दिल्ली के एक अस्पताल में डॉक्टरों ने 19 साल के लड़के की पीठ से छह इंच की नुकीली रॉड निकाली है, जो कि उसके शरीर के अंदरुनी अंगों से होती हुई उसकी छाती तक पहुंच गई थी। 19 साल के लड़के का नाम मुकुल है और उसे 15 नवंबर को अस्पताल के आपातकालीन विभाग में लाया गया था। उसकी पीठ में लोहे की रॉड का एक नुकीली हिस्सा घुस गया था। डॉक्टरों का कहना है कि मुकुल की पीठ में रॉड घुसी थी और करीब 6 से 7 सेंटीमीटर का नुकीला हिस्सा उसकी छाती की दीवार तक पहुंच गया था।
कार्डियक फेल्योर और संक्रमण का था खतरा
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के इमरजेंसी की हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ. प्रियदर्शिनी सिंह का कहना है कि कार्डियोपुल्मोनरी बाईपास (सीपीबी) के साथ जरूरत से ज्यादा मेडिसटिनाल रक्तस्त्राव कार्डियक ऑपरेशन की एक प्रमुख जटिलता होती है। इसके कारण कार्डियक फ्लेयोर और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
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सीने में था खून का थक्का
उन्होंने बताया कि सीटी स्कैन से सीने के दाहिने हिस्से में एक बड़ा खून का थक्का बन जाने का पता चला। लोहे की रॉड बड़ी रक्तवाहिकाओं के करीब देखी गई। उसके बाद मुकुल को तुंरत कार्डियक आईसीयू में भेजा गया और आपातकालीन सर्जरी के लिए तैयारी शुरू कर दी गई।
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पेट के बल लेटाकर किया गया ऑपरेशन
डॉ. प्रियदर्शिनी ने कहा, ''सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि हमें सभी चीजें मुकुल को पेट के बल लेटाकर पूरी करनी थी क्योंकि उसके पीठ में एक बड़ी सी लोहे की रॉड घुसी हुई थी। ऐसे मामलों में बाहरी चीज को तब तक नहीं छुआ जाता तब तक मरीज को ऑपरेशन थिएटर नहीं ले जाया जाता।''
खून की कमी को पूरा किया गया
उन्होंने बताया, ''ऐसा इसलिए क्योंकि वह चीज वास्तव में रक्तस्त्राव को नियंत्रित रखने में मदद कर रही थी क्योंकि वह दबाव पैदा कर रही थी। अगर सही एहतियात के बिना उसे निकाला या हटाया जाता है तो बहुत सारा खून बह जाता और कुछ मिनटों में मरीज की मौत हो जाती। खून की हानि को रोकने के लिए हम पहले से ही खून के लिए तैयारियां पूरी करनी पड़ी।''
पसलियों के बीच लगाया गया चीरा
इस प्रक्रिया के बारे में बताते हुए अस्पताल के पीडियाट्रिक कार्डियो थोरासिस सर्जन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मुथू जोथी ने कहा, ''इन सब चीजों को देखने के बाद हमने थोराकोटोमी करने का फैसला किया, जो कि सीने को खोलने के लिए की जानी वाली सर्जरी है।'' उन्होंने बताया कि महाधमनी (aorta) पर एक बहुत बड़ा थक्का था और फेफड़े के बाएं हिस्से पर एक और चोट लगी हुई थी। डॉ. मुथू ने कहा कि फेफड़े पर संचालित करने के लिए सामने की ओर से छाती की दीवार में 2 पसलियों के बीच एक चीरा लगाया गया।
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ऐसा हुआ ऑपरेशन
उन्होंने कहा, ''सीने में हवा और खून जमा न हो इसके लिए हमने सीने में एक ट्यूब लगाई, जिसे चेस्ट ट्यूब कहते हैं। बाद में उसे नाक के जरिए ऑक्सीजन की सप्लाई दी गई। किसी भी प्रकार की जटिलता को रोकने के लिए डायाफ्राम में लीनियर टिश्यू भी दिया गया। हमने सभी घांवों को सील किया और सीने को लेयर में बंद किया।''
मुकुल दवाईयों के सहारे धीरे-धीरे ठीक हुआ और उसे 18 नवंबर को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
जोथी ने कहा, ''हमने मुकुल को सर्जरी के दो महीने तक पूर्ण रूप से आराम करने की सलाह दी। जब पिछले सप्ताह वह रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल आया तो उसे अपनी सामान्य जिंदगी फिर से जीने की सलाह दी गई।''
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