Healthcare Heroes Awards 2022: मंगला ताई के 'पालवी' ने ली HIV पॉजिटिव बच्चों की कोविड से सुरक्षा की जिम्मेदारी

पालवी HIV पॉजिटिव अनाथ बच्चों को गोद लेने वाली संस्था है, जिसने कोविड के दौरान 125  बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली, ताकि कोई संक्रमित न हो।
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Healthcare Heroes Awards 2022: मंगला ताई के 'पालवी' ने ली HIV पॉजिटिव बच्चों की कोविड से सुरक्षा की जिम्मेदारी

कैटेगरी: मदर एंड इन्फैंट केयर (मातृत्व एवं शिशु सुरक्षा)

परिचय: पालवी की शुरुआत करने वाली मंगला ताई

योगदान: इन बच्चों को आसरा देते हैं, जो उनके परिवार द्वारा घर से बाहर अकेले छोड़ दिए जाते हैं। 

नॉमिनेशन का कारण: कोविड के दौरान HIV पॉजिटिव बच्चों को आसरा दिया और उन्हें संक्रमण से बचाने के लिए काफी प्रयास किए।

पालवी महाराष्ट्र की एक छोटी सी संस्था है, जो HIV पॉजिटिव ऐसे बच्चों को गोद लेते हैं, जिनके माता-पिता मर गए या जिन्होंने इस बीमारी के कारण बच्चे को छोड़ दिया। पालवी में इस समय ऐसे 125 से ज्यादा बच्चे हैं। जब देश में कोविड आया और संक्रमण तेजी से फैलना शुरू हुआ तो ऐसे बच्चों की देखभाल करने वालों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई। इसका कारण यह है कि एचआईवी एड्स व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को अंदर से खोखला कर देता है और ऐसे लोग संक्रमण की चपेट में आए तो स्थिति गंभीर हो सकती है। यही कारण है कि पालवी में इन बच्चों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया। इन्हें उचित पोषण मिले, इसके लिए खानपान में बदलाव किए गए और अच्छी बात ये है कि अब तक पालवी में एक भी बच्चा कोविड संक्रमित नहीं हुआ।

palawi

कैसे हुई पालवी की शुरुआत?

इसकी शुरुआत 2001 में हुई जब, समाज सेविका मंगल शाह और उनकी बेटी डिंपल दो HIV पॉजिटिव बच्चों को घर लेकर आयी थीं। ये वो बच्चे थे, जिनके माता-पिता इसी बीमारी में अपनी जान गँवा चुके थे और उनके परिवारों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया। मंगला इन बच्चों को लेकर कई NGO और अस्पतालों में गयीं। जब उन दोनों बच्चों को किसी भी संस्था ने आसरा नहीं दिया तो मंगला ने उन्हें अपने साथ रखने का मन बना लिया। उस समय उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो किसी ऐसी संस्था की स्थापना करेंगी। आज उस घटना के 2 दशक बाद, महाराष्ट्र के शोलापुर जिले में मौजूद पंढरपुर स्तिथ 'पालवी' अब HIV+ 125 बच्चों का आशियाना बन गया है। इस संस्थान ने पीड़ित बच्चों को सिर्फ अच्छी ज़िन्दगी ही नहीं दी, बल्कि उनको इससे लड़ने की हिम्मत भी दी है। Onlymyhealth  इस वर्ष भी ऐसे लोगों को सम्मानित करने जा रहा है जिन्होंने कोविड महामारी के समय अपनी निजी मुश्किलों को दरकिनार करते हुए मानवसेवा को सर्वोपरि समझा। ‘पालवी’ भी HealthCare Awards की सूचि में शामिल है। इसको Mother And Infant Care कैटेगरी के लिए नॉमिनेट किया गया है। आइए जानते हैं 'पालवी' की कहानी-  

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पालवी में पल रहे हैं 125 एचआईवी पॉजिटिव बच्चे

पालवी 125 HIV पॉजिटिव बच्चों का घर बन चुका है। यहाँ रहने वाली सबसे छोटी बच्ची सिर्फ 8 दिन की है। डिम्पल के अनुसार- 'ऐसे केस में लड़कों की अपेक्षा ज्यादातर लड़कियों को अकेले छोड़ दिया जाता है"। जब Onlymyhealth ने डिंपल से इसके बारे में जानकारी ली तो डिम्पल ने बताया कि – “इस तरह के मामलों में गांव और शहर में कोई ख़ास फर्क नहीं है। शहरों में, ऐसे बच्चों के माता-पिता की मृत्यु के बाद उनका टेस्ट कराया जाता है। अगर ये बच्चे पॉजिटिव निकल आते हैं तो उनको अकेले रहने के लिए छोड़ दिया जाता है। वहीं गांव में, ऐसे बच्चों को कूड़ेदान या सुनसान जगहों पर फेंक दिया जाता है।"    

mangala tai

आखिर क्यों छोड़ दिए जाते हैं ऐसे बच्चे ?

