World Malaria Day 20 : बदलते मौसम में गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक है मलेरिया, जानें बचाव का तरीका

अधिकांश मलेरिया तब होता है, जब मौसम न तो ज्यादा गरम होता है और न ही ज्यादा ठंडा यानि तापमान साधारणत: 25 से 35 डिग्री के बीच रहता है। हवा में आद्रता भी बनी रहती है और मच्छरों की भी भरमार होती है।
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World Malaria Day 20 : बदलते मौसम में गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक है मलेरिया, जानें बचाव का तरीका

देश में अलग-अलग समय पर बीमारियों का प्रसार आम है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि बीमारियां मौसम बदलने का पूरे वर्ष इंतजार करती है और जैसे ही मौसम बदलता है कि ये मनुष्यों को अपनी चपेट में ले लेती हैं। मलेरिया भी इनमें से एक बीमारी है। बदलते मौसम ये बीमारी और भी खतरनाक हो जाती है। बेशक आपको मौसम का बदलना सुहाता हो, लेकिन जान लीजिए मौसम का यह बदलाव अपने साथ कई बीमारियां भी लेकर आता है। गर्मी और बरसात के आते ही बीमारियां भी अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं।

वास्तव में हम सभी कुछ बीमारियों को तो न्योता देकर बुलाते हैं। हमें मौसम के अनुरुप ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। मौसम के अनुरुप ही खाने पीने की वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। मच्छर एक ऐसा जीव है, जो यूं तो साल भर पाया जाता रहता है, लेकिन जुलाई से नवंबर माह तक यह जीव मनुष्य को डंक मारता रहता है। मच्छर के काटने से डेंगू, दिमागी बुखार और मलेरिया जैसे घातक रोग होते हैं। मलेरिया जुलाई से नवंबर के बीच फैलने वाली एक ऐसी बीमारी है, जिसका निदान सही ढंग से न किया जाए तो अकसर रोगी असमय ही मृत्यु का शिकार हो जाता है। मलेरिया के बारे में यदि हम सभी को सही जानकारी हो तो इससे काफी हद तक बचा जा सकता है। इन दिनों पूरे देश में मलेरिया अपना प्रकोप फैलाता है।

अधिकांश मलेरिया तब होता है, जब मौसम न तो ज्यादा गरम होता है और न ही ज्यादा ठंडा यानि तापमान साधारणत: 25 से 35 डिग्री के बीच रहता है। हवा में आद्रता भी बनी रहती है और मच्छरों की भी भरमार होती है। एक बात ध्यान में जरुर रखें कि प्रत्येक मच्छर एनाफ्लीज नहीं होता। कुछ टाइगर मच्छर भी होते हैं, जिनसे डेंगू फैलता है। इसलिए बुखार आने पर रक्त की जांच अवश्य कराई जानी चाहिए। कभी कभी मलेरिया के सभी लक्षण रोगी में दिखाई देते हैं और वह साधारण बुखार की दवाईयों का ही सेवन करता है। जिससे शरीर का तापमान तो कम हो जाता है, लेकिन शरीर में मौजूद परजीवी नहीं मर पाते, जिससे रोगी की हालत बिगड़ती जाती है, यदि मलेरिया का कोई लक्षण दिखाई न दे तो खून की जांच करवाना आवश्यक है। इस प्रकार रोगी के बुखार के कारण का पता लगाया जा सकता है।

कैसे होता है मलेरिया

साफ जमा पानी में पनपने वाले इस वायरस का वाहक एडिस मच्छर मात्र बारह दिनों में अपना जीवनचक्र पूरा कर लेता है। इसलिए खयाल रखें कि घर के आसपास कहीं भी पानी जमा न हो पाए। यदि कहीं पानी जमा हो और निकाला न जा सके तो उसमें मिट्टी का तेल अथवा पेट्रोल डालें जिससे उसमें मच्छर न पनप सकें। मलेरिया मानसून के बाद होने वाली एक प्रमुख बीमारी है। मलेरिया का खतरा हमारे चारों ओर मंडराता रहता है। पहले गांवों में ही होने वाला यह रोग अब देश के बड़े शहरों में भी अपने पैर जमा चुका है। मलेरिया की फेल्सीपेरम किस्म तो बेहद खतरनाक और जानलेवा भी साबित हो रही है।

