छोटे बच्चों को अक्सर बुखार या तापमान बदलने की समस्या होती है। । शिशुओं में बुखार कई बार सामान्य कारणों से भी हो सकते हैं और कई बार ये किसी गंभीर बीमारी का शुरुआती संकेत भी हो सकते हैं। शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है इसलिए वो जल्दी बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। अगर आपको शिशु में बुखार के लक्षण महसूस हो रहे हैं तो देरी न करें और चिकित्सा सहायता लें। इस लेख में हम बच्चों में बुखार से जुड़ी 5 जरूरी बातों को जानेंगे ताकि बुखार की समस्या को सही तरीके से ट्रीट किया जा सके। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के केयर इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज की एमडी फिजिशियन डॉ सीमा यादव से बात की।
1. शिशुओं में कब गंभीर होता है बुखार? (Fever in Babies)
बच्चों में हल्के बुखार के कई कारण हो सकते हैं जैसे ज्यादा गर्मी होना, शारीरिक थकान, गरम पानी से नहाना आदि। इन कारणों से बुखार आए तो ये सामान्य स्थिति है पर अगर बुखार के साथ अन्य लक्षण नजर आएं तो आप सावधान हो जाएं। अगर बच्चे को बुखार के साथ सांस लेने में तकलीफ हो रही है, भूख नहीं लग रही है, बच्चा उदास नजर आ रहा है तो आप सतर्क हो जाएं। 3 महीने या इससे कम आयु में बच्चे के शरीर का तापमान 100 या इससे ज्यादा नहीं होना चाहिए। वहीं 6 महीने से छोटे बच्चों के शरीर का तापमान 102 डिग्री फारेनहाइट या उससे ज्यादा नहीं होना चाहिए।
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2. बच्चों में बुखार की जांच कैसे की जाती है? (Ways to Check Fever in Babies)
- बच्चों में बुखार की जांच करने के लिए सबसे पहले माथे पर हाथ रखकर देखा जाता है कि माथा गरम तो नहीं है।
- उसके बाद अगर माथा गरम है तो फोरहेड स्ट्रिप थर्मामीटर की मदद से बुखार चेक किया जाता है।
- छोटे बच्चे को बुखार होने पर डॉक्टर थर्मामीटर को जीभ के नीचे 3 से 4 मिनट के लिए रखते हैं, इसे ओरल टेस्ट कहा जाता है।
- छोटे बच्चों में बुखार चेक करने का सबसे आसान तरीका है एक्सिलरी टेस्ट जिसमें बच्चे के बगल में थर्मामीटर रखकर चेकअप किया जाता है।
- बच्चों में बुखार चेक करने के लिए रेक्टल टेस्ट भी किया जाता है जिसमें थर्मामीटर को रेक्टम (मलाशय) एरिया में आधे इंच अंदर रखकर बुखार की जांच की जाती है।
3. बच्चे को बुखार होने पर कंबल से न ढकें
आपको एक बात का खास ख्याल रखना है कि बच्चे को बुखार होने पर आप उसे कंबल से न ढकें। माता-पिता बच्चे को बुखार होने पर ज्यादा कपड़ों से ढकना शुरू कर देते हैं। वहीं कुछ पेरेंट्स बच्चे को कंबल में लपेट देते हैं। आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आप बच्चे को हल्की चादर से ढक सकते हैं पर भारी कपड़ों से बच्चे को ढकना अवॉइड करें।
4. बैक्टीरियल और वायरल फीवर का इलाज अलग है
आपको बुखार से जुड़ी एक जरूरी बात बता दें कि बैक्टीरियल और वायरल फीवर का ट्रीटमेंट अलग-अलग होता है। इसे एक समझने की गलती न करें। वायरल फीवर तब होता है जब शरीर वायरस के कारण होने वाली बीमारी जैसे फ्लू या जुकाम से पीड़ित हो जाता है। वायरल फीवर की तुलना में बैक्टीरियल फीवर कम होता है पर इसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं जबकि वायरल फीवर होने पर एंटीबायोटिक्स असर नहीं करेंगी इसलिए बुखार होने पर डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
5. बच्चों को बुखार होने पर किन बातों का ख्याल रखें? (Important Tips Related to Fever in Babies)
- बच्चे को बुखार होने पर आप उसे नहलाने के बजाय स्पंज बॉथ दिलाएं।
- शिशु को ठंडे पानी या बर्फ के पानी से नहलाने की गलती न करें।
- आप शिशु को पर्याप्त मात्रा में स्तनपान करवाएं।
- आप शिशु को ज्यादा से ज्यादा आराम करने दें, तभी बुखार कम होगा।
- शिशु अगर दूध नहीं पीना चाहता तो उसके साथ जबरदस्ती करने से आपको बचना चाहिए।
- शिशु को बिना डॉक्टर की सलाह के आप कोई भी दवा देने से बचें।
आप शिशु को समय-समय पर डॉक्टर के पास लेकर जाएं और चेकअप करवाते रहें। अगर शिशु में बुखार के लक्षण नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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