फ्लैंक कमर के बीच का हिस्सा है जो पीठ के बीच में स्थित है। यह कमर के एक तरफ पसलियों के नीचे और श्रोणि के ऊपर का हिस्सा है। सामान्यत: इसे किडनी से संबंधित रोग माना जाता है, लेकिन यह दूसरी बीमारियों से भी संबंधित है। इसलिए जब भी फ्लैंक यानी पार्श्व हिस्से में दर्द हो तो इसे नजरअंदाज न करें। आमतौर पर यह दर्द कुछ समय के लिए होता है और अपने आप खत्म भी हो सकता है। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि यह किस कारण से होता है।
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फ्लैंक का कारण
यह हड्डियों और मांसपेशियों से संबंधित समस्या है। किडनी में किसी भी तरह के संक्रमण होने पर यह समस्या होती है, किडनी में पथरी होने पर भी फ्लैंक का दर्द होता है। इसके अलावा आर्थराइटिस या मेरुदंड का संक्रमण, डिस्क का कोई रोग, मांसपेशी की ऐंठन, किसी तरह का संक्रमण, शिंगल्स (एक तरफ घाव के निशान के साथ दर्द), मेरुदंड का फ्रैक्चर, आदि इसके लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक हैं।
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कैसे करें जांच
फ्लैंक का दर्द असहनीय हो सकता है, यह कमरदर्द से अलग है। इसका पता चिकित्सक जांच के जरिये करते हैं। इसके जांच के लिए सबसे पहले यूरीन का टेस्ट किया जाता है। इसके अलावा पेट का एक्स-रे भी होता है। इंट्रावेनस पायलोग्राम या आईवीपी से भी इसकी जांच की जाती है। ब्लड के विभिन्न परीक्षण किये जाते हैं जिसमें सीबीसी काउंटिंग भी शामिल है। अल्ट्रा साउंड और सिटी स्कैन से भी इसका निदान हो सकता है।
फ्लैंक के लक्षण
फ्लैंक का दर्द एक बार में न होकर धीरे-धीरे भी हो सकता है। यह ऐंठन या लहरों या तरंगों की तरह आता और जाता है। घाव के निशान, बुखार और कंपकंपी, चक्कर आना, मतली और उलटी, कब्ज, अतिसार, यूरीन में ब्लड आना, आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
कैसे करें बचाव
खानपान और जीवनशैली में सुधार कर इस समस्या से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है। ऐसे आहार का अधिक सेवन करें जिसमें विटामिन ए पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो, इसके लिए गाजर, अंडा, आदि का सेवन करें। इसके अलाव गुर्दे को दुरुस्त रखने के लिए तरबूज, अजमोद, ककड़ी, लहसुन और पपीता का सेवन करें। ऑयली, वसायुक्त और मसालेदार आहारों के सेवन से परहेज करें। नियमित रूप से योग और व्यायाम करें। शराब का सेवन न करें, नहीं तो पैंक्रियाज या लीवर में सूजन की समस्या हो सकती है।
इन बातों का रखें ध्यान
जरूरी नहीं कि समस्या के बारे में तभी गंभीरता हो जब वह खतरनाक स्थिति में पहुंच जाये। हम खुद से अगर सतर्क रहें तो कई समस्याओं से न केवल बचाव हो सकता है साथ ही इनका समय पर उपचार भी हो सकता है। मूत्र में रक्त, मूत्र के साथ जलन या बार-बार मूत्र आना, बार-बार उलटी होना, बुखार रहना, दर्द जो पेट के सामने के हिस्से में फैल रहा हो, चक्कर आना, कमजोरी या बेहोशी होना, पैर में झुनझनी या दर्द, आदि की समस्या हो तो बिना विलंब चिकित्सक से संपर्क करें।
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