जरूरी सावधानियां बरतकर इससे काफी हद तक बचा रहा जा सकता है। मलेरिया का परजीवी लगातार अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता जा रहा है, जिससे इस बीमारी पर पूरी तरह नियंत्रण करना अभी तक संभव नहीं हो पाया है। कई दवाएं भी अब मलेरिया के इलाज में निष्प्रभावी साबित हो रही हैं। ऐसे में इस बीमारी को काबू में रख पाना वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

अगर जल्द इलाज शुरू न किया जाए, तो मलेरिया के कारण शरीर के जरूरी अंगों तक खून की आपूर्ति बाधित हो सकती है। प्लाजमोडियम फेल्सीपेरम परजीवी से संक्रमण का तत्काल इलाज न किया जाए तो किडनी फेल हो सकती है, दौरे शुरू हो सकते हैं, मानसिक रूप से विक्षिप्त होने की स्थिति, कोमा और अंत में मौत की नौबत तक आ सकती है।

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मलेरिया औक मौसम से जुड़ी कुछ आवश्यक जानकारियां

  • गर्मी और बरसात के मौसम में ही मलेरिया के वायरस फैलने लगते है। जिनका प्रभाव काफी हानिकारक होता है। मलेरिया में जान का जोखिम बहुत रहता है। मलेरिया के मच्छर का जानलेवा डंक बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को नहीं बक्शता।
  • मौसम परिवर्तन के कुछ समय बाद ही जगह-जगह मच्छर पनपने लगते है और ये मच्छर सिर्फ रात के वक्त ही नहीं बल्कि दिन में भी परेशान करने लगते हैं। ऐसे में कई मच्छर ऐसे भी होते हैं जो मलेरिया वायरस फैलाते हैं। हालांकि मलेरिया अधिकतर गंदी रहने वाली जगहों और घनी आबादी वाले क्षेञों में ही फैलता है लेकिन ऐसा ही हो ,जरूरी नहीं।
  • सामान्यतः मलेरिया से ग्रसित होने वाले सभी लोगों को इससे खतरा होता है। खासतौर पर जबकी एनोफिलिस मच्छर प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम जीवाणु शरीर में फैलाता हैं। ये परजीवी न सिर्फ जानलेवा मलेरिया फैलाते है बल्कि कई घातक बीमारियों को भी जन्म देते हमें मलेरिया से बचने के लिए मच्छरों को मारने वाली दवाईयों का समय-समय पर छिड़काव करना चाहिए। अधिक से अधिक सफाई रखनी चाहिए। कहीं भी पानी लंबे समय तक इकट्ठा होने से रोकना चाहिए। कूलर, बर्तन, टायर इत्यादि में पानी भरा हुआ नहीं होना चाहिए।

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  • मलेरिया में सबसे अधिक खतरा गर्भवती महिलाओं को होता है। गर्भवती महिलाओं में मलेरिया होने से उनके बच्चों का वजन आवश्यकता से कम हो जाता है साथ ही वे कई बीमारियों या फिर संक्रमण का भी शिकार हो सकते हैं। या फिर एनीमिया से ग्रस्त हो सकते है। ऐसे बच्चों की एक वर्ष तक मृत्यु की भी संभावना बन सकती है।
  • दरअसल मलेरिया और जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा संबंध यही है कि जलवायु परिवर्तन के साथ ही मलेरिया बीमारी भी फैलने लगती है। हालांकि इसके फैलने का कारण मौसम बदलते ही पनपने वाले मच्छर है लेकिन ये मच्छर भी गर्मी और बरसात में ही अधिक पनपते है।
  • कुछ शोधों के मुताबिक तापमान में वृद्वि होते ही मलेरिया संक्रमण फैलना शुरू हो जाता है। यानी तापमान में वृद्धि और मलेरिया के बीच गहरा संबंध हैं।
  • मलेरिया संक्रमण फैलाने वाले मच्छर पहाड़ी इलाकों में अधिक पनपते है। वहां की जलवायु में परिवर्तन होते ही मलेरिया भी फैलने लगता है।
  • मलेरिया की रोकथाम के लिए रोजाना नालियों, गड्ढों व घरों की पानी की टंकियों आदि स्थानों जहां मच्छर प्रजनन कर सकते हैं, में साफ-सफाई का खास ध्यान रखें।

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