कहीं इम्यून सिस्टम पर बोझ न बन जाए आपकी सफाई की आदत

सफाई की आदत यकीनन एक अच्छी आदत है। स्वच्छता का ध्यान रखकर व्यक्ति कई गंभीर बीमारियों से खुद को सुरक्षित रख सकता है। लेकिन कहते हैं ना कि हर एक्शन का समान और विपरीत रिएक्शन होता है। 
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कहीं इम्यून सिस्टम पर बोझ न बन जाए आपकी सफाई की आदत

आज के समय में हर व्यक्ति स्वच्छता को लेकर बेहद सजग है। यहां तक व्यक्ति अपने साबुन से लेकर होम क्लीनर तक हर किसी में एंटी-बैक्टीरियल गुणों को ही ढूंढता है। माना जाता है कि स्वच्छता के जरिए व्यक्ति को खुद को स्वस्थ बनाए रख सकता है। यह सच है लेकिन सिर्फ एक हद तक। किसी भी चीज की अति हमेशा क्षति का ही कारण बनती है और यही आपकी सफाई की आदत के साथ भी होता है। बहुत अधिक स्वच्छता इम्युन सिस्टम को कमजोर बना देती है। इतना ही नहीं, इसके कारण व्यक्ति को अस्थमा और एलर्जी की भी शिकायत हो सकती है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि आप स्वच्छता की परिकल्पना पर दोबारा विचार करें। तो चलिए आज हम आपको बहुत अधिक सफाई से होने वाले कुछ गंभीर नुकसानों के बारे में बता रहे हैं-

शरीर के लिए जरूरी

आपको शायद जानकर हैरानी हो लेकिन हर तरह के माइक्रोब्स शरीर के लिए हानिकारक या बीमारी पैदा करने वाले नहीं होते। कुछ बैक्टीरिया ऐसे होते हैं, जो वास्तव में शरीर के लिए बेहद आवश्यक हैं। यह माइक्रोब्स हमारी आंत में विटामिन बनाते हैं, हानिकारक माइक्रोब्स से हमारी रक्षा करते हैं, भोजन को पचाने में मदद करते हैं। यह गुड बैक्टीरिया शरीर के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बेहद जरूरी है, क्योंकि यह कार्बनिक अपशिष्ट को विघटित करने के साथ-साथ ऑक्सीजन को बनाने और हवा में नाइट्रोजन के स्तर को ठीक करने में सहायक होते हैं।

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कमजोर इम्युन सिस्टम

ब्रिटिश महामारी विज्ञानी डेविड स्ट्रेचन के अनुसार, बचपन के दौरान व्यक्ति को संक्रमण के संपर्क में अवश्य आना चाहिए क्योंकि इससे आने वाले जीवन में व्यक्ति को एलर्जी से अच्छा डिफेंस मिलता है और उसका इम्युन सिस्टम मजबूत बनता है। विज्ञानी डेविड स्ट्रेचन ने ही साल 1989 में सबसे पहले इस स्वच्छता परिकल्पना की व्याख्या की थी। लेकिन आज के समय में व्यक्ति गुड माइक्रोब्स से भी दूरी बनाने लगा है, जिसके कारण न सिर्फ उसका इम्युन सिस्टम कमजोर हो रहा है, बल्कि कई ऑटोइम्युन बीमारियों की संख्या भी लोगों में बढ़ती जा रही हैं। जबकि माइक्रोब्स की कुछ विशेष प्रजातियां मोटापा, मधुमेह और यहां तक कि अवसाद को रोकने में भी कारगर है।

ऐसे होती है बीमारी

बैक्टीरिया के सीमित संपर्क में आने से ऑटोइम्यून विकार हो सकते हैं। दरअसल, जब व्यक्ति बैक्टीरिया के संपर्क में सीमित रूप से आता है तो उसके इम्युन सिस्टम में टी सेल्स की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। टी कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली में कई भूमिकाएं निभाती हैं- अन्य चीजों के बीच, वे हानिकारक वायरस और बैक्टीरिया को पहचानते हैं और समाप्त करते हैं। जब शरीर बैक्टीरिया के संपर्क में नहीं आता तो टी सेल्स गुड और बैड बैक्टीरिया के बीच अंतर नहीं कर पाते और अंततः शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लग जाती है।

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करें बैलेंस

यह सच है कि स्वस्थ जीवन के लिए बैक्टीरिया का एक्सपोजर होना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम साफ-सफाई पर ध्यान देना या हाथ धोना आदि छोड़ दें। बस जरूरत है कि आप बेसिक साफ-सफाई और बैक्टीरिया के बीच संतुलन बनाना शुरू करें। बैक्टीरिया के प्रति सही एक्सपोजर यकीनन कई ऑटोइम्यून विकारों को आसानी से रोक सकता है।

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