क्या आपने गर्भवस्था के दौरान किसी महिला को दोबारा गर्भवती होते देखा है? अगर नहीं, तो बता दें कि ऐसा होता है। आइए जानते हैं इस स्थिति को क्या कहते हैं?
स्टोरी की हेडलाइन पढ़कर आप थोड़ा चौंक गए होंगे, लेकिन क्या आपने सच में कभी ऐसा होते हुए देखा है? प्रेग्नेंट होने के बाद दोबारा प्रेग्नेंट होना, सुनने में बहुत ही अजीब लगता है। शायद आपने ऐसा पहले कभी नहीं देखा होगा। प्रेग्नेंट होने के बावजूद दोबारा प्रेग्नेंट होने की अवस्था को सुपरफिटेशन कहते हैं। सुपरफिटेशन के मामले बहुत ही कम हैं, लेकिन ऐसे मामले नहीं होते ऐसा कहना गलत होगा।
कब होता है सुपरफिटेशन?
नोएडा में स्थित फॉर्टिस हॉस्पिटल की वरिष्ठ गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. ममता साहू ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान ही जब आप दूसरी बार प्रेग्नेंट होते हैं, तो इस अवस्था को सुपरफिटेशन कहते हैं। आपकी पहली प्रेग्नेंसी शुरू होने के कुछ दिन बाद या फिर करीब 1 माह के बाद जब आपका एग्स स्पर्म के संपर्क में जाता है, तो वह फर्टिलाइज हो जाता है। इसकी वजह से दूसरी नई प्रेग्नेंसी की शुरुआत हो जाती है। अक्सर जुड़वां बच्चे सुपरफिटेशन से पैदा हुए होते हैं। ये अक्सर एक साथ या फिर एक ही दिन में पैदा होते हैं।
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जानवरों में ज्यादा होता है सुपरफिटेशन
सुपरफिटेशन अधिकतर जानवरों में होता है। कुत्ते, मछली, खरगोश जैसे कई ऐसे जानवर हैं, जो एक साथ कई बच्चों को पैदा करते हैं। इंसानों में इसकी संभावना जानवरों की तुलना में कम होता है। IVF ट्रीटमेंट लेने वाली महिलाओं में सुपरफिटेशन होने की संभावना अधिक होती है। सुपरफिटेशन में गर्भवती महिला का एग फर्टिलाइज होकर दोबारा गर्भ में अलग से प्रत्यारोपित हो जाता है।
कब हो सकता है सुपरफिटेशन?
गर्भवती महिलाओं का जब ओवुलेशन हो जाए, तो सुपरफिटेशन होने की सभावना अधिक होती है। वरिष्ठ गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. ममता साहू का कहना है कि प्रेग्नेंसी के दौरान ओवुलेशन होना संभव नहीं होता है। क्योंकि प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं के शरीर का हार्मोन ओवुलेशन को रोक देता है। इस वजह से ऐसे मामले अधिक सामने नहीं आते हैं।
IVF ट्रीटमेंट के दौरान फर्टिलाइज्ड भ्रूण को महिला के गर्भ में डाला जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान अगर महिला ओवुलेट हो जाती है, जो उसका एग्स फर्टिलाइज्ड हो सकता है। ऐसे में सुपरफिटेशन की स्थिति बन जाती है।
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सुपरफिटेशन के लक्षण
सुपरफिटेशन में होने वाली परेशानी
इस स्तिथि में मां तो अधिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन इसका असर बच्चों के विकास पर पड़ता है। क्योंकि भ्रूण अलग-अलग समय पर हुआ है, तो विकास भी अलग-अलग चरणों में होता है। ऐसे में डिलीवरी के समय पहला बच्चा आ जाता है, लेकिन दूसरे भ्रूण को विकास के लिए सही समय नहीं मिल पाता है। इस वजह से दूसरा बच्चा प्रीमैच्योर पैदा होता है।
प्रीमैच्योर बच्चों का वजन कम, सांस लेने में परेशानी, फीड करने में दिक्कत और ब्रेन हेमरेज जैसी समस्या आ सकतीहै। वहीं, सुपरफिटेशन में गर्भवती महिला को डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा रहता है। इस स्थिति में गर्भवती महिला को सेक्स से बचना चाहिए।
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