ओरल कैसर का निदान कैसे करें

ओरल कैंसर का पता लगाने की प्रक्रिया एक सामान्य शारीरिक परीक्षण से शुरू होती है। किसी भी प्रकार की असामान्यता के चलते कई बार मुंह की जांच जरूरी हो जाती है। ओरल कैंसर के निदान के कौन-कौन से टेस्‍ट जरूरी होते है जानिए हमारे इस लेख में।
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ओरल कैसर का निदान कैसे करें

मुंह में किसी भी प्रकार का कैंसर मुंह का कैंसर कहलाता है। होठों, जीभ पर या गालों के अंदर की सतह पर, कड़े तालू पर (मुंह के पटल पर आगे की ओर) या मसूड़ों में किसी प्रकार की गांठ कैंसर हो सकती है। वो कैंसर जो मुंह के क्षेत्र में अन्दर की तरफ होता है जैसे कोमल तालू में या गले में होने वाले कैंसर को ओरल कैंसर नहीं माना जाता है। ओरल कैंसर के बारे में यह प्रामाणित तथ्य है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
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ओरल कैसर का निदान

 

  • ओरल कैंसर का पता लगाने की प्रक्रिया एक सामान्य शारीरिक परीक्षण से शुरू होती है। किसी भी प्रकार की असामान्यता के चलते कई बार मुंह की जांच जरूरी हो जाती है। रूटीन चेकअप के लिए शुरुआत में डेंटिस्ट से संपर्क किया जाता है।
  • डॉक्टर के लिए मुंह में किसी भी प्रकार की गांठ और उसके लक्षणों का पता लगाना आसान होता है। अगर अपनी जांच में डॉक्टर को यह पता है कि अमुक गांठ असामान्य है, तो वह आपको आगे की जांच और निदान के लिए निर्देश दे सकता है।
  • दूसरा रास्ता यह है कि रोगी नाक, कान या गले के सर्जन से सम्पर्क करें। इसकी जांच सामान्यत: अस्पतालों में होती है। इस जांच से डॉक्टर को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिलती है।
  • कैंसर की जांच के लिए सर्जन बायोप्सी का भी सहारा लेते हैं। इसमें असामान्य विकास वाले शरीर के भाग से एक छोटा टिश्यू लिया जाता है। इस भाग को जांच के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है। इसकी जांच के बाद ही डॉक्टर यह फैसला कर पाता है कि अमुक लक्षण कैंसर के हैं अथवा नहीं।
  • ओरल कैंसर के तार किसी और प्रकार के कैंसर से भी जुड़े हो सकते हैं। इसिलए इसकी जांच के लिए लैरिंक्स/गले, वइसोफेंगस और फेफड़ों की जांच भी आवश्यक है। इस जांच के लिए फाइब्रोप्टिकस्कोप की मदद ली जाती है।
  • नासिका नली में रोग का संदेह होने पर एंडोस्को़पी की जाती है। इसमें ली गई बायोप्सील को जांच के लिए पैथोलोजिस्ट के पास भेजा जाता है। अन्य टेस्ट में एक्स-रे, सीटी स्कैन और कुछ अन्य ब्लड टेस्ट शामिल हैं। इसमें इस बात की जांच की जाती है कि बीमारी किस हद तक फैल चुकी है। मरीज के शरीर पर इसका कितना दुष्प्रभाव हो चुका है। इसके साथ ही मरीज के शारीरिक स्थिति की भी जांच की जाती है।


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Image Source : Getty

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