जैसे हर छोटी सी छोटी बीमारी के लक्षण अलग होते है, उनका स्वरूप अलग होता है, ठीक वैसे ही बीमारी संक्रमित है या नहीं, यह भी बीमारी के प्रभावों पर निर्भर करता है। अब डेंगू बुखार की ही बात कर लें। क्या डेंगू संक्रामक है? यदि इसका जवाब हां है, तो कैसे? संक्रामक रोग भी दो तरह के होते है, एक जो संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है और दूसरा, मच्छर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैलाए। आइए जानते हैं कि कैसे डेंगू बुखार को संक्रामक महामारी में शामिल किया जाता है।
डेंगू बुखार संक्रामक है?
डेंगू बुखार एक संक्रामक रोग है। दरअसल जब मच्छर किसी पीडि़त व्यक्ति को काटता है तो पीडि़त व्यक्ति के परजीवी मच्छर में भी आ जाते है और जब यही मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह स्वस्थ व्यक्ति भी इस वायरल से संक्रमित हो जाता है। इसी तरह से ये प्रक्रिया चलती रहती है।
डेंगू एक आम संक्रामक रोग है इसीलिए ये दिन पर दिन महामारी का रूप धारण करता जा रहा है। व्यास्कों के साथ-साथ ये बच्चों को भी तीव्रता से संक्रमित करता है।
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डेंगू के लक्षण कब व कैसे दिखते हैं?
जिस दिन डेंगू वायरस से संक्रमित कोई मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है, तो उसके लगभग 3-5 दिनों बाद ऐसे व्यक्ति में डेंगू बुखार के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। यह संक्रामक काल 3-10 दिनों तक भी हो सकता है।
लक्षण इस बात पर निर्भर करेंगे कि डेंगू बुखार किस प्रकार का है। डेंगू बुखार तीन प्रकार के होते हैं-क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार, हेमरेजिक बुखार (डीएचएफ)/ रक्तस्रावी ज्वर, डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस)/ डेंगू आघात सिंड्रोम।
आमतौर पर डेंगू के लक्षणों में बदन दर्द, सिरदर्द, बुखार आना, थकान महसूस होना और शरीर में लाल चखत्ते या दाने होना आदि होते हैं।
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इस वायरल संक्रमण से बचने के लिए न सिर्फ रोगी की अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए बल्कि संक्रमित व्यक्ति के आसपास का माहौल भी अनुकूल होना चाहिए।
संक्रमित व्यक्ति से कम से कम लोगों को मिलवाना चाहिए व तरल पदार्थ समय-समय पर देना चाहिए। इसके अलावा व्यक्ति की समय-समय पर रक्त जांच भी कुछ अंतराल में करवानी चाहिए।
डेंगू बुखार के दौरान यदि रोगी की स्थिति गंभीर है तो तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाना चाहिए।
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