सेहत पर बहुत बुरा असर डालती है गेम खेलने की लत, ऐसे पाएं छुटकारा

कई घायल हुए व कई लोगों को अलग तरीकों से नुकसान पहुंचा पर इसका क्रेज़ ज़रा भी कम होता नहीं दिखा। इस गेम के अलावा और भी कई गेम्स व एप्स हैं जिनका जादू समय-समय पर लोगों के सिर पर चढ़कर बोलता रहता है। ऐसे ही कुछ ऑनलाइन एडिक्टिव एप्स व गेम्स पर एक नज़र।
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सेहत पर बहुत बुरा असर डालती है गेम खेलने की लत, ऐसे पाएं छुटकारा


हाल के कुछ दिनों में एक गेम 'पोकेमॉन गो' ने खूब चर्चा बटोरी। देश-विदेश, हर जगह व हर किसी की ज़ुबान पर यह ऑनलाइन गेम चढ़ा रहा। इसकी वजह से न सिर्फ बच्चे, बल्कि बड़े भी काफी प्रभावित हुए। कई घायल हुए व कई लोगों को अलग तरीकों से नुकसान पहुंचा पर इसका क्रेज़ ज़रा भी कम होता नहीं दिखा। इस गेम के अलावा और भी कई गेम्स व एप्स हैं जिनका जादू समय-समय पर लोगों के सिर पर चढ़कर बोलता रहता है। ऐसे ही कुछ ऑनलाइन एडिक्टिव एप्स व गेम्स पर एक नज़र।

क्या है गेमिंग एडिक्शन

किसी भी चीज़ की लत तब होती है, जब उसका ज़रूरत से अधिक इस्तेमाल होने लगे और जब उसके बिना जि़ंदगी में कुछ अधूरा सा लगने लगे। चाय-कॉफी के एडिक्शन की तरह ही अब लोगों को गेम्स का एडिक्शन भी होने लगा है। सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक वे फोन या लैपटॉप की कैद में रहने लगे हैं। कुछ काम करते वक्त ज़रा से ब्रेक में भी कई लोग गेम्स खेलते हुए ही नज़र आ जाते हैं। ऐसे लोग कई बार अपने गेम्स की दुनिया में इतना खो जाते हैं कि बस व ट्रेन में अपना स्टॉप या अन्य महत्वपूर्ण काम भी इन्हें याद नहीं रहते हैं। अगर इस स्थिति को समय पर नियंत्रित न किया जाए तो यह बेहद तनावपूर्ण हो सकती है।

केस 1 : किसी भी चीज़ की लत यूं ही नहीं हो जाती है, बल्कि हम खुद ही उसे बढ़ावा देते हैं। दिल्ली के 19 व 22 वर्षीय दो सगे भाइयों को ऑनलाइन गेम खेलने की इतनी अधिक लत हो गई थी कि वे बाथरूम जाने तक के लिए समय नहीं निकाल पाते थे और किसी के टोकने पर खीझ उठते थे। महीने भर एक अस्पताल के साइकिएट्री विभाग में एडमिट रहने के बाद उनकी हालत में सुधार हो सका। इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद कहती हैं, 'ऐसी स्थितियां समाज के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। शारीरिक व्यायाम की आदत न होने के कारण ही लोग इन डिजिटल गेम्स की तरफ आकर्षित होते जा रहे हैं। वे दिन भर घरों में घुसे रह कर सिर्फ विडियो गेम्स खेलते रहते हैं, जिसके कारण पढ़ाई से भी उनका मन भटकता है।'

केस 2 : मुंबई की एक मल्टीनेशनल फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत एक व्यक्ति को अपनी नौकरी सिर्फ इस वजह सेगंवानी पड़ी कि वह दिन भर अपने टैबलेट में पज़ल गेम्स खेलने में व्यस्त रहता था, जिसका नकारात्मक प्रभाव उसके काम पर भी पडऩे लगा था। इन दो वाकयों के अलावा और भी ऐसे कई केस हैं, जिनसे गेमिंग एडिक्शन को साफ तौर पर समझा जा सकता है। कभी छात्र क्लास के दौरान गेम खेलते पकड़े जाते हैं तो कभी ऑफिस से थका हुआ आया व्यक्ति गेम्स के कारण घर पर भी फोन में ही व्यस्त रहता है। ऐसे लोग सोते-जागते या कुछ भी करते वक्त खुद को गेमिंग वल्र्ड का हिस्सा मानते हैं।

