मिर्ची (chilli) में पाया जाने वाले सक्रिय संघटक (ingredient) कैप्साइसिन (Capsaicin) मोटापा रोधी यानी की एंटी-ओबेसिटी और फैट कम करने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बात के पुख्ता सबूत ढूंढ निकाले हैं कि कैप्साइसिन (Capsaicin) के ये गुण कैसे मोटापे से संबंधित हार्मोन के प्रभावों को बढ़ा सकते हैं।
बॉडी फैट को कम करती है मिर्ची
सीएसआईआर-सेंट्रल फूड टेक्नोलिजक्ल रिसर्च इंस्टीट्यूट (CFTRI) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि मिर्ची में मौजूद सक्रिय घटक कैप्साइसिन (Capsaicin) ओबेसटेटिन के प्रभाव को बढ़ा सकता है और इससे बॉडी के फैट को कम करने में मदद मिलती है। ओबेसटेटिन एक प्रकार का हार्मोन है, जो खाना बंद करने के संकेत भेजता है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने बताई वजह
अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता उमा वी मंजाप्पारा ने इस बारे में बताते हुए कहा कि पाचन तंत्र में पैदा होने वाले ये हार्मोन मस्तिष्क के माध्यम से संकेत देकर हमारे द्वारा खाना खाए जाने को प्रभावित करते हैं। यह हमारे दिमाग को इस बात का संकेत देते हैं कि हमारा पेट भर गया है। वहीं कैप्साइसिन (Capsaicin) ओबेसटेटिन के प्रभावों को बढ़ा देता है।
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मेटाबॉलिज्म तेज करती है मिर्ची
कैप्साइसिन (Capsaicin) कोशिकाओं को उकसाने से लेकर कैटेकोलामाइन (catecholamines) के स्राव द्वारा फैट कम करने में मदद करता है। कैटेकोलामाइन (catecholamines) बीटा-एड्रीनर्जिक रिसेप्टर्स नाम के प्रोटीन से बंधा होता है, जो मेटाबॉलिज्म की दर को तेज करने का काम करता है। यह वसा ऊतकों की प्रतिक्रिया को बढ़ाता है, जिससे मोटापा घटता है। इसलिए इसे फूड में पाए जाने वाली एक फायदेमंद औषधि कहा जाता है।
पाचन बेहतर बनाती है मिर्ची
शोधकर्ता ने कहा, ''हमारा मानना है कि अगर हार्मोन और न्यूट्रासूटिकल दोनों को साथ मिलाकर खाया जाए तो मिर्ची ओबेसटेटिन के साथ एक सुर में काम करेगी और फैट पाचन को बेहतर बनाएगी।''
प्रोटीन के उत्पादन को बढ़ाती है मिर्ची
उमा ने कहा कि किसी भी अपरिपक्व फैट कोशिकाओं को बढ़ने और परिपक्व फैट कोशिका बनने में 14 दिन लगते हैं। टीम ने एंजाइम के प्रकार लिपासेस की गतिविधियों का भी अध्ययन किया। यह एंजाइम फैट के पाचन में शामिल होते हैं। कैप्साइसिन (Capsaicin) और जेनिस्टिन, हार्मोन संवेदनशील लाइपेस, लिपोप्रोटीन लाइपेस और PPAR-गामा प्रोटीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं।
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इन दो घटकों का प्रयोग जरूरी
उमा ने कहा कि इसका मतलब है कि ये सभी हमारे लिए बहुत फायदेमंद हैं। लेकिन जब ओबेसटेटिन के साथ कैप्साइसिन (Capsaicin) और जेनिस्टिन को मिलाया जाता है तो कोशिकाओं में बनने वाले ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा 20 से 25 फीसदी कम हो जाती है, जबकि केवल ओबेसटेटिन का प्रयोग करने पर ऐसा नहीं होता। हालांकि ऐसा क्यों हैं इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं।
इस जर्नल में प्रकाशित हुए निष्कर्ष
उन्होंने कहा कि कैप्साइसिन (Capsaicin) और जेनिस्टिन कोशिकाओं में लिपासेस के स्तर को बढ़ा सकता है, जिसके कारण कोशिकाओं में जमा अतिरिक्त फैट मेटाबॉलाइज्ड हो जाता है। अध्ययन के निष्कर्ष हाल ही में जर्नल सेल बायोकैमेस्ट्री एंज बायोफिजिक्स में प्रकाशित हुए।
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