30-40 साल की उम्र में बढ़ रहा है ब्रुगाडा सिंड्रोम का खतरा, जानें क्या है ये

30-40 साल की उम्र में दिल की बीमारियों के बारे में पहले नहीं सोचा जाता था। मगर आजकल अस्वस्थ खान-पान और अनियमित जीवनशैली के कारण युवाओं में भी दिल की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
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30-40 साल की उम्र में बढ़ रहा है ब्रुगाडा सिंड्रोम का खतरा, जानें क्या है ये


30-40 साल की उम्र में दिल की बीमारियों के बारे में पहले नहीं सोचा जाता था। मगर आजकल अस्वस्थ खान-पान और अनियमित जीवनशैली के कारण युवाओं में भी दिल की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। ब्रुगाडा सिंड्रोम भी दिल से जुड़ी एक ऐसी ही बीमारी है, जिसके संकेत 30-40 साल की उम्र से ही दिखने शुरू हो जाते हैं। कई बार इसके लक्षण बचपन में भी दिखाई देने लगते हैं। इसके लक्षणों में शामिल हैं, बेहोश होना, दिल का दौरा, हार्ट ब्लॉक आदि। इस सिंड्रोम के कारण कभी-कभी मरीज का दिल जोर से धड़कने लगता है।

क्या है ब्रुगाडा सिंड्रोम

ब्रुगाडा सिंड्रोम असामान्‍य लेकिन दिल के लिए एक गंभीर स्थिति है। इस समस्‍या में अक्‍सर बेहोशी या दिल की धड़कन  असामान्‍य रूप से तेज हो जाती है। यह समस्‍या तब होती है जब दिल की विद्युतीय गतिविधि बाधित हो जाती है। आमतौर पर ये बीमारी अनुवांशिक होती है लेकिन कई बार अनियमित जीवनशैली भी इसकी वजह बन सकती है। कई बार ये रोग खतरनाक और जानलेवा भी हो सकता है।

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कितना खतरनाक है ब्रुगाडा सिंड्रोम

ब्रुगाडा सिंड्रोम युवाओं में अचानक हृदय संबंधी मौत का कारण बनता है। आमतौर पर अचानक दिल की धड़कन का घटना या बढ़ना इस खतरनाक सिंड्रोम का एक प्रमुख कारण होती है। कुछ मामलों में शिशुओं की अचानक मृत्‍यु का कारण भी ये सिंड्रोम बनता है। इसके अलावा कम उम्र के बच्चों की अचनाक मौत का भी ये एक प्रमुख कारण है। अफसोस की बात ये है कि ब्रूगाडा सिंड्रोम से होने वाली ज्‍यादातर मौतें बिना किसी चेतावनी या संकेत के होती हैं।

पुरुषों को होता है ज्यादा खतरा

ब्रूगाडा सिंड्रोम आमतौर पर युवा और मध्‍यम आयु वर्ग के पुरुषों को प्रभावित करता है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इस सिंड्रोम से प्रभावित होने का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि इस सिंड्रोम में मेल हार्मोन यानी टेस्टोस्टेरॉन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

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ब्रुगाडा सिंड्रोम की जांच

आमतौर पर दिल की धड़कन के घटने या बढ़ने पर आपको तुरंत किसी अनुभवी चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। हृदय रोग विशेषज्ञ कुछ लक्षणों के द्वारा इसका अनुमान लगाते हैं। इसके बाद वो जांच के लिए ईसीजी और जेनेटिक परीक्षण करते हैं। ईसीजी में दिल की धड़कन और दिल की विद्युत गतिविधि को रिकॉर्ड किया जाता है। जबकि जेनेटिक परीक्षण में दोषपूर्ण SCN5A जीन की पहचान की जाती है।

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