डायबिटीज (Diabetes In Hindi) एक ऐसी बीमारी है, जिससे शरीर में इंसुलिन का उत्पादन और इस्तेमाल की क्षमता नष्ट होती है। हाल में की गई स्टडीज से संकेत मिलता है कि डायबिटीज और हार्ट फेल्योर (एचएफ), डीएमई (डायबेटिक मैक्युलर एडिमा) और पुरानी बीमारियों के बीच काफी मजबूत संबंध है। विश्व मधुमेह दिवस (World Diabetes Day 2019) के मौके पर आज हम आपको इसके बारे एक्सपर्ट के माध्यम से विस्तार से जानकारी दे रहे हैं।
डायबिटीज और हार्ट फेल्योर- Diabetes and Heart Failure
डायबेटिक कार्डियोमायोपैथी से हार्ट फेल हो सकता है। यह एक प्रगतिशील स्थिति है, जिसमें दिल पूरे शरीर में पहुंचाने लायक ब्लड को पंप नहीं कर पाता। टाइप 2 डायबीटीज के रोगियों में हार्ट फेल होने का खतरा उन लोगों की तुलना में ढाई गुना ज्यादा होता है, जिन्हें यह रोग नहीं होता इसके अलावा पुरानी बीमारियों के कारण हार्ट फेल्योर की स्थिति झेल रहे 25 फीसदी मरीजों को डायबिटीज होता है।
दिल और रक्त वाहिकाओं से संबंधित बीमारियों के कारण डायबिटीज के मरीजों का अस्पताल में भर्ती होना उन मरीजों की तुलना में काफी तकलीफदेह होता है, जिन्हें डायबिटीज की बीमारी नहीं होती। इससे इस संभावना का जन्म होता है कि डायबिटीज के खराब मैनेजमेंट से स्वास्थ्य संबंधी कई जटिलाएं पैदा होती हैं।
दिल्ली में एम्स में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय ने कहा, “हमें डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए निवेश की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो हम भविष्य में कार्डियोवस्कुलर रोग के बड़े बोझ का सामना करेंगे। क्रॉनिक हार्ट फेल्योर से जूझ रहे 25 फीसदी मरीज डायबिटीज का शिकार होते हैं। गंभीर हार्ट फेल्योर के 40 फीसदी मरीज अस्पताल में भर्ती होते हैं। डायबिटीज और हार्ट फेल्योर के बीच संबंधों को जानना बेहद जरूरी है। इसी के साथ डायबिटीज के रोगियों में हार्ट फेल्योर के लक्षणों पर ध्यान देना भी काफी अहम है।
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डायबिटीज के रोगियों को हार्ट फेल्योर के लक्षणों के प्रति काफी सतर्क रहना बहुत जरूरी है। इन लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ होना, लगातार थकान और सुस्ती, अनियंत्रित ग्लूकोज स्तर, टखनों, पैरों और पेट में दर्द शामिल है। डायबिटीज के मरीजों को अपनी मौजूदा स्थिति को देखते हुए इन लक्षणों को न तो नजरअंदाज करना चाहिए न ही इन लक्षणों से किसी तरह के भ्रम में पड़ना चाहिए।
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डायबिटीज और डीएमई- Diabetes and Diabetic Macular Edema
डायबेटिक मैक्युलर एडिमा (डीएमई) डायबेटिक रेटिनोपैथी का सबसे सामान्य रूप है। यह तब होता है, जब क्षतिग्रस्त रक्तवाहिकाओं में सूजन आ जाती है। इससे रक्त वाहिकाएं रिसती रहती हैं और रेटिना के मैक्यूला में पहुंच जाती है। इससे नजर कमजोर हो जाती है। धुंधला नजर आता है। एक निश्चित दूरी से देखने में मुश्किल होती है। यह 35-65 साल के कामकाजी वयस्कों में दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण बनता है। डायबिटीज के किसी भी रोगी को डायबेटिक रेटिनोपैथी होने का खतरा होता है। डाबिटीज के शिकार 3 में से 1 व्यक्ति को डायबेटिक रेटिनोपैथी होती है। यही नहीं, डायबिटीज के 10 में से 1 रोगी को दृष्टिहीनता का खतरा होता है।
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डीएमई के कुछ सामान्य लक्षणों में दृष्टि के केंद्र में धुंधलापन होता है। ब्लाइंड स्पॉट या धब्बे बढ़ जाते हैं। सीधी लाइन लहरदार होती है। रंग काफी धुंधले नजर आते हैं या रंगों को समझने में कठिनाई होती है। इससे किसी व्यक्ति की पढ़ने, लिखने, ड्राइविंग करने, चेहरों को पहचानने की क्षमता पर असर पड़ता है। इससे रोग से ग्रस्त मनुष्य की जिंदगी की पूरी क्वॉलिटी पर बहुत बुरा असर पड़ता है। अगर इसका समय से इलाज नहीं किया जाता तो व्यक्ति स्थायी दृष्टिहीनता का शिकार हो जाता है।
डॉ. राज्यवर्धन आजाद, सीनियर कंसलटेंट विट्रोओरिंएटल सर्जन; नई दिल्ली के एम्स में डॉ. आर.पी. सेंटर के चीफ, ऑल इंडिया कलीजियम ऑफ ऑप्थल्मलॉजी के प्रेसिडेंट, इंडियन आरओपी सोसाइटी के प्रेसिडेंट और सार्क एकेडेमी ऑफ ऑप्थल्मलॉजी के सचिव ने, “उनके पास हर महीने आने वाले कुल मरीजों में करीब 40 फीसदी मरीजों को डायबिटिक मैक्यूलर एडिमा होता है। इस बीमारी से जूझ रहे 50 फीसदी मरीज रेटिना में गड़बड़ी के शिकार होते हैं तब तक उनकी बीमारी एडवांस स्टेज पर पहुंच चुकी होती है। डायबिटीज से जूझ रहे रोगियों को अन्य आबादी की तुलना में दृष्टिहीनता का खतरा 25 फीसदी अधिक होता है। यह स्थिति मरीजों के जीवन के कामकाजी वर्षों में प्रभाव डालती है। इससे उन पर सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से भी असर पड़ता है। इसलिए इन लक्षणों को किसी भी स्थिति में नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और मरीजों को अपनी नियमित जांच करानी चाहिए।“
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प्रमुख उपाय- समय पर बीमारी की जांच और इलाज
डायबिटीज के मरीजों को अपनी दिल की सेहत पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। उन्हें हर 6 महीने में आंखों का चेकअप कराना चाहिए। रोग की जल्दी जांच और डायबिटीज के प्रभावी मैनेजमेंट से दिल के रोगों और दृष्टिहीनता के खतरे को कम किया जा सकता है।
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