क्या हैं नुकसान

अति किसी भी चीज़ की हो, एक सीमा के बाद वह बुरी हो जाती है। तकनीक के विस्तार ने हर काम को जितना आसान बनाया है, उतना ही लोगों को आरामपरस्त भी। उसी तरह गेमिंग की लत व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक तौर पर बीमार कर रही है। जानें उसके नुकसान।

एकाग्रता में कमी आना : दिन-रात एक कर किसी गेम के लेवल्स को पार करते रहने से दूसरे कामों से मन भटकना बेहद सामान्य है। स्टूडेंट्स हों, नौकरीपेशा लोग हों या हाउसवाइव्स, जो भी किसी गेम की लत का शिकार होगा, वह किसी दूसरे काम में मन नहीं लगा पाएगा। कोई ज़रूरी काम करते समय भी उसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने पसंदीदा गेम की दुनिया में ही लगा रहेगा, जिसका गलत असर उसके अन्य महत्वपूर्ण कामों पर भी पड़ता है।

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नींद की समस्या होना : लगातार खेलते रहने के कारण एक समय के बाद लोगों को नींद से जुड़ी कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। कभी नींद देर से आती है तो कभी वे रात को उठ कर खेलने लग जाते हैं। उनके लिए फोन पास में रख कर सोना भी एक मुसीबत है, अगर पानी पीने के लिए भी उनकी आंख खुलेगी तो वे उस गेम में व्यस्त हो जाएंगे, जिसके कारण उनकी नींद कई घंटों के लिए प्रभावित हो सकती है।

समाज से कटना : लगातार टेक्नोलॉजी के संपर्क में रहने से व्यक्ति अपने आसपास के लोगों से दूर होने लगता है। पार्टी या किसी और सामाजिक कार्यक्रम में होने पर भी वह अपने फोन में आंखें गड़ाए ही बैठा रहेगा। इससे उसके वहां होने या न होने का कोई खास मतलब नहीं रहता है। कुछ नहीं तो कई लोग फोटो एडिटिंग एप्स व फिल्टर्स की सहायता से सेल्फी लेते हुए नज़र आते रहते हैं। यह भी एडिक्शन की श्रेणी में आता है।

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चिड़चिड़ापन होना : गेमिंग एडिक्शन के कारण ज़्यादातर लोग, खासकर बच्चे बहुत चिड़चिड़े हो जाते हैं। उनके हाथ से ज़रा देर के लिए भी फोन ले लेने पर वे विचलित होने लगते हैं। कई बार खाना-पीना तक छोड़ देते हैं और इन सबके बीच उनकी पढ़ाई तो डिस्टर्ब होती ही है।

बचाव है अहम

इस तरह के एडिक्शन से बचना बहुत ज़रूरी होता है, वर्ना उसका असर आपकी निजी जि़ंदगी पर भी पड़ सकता है। लगातार काम या रिश्तों को अनदेखा करना किसी भी तरह से हितकर नहीं है।

  • लोगों से जितना अधिक हो सके, मेलजोल बढ़ाएं। इसके लिए विभिन्न अवसरों पर पार्टी आदि का आयोजन करते रहें। अपने परिवार व दोस्तों के लिए समय निकालें।
  • अपने कार्यों के लिए समय-सीमा निर्धारित कर उसका गंभीरता से पालन करें।
  • एकाग्रता बढ़ाने के लिए ज़रूरी व दिमागी कार्यों के बीच कुछ समय का ब्रेक लेते रहें। हो सके तो इन ब्रेक्स में फोन व लैपटॉप का कम से कम इस्तेमाल करें।
  • बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप व इंटरनेट का ज़्यादा इस्तेमाल न करने दें और उन पर नज़र भी रखे रहें।
  • अगर तमाम कोशिशों के बावज़ूद इन डिजिटल गेम्स से दूरी न बन पा रही हो तो किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार की मदद लेने में हिचकिचाएं नहीं।

इनसे दूरी है जरूरी

हर गेम एडिक्टिव हो, यह ज़रूरी नहीं होता है। कुछ सर्वे से यह बात सामने आई है कि पज़ल, क्विज़, फोटो एडिटिंग एप्स, डेटिंग एप्स, चैटिंग एप्स, शॉपिंग एप्स व मल्टीप्लेयर गेम्स बेहद एडिक्टिव होते हैं।

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