कल्पना कीजिए कि आपका मन गर्मागर्म चाय पीने का है और आपने ठेठ देसी तरीके से इसे फटाफट तैयार भी कर लिया है। समस्या यह है कि कप भी है, चाय भी मगर छलनी के छेद पूरी तरह से चोक होने की वजह से चाय छानी ही नहीं जा सकती। हो गया न मूड खराब। गनीमत है कि छलनी को धोकर-रगड़कर आप साफ कर सकते हैं और चाय का आनंद ले सकते हैं मगर अगर शरीर में मौजूद कुदरती छलनियों में ऐसी कोई दिक्कत आ जाए तो अफसोस अथवा इनके बदले जाने के इंतजार तक दर्द और दवाओं को झेलने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता। नन्ही-नन्ही छलनियों की यह जोड़ी किडनी कहलाती है और इनका काम है शरीर से अवांछित-हानिकारक तत्वों को बाहर निकालकर सही चीजों को शरीर को वापस भेज देना।
अस्वास्थ्यकर जीवनशैली की वजह से आज किडनी फेल्यर के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। यह स्थिति भारत ही नहीं, दुनिया भर में है। राहत की बात यह है कि नवीनतम दवाओं और इलाज के तरीकों से इन्हें काफी हद तक सुलझाया जा रहा है। यहां तक कि मिसमैच्ड किडनी ट्रांसप्लांट तथा उम्रदराज लोगों और एचआईवी से ग्रस्त लोगों में भी प्रत्यारोपण संभव हो चुका है।
क्या हैं कारण
किडनी फेल्यर का एक प्रमुख कारण डायबिटीज के मरीजों की संख्या में भारी इजाफा होना है। हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की छलनियों में संक्रमण (ग्लोमेरुलोनफ्राइटिस), पथरी का बनना और दर्द निवारक दवाओं का अत्यधिक सेवन करना आदि भी इसके कारक हैं।
इलाज के दो विकल्प
जब किडनी खराब हो जाती है, तो इसके इलाज के दो ही विकल्प होते है, ताउम्र डायलिसिस पर रहना या किडनी प्रत्यारोपण कराना। डायलिसिस की प्रक्रिया काफी खर्चीली होती है।
बेहतर है बचाव
- बेहतर तो यही है कि हम गुर्दे की बीमारी से बचें।
- अगर मरीज का ब्लड शुगर ज्यादा है, तो उसको नियंत्रित करें। ग्लाईकोसाइलेटेड हीमोग्लोबिन(एचबीए1सी, जो पिछले तीन महीनों के ब्लड शुगर कंट्रोल की स्थिति को बताता है ) को 6 से 7 प्रतिशत तक रखें।
- ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखें। यानी 120-80 के आसपास रहे।
- किडनी को खराब करने वाली दवाओं से बचें। जैसे दर्द निवारक दवाएं (पेनकिलर्स)।
- अगर किडनी संबंधी कोई तकलीफ हो जाती है, तो शीघ्र ही किडनी रोग विशेषज्ञ (नेफ्रोलॉजिस्ट)से परामर्श लें।
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प्रारंभिक अवस्था के लक्षण
- किडनी फेल्यर के रोगियों की प्रारंभिक अवस्था के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं...
- शरीर में सूजन का होना।
- पेशाब की मात्रा में कमी होना ।
- पेशाब में प्रोटीन या खून का आना। जलन होना।
- पेशाब बार-बार आना।
- भूख की कमी होना और जी मिचलाना।
- शरीर में रक्त की कमी होना और ब्लड प्रेशर का बढ़ा होना।
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कई बार किडनी की बीमारी में उपर्युक्त लक्षण नहीं नजर आते। ऐसे में निम्न कुछ जांचें बीमारी को चिन्हित करती हैं
- खून में यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर का बढ़ना।
- डायबिटीज के रोगियों की पेशाब में माइक्रोएलब्युमिन का होना।
- किडनी के कार्य करने की क्षमता में कमी आना। इस बारे में ‘डीटीपीए रीनल स्कैन’ से पता चल जाता है।
- अल्ट्रासाउंड में किडनी का साइज छोटा हो जाना और पेशाब में रुकावट के कारण किडनी का फूल जाना।
उपरोक्त लक्षणों और जांचों के द्वारा अगर किडनी की बीमारी की आशंका महसूस होती है, तो शीघ्र ही नेफ्रोलॉजिस्ट से सलाह लेनी चाहिए।
इन विकल्पों का करें चयन
जब किडनी पूरी तरह खराब हो जाती हैं, तब इन विकल्पों में से एक का चयन करें...
हीमोडायलिसिस
जिसमें हप्ते में तीन बार मशीन से खून साफ किया जाता है।
पेरीटोनियल डायलिसिस
जिसमें पेट में एक कैथेटर लगा दिया जाता है और उसके द्वारा डायलिसिस फ्लूड को पेट में डाला व निकाला जाता है ।
किडनी ट्रांसप्लांट
इसमें एक नए गुर्दे (जो किसी दानदाता या डोनर के द्वारा दिया जाता है) को मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसके बाद डायलिसिस की जरूरत नहीं पड़ती। आजकल किडनी ट्रांसप्लांट के परिणाम काफी अच्छे हो गए हैं। प्लाज्मा एक्सचेंज, रिटुक्सीमैब, आई जी आई जी आदि विधियों के जरिये दूसरे ब्लड ग्रुप के दानदाता की किडनी भी मरीज को प्रत्यारोपित की जा सकती है। इसे एबीओ इनकम्पेटिबल ट्रांसप्लांट कहते हैं।
एच. आई. वी. से संक्रमित मरीजों में भी किडनी ट्रांसप्लांट के परिणाम अच्छे हैं। किडनी प्रत्यारोपित मरीज कुछ सावधानियां बरतें, तो अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं जैसे समय से दवाओं का सेवन करना। इंफेक्शन से बचाव के साथ समय-समय पर जांचें कराते रहना। इस तरह किडनी रोग हो जाने की स्थिति में भी मरीज एक सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।
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