चीन के वुहान शहर का नाम सुनते ही शरीर में एक सिहरन पैदा हो जाती है। महीनों तक इस शहर से सिर्फ भय और अवसाद पैदा करने वाली खबरें आई हैं, लेकिन अब यहां फिलहाल सब सही है। दरअसल वुहान चीन का वही शहर है, जहां से कोरोनावायरस नामक ये महामारी शुरू हुई। वहीं अब जहां वुहान कोरोना से लड़ाई जीत चुका है, वहीं विश्व के कई और देशों के लिए अभी ये लड़ाई जारी है। अमेरिका, इटली और भारत जैसे देशों में स्थितियां बेहद चिंताजनक बनी हुई है और यहां लगातार संक्रमण के केस और कोरोना मरने वालों की गिनती बढ़ती ही जा रही है। पर फिर भी हमें आस नहीं छोड़नी चाहिए और उन तमाम चीजों को करने की कोशिश करनी चाहिए, जो इसे फैलने से रोके और लोगों की जान बचा सके। ऐसे में हमारे लिए वुहान से ही आती कुछ कहानियां आशा की किरण बन सकती है।
वुहान से लौटे डॉ. आशीष और उनकी पत्नी नेहा की आपबीती
पॉजिटिव इंडिया की इस स्टोरी में आज हम आपको चीन के वुहान से लौटे एक दंपती की आपबीती बताएंगे और जानेंगे कि कैसे वुहान ने इस लड़ाई को लड़ी और कोरोनावायरस से उबर आया। एटा के जलेसर निवासी डॉ. आशीष यादव व उनकी पत्नी नेहा वुहान से भारत लौटे हैं। आशीष वुहान की टैक्सटाइल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। ये दोनों चीन के लॉकडाउन के समय वुहान में ही थे। अपनी आपबीती को बताते हुए आशीष वुहान में बिताए अपने उन दुखद दिनों को याद करते हैं और कहते हैं वो वहां एक महीने से ज्यादा घर में बंद रहे। वुहान में 22 जनवरी को लॉकडाउन हुआ। 31 जनवरी को उनकी भारत आने वाली फ्लाइट थी पर चीन सरकार की एडवायजरी का पालन करना पड़ा और वो वहीं रहें। फिर 27 फरवरी को भारत सरकार द्वारा भेजे गए विशेष विमान से दोनों वापस लौट आए। दोनों पति-पत्नी बताते हैं कि कैसे उन्होंने एक-एक पल दहशत में बिताया, लेकिन धैर्य नहीं खोया। वो दोनों घबराए नहीं और इस तरह सकुशल अपने घर, अपने देश स्वस्थ लौट आए हैं। इन दोनों की तीन बार जांच की गई और रिपोर्ट भी निगेटिव आई है। वहीं आशीष और उनकी पत्नी को भारत आते ही आइटीबीपी (इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस) के शिविर में आइसोलेशन में रखा गया था। 14 मार्च को जलेसर अपने घर गए पर वहां जाकर भी 14 दिन तक वे सेल्फ क्वारंटाइन रहे।
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वुहान इस संकट से कैसे उबरा
ऑनलाइन आर्डर और गेट पर अगले दिन राशन रखवाना
आशीष के मुताबिक भारत भी चीन से कुछ चीजों को सीखकर इस संक्रमण से लड़ सकता है। उन्होंने बताया कि चीन सरकार ने अपने कर्मियों के अलावा सिविल सोसायटी के वालंटियर को भी व्यवस्थाओं में लगा रखा था। राशन और रोजमर्रा की जरूरतों को वहां ऑनलाइन आर्डर करके मंगवाया जाता था। फिर अगले दिन सरकार की ओर से गेट पर राशन रखवा दिया जाता था। इसका भुगतान भी नहीं लिया जाता था। ऐसा जरूर होता कि कभी मनमाफिक वस्तु नहीं मिल पाती, तो वैकल्पिक वस्तु से काम चलाना पड़ता था।
सोशल डिस्टेंसिंग को बड़े कारगार तरीके से फॉलो करें
दिन में दो बार स्वास्थ्य परीक्षण करने टीम आती थी। वह सेनेटाइजर, थर्मामीटर और मास्क जरूर चेक करते थे। इस तरह लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग को बड़े कारगार तरीके से फॉलो किया।
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बाहर से लाए हर सामान की सफाई करके ही अंदर लाएं
आशीष की मानें तो चीन में कोरोना वायरस से बचने के लिए उन्होंने अपनी दिनचर्या पूरी तरह से बदल ली थी। किसी जरूरी काम से बाहर भी जाना पड़ता तो लौटते ही गर्म पानी से कपड़़े धोते और नहाते। सेनेटाइजर का इस्तेमाल वो पल-पल करते रहते। घर के दरवाजे व खिड़की भी बंद रखते थे। इसके साथ ही घर में आने वाली वस्तुओं को बिना साफ किए अंदर न लाएं।
सोर्स : दैनिक जागरण
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