
सदियों से महिलाओं की आलोचना होती आ रही है और उन्हें पुरूषवर्ग से कम समझा गया है। लेकिन पिछली कई सदी में महिला बास का समर्थन भी हुआ है। आपका प्रमोशन होता है और आपको महिला बॉस के आधीन काम करना पड़ता है। ऐसे में जब लोग आपको बधाइयां देते हैं तो आपको खुशी से ज़्यादा यह चिन्ता होती है कि आप महिला बॉस के आधीन कैसे काम करेंगे। महिला बॉस की महान स्थिति किसी ऐयाश पुरूष की तरह है जो कि अपने अनुसार एक हाट सेक्रेटरी रखता है या बहुत से मज़ाक का शिकार होता है। आइये यह जानने की कोशिश करें कि इस पुरानी सोच ने नया रूप कैसे लिया कि एक महिला बॉस का रूप सभी पुरूषों को डरा देता है। गुड़गांव के एम एन सी में काम करने वाली 26 वर्षीय अदिल चक्रवर्ती का कहना है कि मैंने पुरूष और महिला बास दोनों के साथ काम किया है लेकिन महिला बॉस के साथ काम करने में ज़्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि आपको पता नहीं होता कि वो क्या सोच रही हैं । अगर उनका काम उनके अनुसार नहीं हुआ तो आप अपने आपको किसी कटघरे में खड़ा महसूस करेंगे ।
क्या है वजह महिला बास के रूखेपन की
- महिलाएं पुरूषों की तुलना में अधिक भावुक होती हैं और इसलिए उन्हें काम में और वास्तविक जीवन में सम्पर्क बनाने में समय लग जाता है । उन्हें यह समझाना थोड़ा मुश्किल होता है कि यह बिज़नेस है पर्सनल नहीं है।
- वो महिलाएं जो बोर्डरूम के बाहर बातें नहीं करतीं वो भी एक साथ खाना पसन्द करती हैं लेकिन क्या आपने किसी पुरूष प्रतिद्वंदी को साथ में खाना खाते देखा है।

- पुरूष ज़्यादा काम्पटीटिव होते हैं और इसलिए वो लम्बे समय तक नहीं सोच पाते और अपने पुराने प्रतिद्वंदी पर विश्वास नहीं करते चाहे वो उसी टीम में हों ।
- अच्छा तो यह है लिंग असहमति। लेकिन ऐसा देखा गया है कि पुरूषों की तुलना में महिलाए एक ही समय में कई काम करने में सक्षम हैं और वो असानी से किसी भी समस्या का समाधान निकालने में समर्थ हैं।
महिला बास के व्यवहार पर पुरूषों की राय
कुछ पुरूष कर्मचारियों का मानना है कि वास्तव में महिलाएं पुरूषों की तुलना में अधिक कठोर होती हैं। कुछ पुरूष इस बात से असहमत हैं कि महिलाएं ऐसे मानक स्थापित कर रही हैं जो पुरूषों के लिए सम्भव नहीं है। बल्कि उनका मानना है कि महिलाएं कितना काम और कितने अच्छे से काम करती हैं इस बात से ज़्यादा यह बात महत्व रखती है कि वह अपने काम पर कितना ध्यान दे पाती हैं।
- एक पुरूष इस बात से सन्तुष्ट हो सकता है कि उसने बहुत ज़्यादा या समय पर काम किया है लेकिन एक महिला आपसे शिष्टाचार की भी उम्मीद करेगी।
- पब्लीशिंग हाउस के मार्केटिंग मैनेजर 32 वर्षीय रईज़ मिश्रा एक हास्यजनक घटना को याद करते हैं। उनकी महिला बास किसी भी प्रेज़ेंटेशन के दौरान अपनी नौकरानी से फोन पर बातें करती रहती थी कि उनके बच्चे को कैसे चुप करायें, कैसे सुलाए, कैसे खाना दे । हम सभी ने सोचा कि अब यह बहुत हो गया। वो प्रेज़ेंटेशन पर बिलकुल ध्यान नहीं देती थी और हमलोग अपनी प्रोडक्शन से बहुत नीचे जा चुके थे। इसके बाद भी वो 75 प्रतिशत हमारी गलतियां निकालती थीं।
- क्या महिलाएं मल्टिटास्क हो सकती हैं।
- क्या यह आदतें पुरूषों को डरा सकती हैं। सिन्हा ने दूसरी बात कही कि पुरूषों की तुलना में महिलाएं दोतरफा जीवन जीती हैं। घर पर वह पत्नी और मां होती है। काम पर आते समय उनके दिमाग में यह बातें होती हैं कि उनके बच्चे ने खाना खाया है या नहीं। नौकरानी ने रात के डिनर की तैयारी की है या नहीं।
- अगर घर पर काम करने की जगह कम हुई तो उन्हें प्रज़ेंटेशन का काम दो दिन में करना पड़ेगा।
- हर भूमिका में वो अपने जीवन के दूसरे पहलू पर ज़ोर देती है और दूसरी भूमिका के लिए ताकत जुटाती है।
अगर एक देखा जाए तो चाहे वह 21वीं सदी में रहने वाली भारतीय महिला हो, उसे पुरूषों की तुलना में ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है। अगर महिला कोई टास्कमास्टर नहीं है तो उसे हर समय काम से निकाले जाने का डर रहता है।
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