कोरोना महामारी के फैलते प्रकोप ने हम में से अधिकतर लोगों को सदमे में डाल दिया है। इस महामारी ने पूरी दुनिया पर अपना कहर बरपाया है। कोविड 19 वायरस जैसे वायरस से बचाव के लिए मनुष्यों के पास प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती। इस वायरस के लगातार विकसित होते नए रूपों से शोधकर्ता समुदाय भी हैरान-परेशान है।
इस समय कोरोना वायरस के संक्रमण का पारंपरिक इलाज एंटी वायरल दवाओं और एंटीबायोटिक्स से किया जा रहा है। हालांकि इन एंटी वायरल दवाओं कोसार्स (सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) और मर्स(मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) के इलाज पर मरीजों पर काफी कारगर पाया गया था। कोरोना, सार्स और मर्स एक ही समान के वायरस हैं, पर अभी तक इसके बारे में निश्चित सूचना नहीं है कि इन एंटी वायरल दवाओं और एंटीबायोटिक्स ने कोरोना वायरस के मरीजों पर कितना प्रभाव डाला है। इस बीमारी से जंग लड़ने के लिए, इससे बचाव के लिए और बीमार लोगों में छूत से फैलने वालेइस रोग का इलाज करने में मदद के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की काफी जरूरत है। पढ़ते हैं आगे...
होम्योपैथी के लाभ
इस तरह के वायरस से फैलने वाले रोग में होम्योपैथी से खासा लाभ हो सकता है और इस महामारी को प्रभावी रूप से नियंत्रण में लाने के लिए होम्योपैथ का प्रयोग किया जा सकता है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार महामारी बनकर फैलने वाले छूत के रोगों के इलाज में होम्योपैथी का शानदार ट्रैक रेकॉर्ड रहा है। होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग करना सुरक्षित है। अगर इसके नुकसान हैं भी तो दूसरी चिकित्सा पद्धति की अपेक्षा इसके साइड इफेक्ट काफी कम है।
होम्योपैथी में इलाज के लिए एक एजेंट का उपयोग किया जाता है, जो एक रोगग्रस्त मानव में एक स्वस्थ मानव के समान लक्षणों को पैदा कर सकता है। इस प्रकार, किसी भी बीमारी के खिलाफ होम्योपैथिक शस्त्रागार पहले से मौजूद है, और यह केवल दवा के ज्ञात लक्षणों के लिए संक्रमण के लक्षणों के मिलान का सवाल है जो सबसे अधिक समान है इस प्रकार, निदान और उपचार के बीच की प्रतिक्रिया का समय अंत में कम हो जाता है।
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कोरोना वायरस है श्वसन संक्रमण
कोरोना वायरस या कोविड 19 मूल रूप से श्वसन संक्रमण है,जो पहले श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग पर प्रभाव डालता है। अगर इसे बढ़ने दिया जाए तो यह फेफड़ों (श्वसन तंत्र के निचले भाग) तक पहुंच जाता है। इस रोग के लक्षण काफी मुश्किल से पहचान में आते हैं। इससे निमोनिया और फाइब्रोसिस का जन्म होता है। फाइब्रोसिस में फेफड़ों और पाचन प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। कोरोना वायरस के इलाज के लिए सभी दवाओं को शरीर के इसी भाग को टारगेट करना चाहिए। कोरोना वायरस के मरीज के इलाज में, अब तक जितनी भी जानकारी उपलब्ध है, वह इस वायरस के संबंध में किसी नई जानकारी का खुलासा नहीं करती। केवल यह तथ्य सभी के सामने आ चुका है कि कोरोना वायरस काफी आक्रामक तरीके से फैलता है। बुजुर्ग लोगों और ऐसे व्यक्तियों, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम है, के शरीर में इस वायरस के लक्षणों का पाया जाना जानलेवा हो सकता है।
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इन बींमारियों का उपचार
इससे पहले सामान्य सर्दी जुकाम, अलग-अलग तरह के फ्लू, डेंगू, खसरा, गले का संक्रमण (गलगंड या गलसुआ), रूबेला (जर्मन खसरा), चिकन पॉक्स, दाद-खाज (चर्मरोग), हेपेटाइटिस बी और सी, हर्पिस (त्वचा में फैलने वाला संक्रमण), मुंह के छाले, पोलियो या रेबीज के कुछ मामलों का होम्योपैथी से सफल इलाज किया जा चुका है।
(ये लेख डॉ. प्रशांत बनर्जी होम्योपैथिक रिसर्च फाउंडेशन के सहसंस्थापक डॉक्टर प्रतीप बनर्जी से बातचीत पर आधारित है।)
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