 जब Onlymyhealth ने डिंपल से यह पश्न किया तो उन्होंने जवाब दिया कि - "एड्स पीड़ित बच्चों को अकेले छोड़ने के पीछे की वजह लोगों की पिछड़ी मानसिकता है। वो सोचते हैं कि अगर वो बच्चे HIV पॉजिटिव हैं तो ये बीमारी उनको भी आ जाएगी। इसके अलावा ऐसे बच्चों की इम्यूनिटी कमजोर होने की वजह से इनको कभी भी हॉस्पिटल जाने की जरूरत पड़ सकती है, जिसका खर्च उठाना उनके परिवार के लिए सिर्फ एक बोझ की तरह है।" साथ ही डिम्पल बताती हैं कि- "ये लोग सोचते हैं कि अगर वो ऐसे बच्चों को अपने साथ रखेंगे तो इस बीमारी के बारे में जानकर कोई उनके परिवार में अपने बेटा या बेटी की शादी नहीं करेगा।" 

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इस सफर में क्या चुनोतियाँ रहीं ?

जब शुरुआत में लोगों को HIV AIDS के बारे में कम जानकारी थी या इसके बारे में बहुत गलफहमी थी, तब मंगल ताई की संस्था को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा। डिम्पल बताती हैं कि - हमको कहीं भी आने-जाने की पाबन्दी रही थी। हमको शादियों में जाने की अनुमति नहीं थी। मंगल ताई जब भी कहीं जाती तो उनको रिक्शा और टैक्सी में बिठाने से मना कर दिया जाता। यहाँ तक कि 'पालवी' को बसाने के लिए जमीन खरीदने में भी उनकों काफी परेशानी उठानी पड़ी।" इसके बाद जब उन्होंने बच्चों का स्कूल में एडमिशन का विचार बनाया तो बच्चों को स्कूल में एडमिशन नहीं मिले। जब तक पालवी का अपना स्कूल नहीं बना, बहुत सारे बच्चे कई सालों तक बिना परीक्षा दिए संस्था में ऐसे ही पढ़ते रहे।

palawi for kids

कुछ ऐसा रहा 2001 से 2022 तक का सफर  

डिम्पल बताती है कि -"यूँ तो जब से अब तक लोगों की मानसिकता में काफी बदलाव आया है। लेकिन हमारे देश के सरकारी महकमों का रवैया अभी भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। कुछ अधिकारी बहुत अच्छे हैं लेकिन सिस्टम इतना मददगार नहीं है। उदाहरण देते हुए वह कहती हैं कि- “इस बीमारी से पीड़ित बच्चों का इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होने की वजह से ये बच्चे कभी भी अचानक बीमार हो जाते हैं। इसलिए हम एडमिनिस्ट्रेशन के पास गए कि इस तरह के बच्चों को PWD (Person With Disability) कैटेगरी में शामिल कर लिया जाए ताकि बच्चों को अपनी परीक्षा लिखने के लिए अतिरिक्त समय मिल सके। बच्चों को सब्जेक्ट को लेकर भी अधिक छूट मिलनी चाहिए। वह आगे बताती हैं कि- सामान्य बच्चे साल में 10 महीने स्कूल जाते हैं जबकि हमारे ये बच्चे बीमारी की वजह से 6 या 7 महीने ही स्कूल जा पाते हैं। ऐसे में वे कक्षा में बहुत पिछड़ जाते हैं जिससे उनकी सालना परफॉरमेंस पर असर पड़ता है।"

अब 'पालवी' बच्चों के साथ-साथ मानसिक बीमारी से ग्रस्त महिलाओं को भी आश्रय दे रहा है। यह संस्था निरंतर अपनी परोपकार की परम्परा को आगे बढ़ा रही है।  जब HIV+ बच्चों को कहीं सहारा नहीं मिला तो 'पालवी' ने अपने दामन में इनको जगह दी। मंगल ताई यहाँ रहने वाले बच्चों का ख्याल एक माँ की तरह रखती हैं। वह बच्चों को अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाती हैं। नमन है ऐसी ममता को जिसने दुनिया के ठुकराए हुए मासूमों को अपने आँचल में समेट लिया। हम Onlymyhealth के जरिए 'पालवी' की मंगल ताई और डिम्पल का अभिनन्दन करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि 'पालवी' को इसके महान कार्य के लिए सम्मानित किया जाए तो Healthcare Awards 2021 में लिए 'पालवी' को वोट अवश्य करें।  

 

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