कोरोना वायरस से दुनियाभर में 90 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं, जिनमें से 48 लाख लोग ठीक भी हो चुके हैं। कोरोना वायरस के लिए कोई दवा या इलाज नहीं है, इसलिए जो मरीज ठीक हो रहे हैं, वो अपने ही शरीर के इम्यून सिस्टम द्वारा बनाए गए एंटीबॉडीज की वजह से ठीक हो रहे हैं। आमतौर पर शरीर किसी वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ जब एंटीबॉडीज बनाता है, तो वो एंटीबॉडीज उस विशेष वायरस या बैक्टीरिया से उसके शरीर की रक्षा अगले कुछ सालों तक या कई बार तो पूरी जिंदगी करते हैं। लेकिन एक नई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने बताया कि कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर जो एंटीबॉडीज बनाता है, वो ज्यादा से ज्यादा 2-3 महीने तक ही असर रखती हैं।
तो क्या कोरोना वायरस कभी खत्म ही नहीं होगा?
इस नई रिसर्च के बाद कई तरह के नए सवाल खड़े हो गए हैं। कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में कोरोना वायरस के मरीजों को एक बार ही ठीक करने में सरकारों के पसीने छूट रहे हैं। वहीं अगर 2-3 महीने बाद ठीक हो चुके लोग फिर से संक्रमित होने लगे, तो ज्यादातर देशों की स्वास्थ्य सुविधाएं इस वायरस के आगे घुटने टेक देंगी। वैसे भी दुनिया के 40 से ज्यादा देशों में कोरोना वायरस की दूसरी लहर आने के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं।
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2-3 महीने बाद दोबारा संक्रमित हो सकते हैं ठीक हो चुके लोग?
वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस नई रिसर्च को सिरे से नहीं नकारा जा सकता है क्योंकि दुनियाभर में अब तक ऐसे सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें ठीक हो चुके मरीजों में दोबारा संक्रमण फैला है। इसके अलावा एक परेशानी यह भी है कि ये वायरस अभी 6 महीने पुराना है और इस पर हुई सभी स्टडीज वायरस की इसी उम्र के आधार पर की गई हैं। लंबे समय में ये वायरस कैसे रिएक्ट करेगा या इसके और कौन से रूप सामने आएंगे, ये अभी कल्पना से परे है। लेकिन पूर्व प्रकाशित स्टडीज और इस नई स्टडी के बाद इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति कुछ महीनों बाद दोबारा इसकी चपेट में आने के बाद संक्रमित हो सकता है।
8 सप्ताह बाद 81% मरीजों के एंटीबॉडीज निष्क्रिय हो गए
कोरोना वायरस एंटीबॉडीज पर की गई इस नई रिसर्च को Nature Medicin नामक जर्नल में छापा गया है। शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 37 ऐसे लोगों को चुना, जो कोरोना वायरस टेस्ट में पॉजिटिव आए थे, लेकिन जिनके शरीर में कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे, मतलब सभी मरीज एसिम्पटोमैटिक थे। इन मरीजों के शरीर में बनी एंटीबॉडीज का 37 ऐसे लोगों के शरीर में बनी एंटीबॉडीज के साथ तुलना की गई, जिनमें लक्षण दिख रहे थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन लोगों में लक्षण नहीं दिख रहे थे, उनके शरीर में बनने वाली एंटीबॉडीज बहुत कमजोर थीं।
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8 सप्ताह में ही 81% एसिम्पटोमैटिक (बिना लक्षण वाले) मरीजों के शरीर में बने एंटीबॉडीज न्यूट्रल होने लगे, जबकि लक्षण वाले मरीजों में 8 सप्ताह बाद ये एंटीबॉडीज 62% तक न्यूट्रल हो गए। यही नहीं, 40% एसिम्पटोमैटिक मरीज ऐसे भी थे, जिनके एंटीबॉडीज इतने कम हो गए कि टेस्ट में उन्हें जांचा भी जा सके। वैज्ञानिकों ने कहा कि ये रिसर्च अभी छोटे स्तर पर की गई है, लेकिन इससे यह जरूर संकेत मिलता है कि दुनियाभर की सरकारों को 'इम्यूनिटी पासपोर्ट' के बारे में दोबारा सोचना चाहिए।
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