर ना लगाने, त्वचा को चिकनाहट और पर्याप्त नमी ना मिलने के कारण भी होता है। त्वचा की देखभाल ना करना, बहुत अधिक तेज धूप में बाहर रहना, सुबह की हल्की धूप का सेवन न कर पाना इत्यादि कारणों से सोरायसिस की समस्या होने लगती हैं। सोरायसिस के उपचार के लिए कुछ दवाईयां का सेवन किया जा सकता है लेकिन इससे निजात पाने के लिए आपको त्वचा की सही तरह से देखभाल करना जरूरी है।
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सोरायसिस का मेडिकल उपचार
ऑइन्ट्मेंट या क्रीम
जिन दवाओं को आप अपनी स्किन पर रब करते हैं उन्हें टॉपिकल्स कहते हैं, आमतौर पर हल्के या शुरुआती सोरायसिस के उपचार के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। स्नान या शॉवर के बाद आप पेट्रोलियम जैली या गाढ़ी क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन आपका डॉक्टर ऐसी स्थिति में आपकेा कुछ स्ट्रॉंग दवाओं का इस्तेमाल करने की भी सलाह दे सकते हैं। इससे आपके सोरायसिस को सही होने के साथ ही सूजन केा कम करने और त्वचा कोशिकाओं की वृद्धि को धीमा होने में मदद मिलेगी।
लेजर थेरेपी
इस उपचार में, एक डॉक्टर प्रकाश के एक केंद्रित बीम के साथ सोरायसिस को लक्षित करते हैं। इस क्षेत्र के आसपास की स्वस्थ त्वचा को नुकसान नहीं पहुँचाया जाता है और अन्य प्रकार के साथ कई यूवी किरणों के संपर्क में नहीं आता है। 4 से 5 सप्ताह में सत्रों की एक श्रृंखला के बाद पतले पतले। आपके लक्षण कुछ समय के लिए दूर हो सकते हैं। अधिकांश लोगों के लिए यह प्रक्रिया दर्द रहित होती है, हालांकि कुछ कहते हैं कि उन्हें हल्की लालिमा और छाले हो जाते हैं।
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सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज
- इस रोग में सेल्फ मेडिकेशन से दूर रहना चाहिए। किसी अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श लेने के बाद ही उपचार शुरू करें।
- पानी में साबुत अखरोट उबालकर और इसे हल्का ठंडाकर त्वचा के प्रभावित अंगों पर लगाएं। प्रभावित अंग को ताजे केले के पत्ते से ढक दें।
- 15 से 20 तिल के दाने एक गिलास पानी में भिगोकर पूरी रात रखें। सुबह खाली पेट इनका सेवन करें।
- पांच से छह महीने तक प्रात: 1 से 2 कप करेले का रस पिएं। यदि यह रस अत्यधिक कड़वा लगे, तो एक बड़ी चम्मच नींबू का रस इसमें डाल सकते हैं।
- खीरे का रस, गुलाब जल व नींबू के रस को समान मात्रा में मिलाएं। त्वचा को धोने के बाद इसे रातभर के लिए लगाएं।
- आधा चम्मच हल्दी चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार लें।
- घृतकुमारी का ताजा गूदा त्वचा पर लगाया जा सकता है या इस गूदे का प्रतिदिन एक चम्मच दिन में दो बार सेवन करें।
- यदि आपको उपर्युक्त उपचार विधियों से राहत नहीं मिलती है, तो आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह अवश्य लें। आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से सर्वप्रथम रक्त व टिश्यूज की शुद्धि की जाती है। फिर यह पद्धति पाचन तंत्र को मजबूत कर त्वचा के टिश्यूज को सशक्त करती है। सुबह टहलें और नियमित रूप से पेट साफ रखें।
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