किसी भी महिला के लिए प्रेग्नेंसी खास समय होता है, जब उसे अपने साथ-साथ गर्भ में पल रहे शिशु का भी खास ध्यान रखना होता है। लेकिन कई मामलों में महिलाओं को किसी भी तरह की ऑटोइम्यून की समस्या हो सकती है, जिससे उनकी प्रेग्नेंसी काफी जटिल हो सकती है। ऐसी प्रेग्नेंट महिलाओं के भ्रूण पर क्या असर पड़ सकता है और महिलाएं इस तरह की समस्या में खुद को कैसे मैनेज कर सकती हैं। इस बारे में हमने आर्टेमिस अस्पताल के स्त्रीरोग विशेषज्ञ विभाग की चेयरपर्सन डॉ. रेनू रैना सहगल (Dr. Renu Raina Sehgal, Chairperson - Department of Obstetrics & Gynaecology, Artemis Hospitals) से बात की।
क्या ऑटोइम्यून से पीड़ित प्रेग्नेंट महिला के भ्रूण पर असर पड़ता है?
डॉ. रेनू रैना का कहना है, “अगर प्रेग्नेंट महिला को ऑटोइम्यून बीमारी हो, तो भ्रूण पर असर पड़ सकता है। इसमें शिशु का जन्म के समय वजन कम होना, समय से पहले जन्म लेना और कुछ मामलों में भ्रूण में ऑटोइम्यून बीमारी होने का खतरा हो सकता है। इसलिए इस तरह की समस्या से गुजर रही महिलाओं को समय-समय पर डॉक्टर से सलाह लेते रहना चाहिए।”
पबमेड में प्रकाशित NIH की रिपोर्ट के अनुसार, अगर मां को ऑटोइम्यून रूमेटिक बीमारी हो, तो यह बच्चे को जीवन के अलग-अलग समय पर प्रभावित कर सकती है। प्रेग्नेंसी में मां को सूजन, ऑटोएंटीबॉडी भ्रूण के विकास को रोक सकती है। जो बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं, उनकी सेहत पर काफी असर पड़ सकता है।
इसे भी पढ़ें: क्या गर्भनिरोधक दवाइयां लेने से ऑटोइम्यून बीमारियां हो सकती है? जानें डॉक्टर से
टॉप स्टोरीज़
ऑटोइम्यून प्रेग्नेंसी के कारण भ्रूण पर क्या असर पड़ता है?
डॉ. रेनू कहती हैं, “मां की सेहत का असर सीधे तौर पर भ्रूण के विकास पर पड़ता है। अगर प्रेग्नेंट महिला में किसी भी तरह की समस्या होती है, जैसे कि ऑटोइम्यून या असंतुलित इम्यून सिस्टम, तो इससे भ्रूण के विकास पर असर पड़ता है। इस समय भ्रूण का दिमाग सबसे संवेदनशील होता है। अगर एंटीबॉडीज किसी भी तरह से न्यूरो के विकास को प्रभावित करते हैं, तो जन्म के बाद बच्चे में विकास धीमा हो सकता है, ऑटिज्म की समस्या हो सकती है।”
- शिशु के दिमाग का विकास रुक सकता है।
- शिशु की हार्ट रेट में बदलाव हो सकता है।
- शिशु को एनीमिया की शिकायत हो सकती है।
- शिशु में सफेद ब्लड सेल काउंट (white blood cell count) कम हो सकते हैं।
ऑटोइम्यून बीमारी क्या है? - What is Autoimmune Disease
इम्यून सिस्टम शरीर में होने वाले संक्रमण को रोकने और शरीर में सभी क्रियाओं को सामान्य तरीके से करने में मदद करता है। ऑटोइम्यून बीमारी में इम्यून सिस्टम गलती से शरीर के अच्छे सेल्स पर अटैक करने लगता है। गर्भावस्था में इम्यून सिस्टम भ्रूण को बैलेंस करता है और उस पर होने वाले संक्रमण से बचाता है। अगर किसी महिला को किसी तरह की ऑटोइम्यून बीमारी जैसे लूपस, रेमोटॉयड आर्थराइटिस या थॉयराइड हो, तो प्रेग्नेंसी जटिल हो जाती है। कई मामलों में मिसकैरेज या फिर भ्रूण का विकास तक रूक सकता है।
इसे भी पढ़ें:ऑटोइम्यून बीमारियों को ट्रिगर कर सकते हैं ये 5 फूड्स, खाने से करें परहेज
ऑटोइम्यून प्रेग्नेंट महिला कैसे करें मैनेज? - autoimmune pregnant woman manage
प्रेग्नेंसी के दौरान ऑटोइम्यून जटिलताओं को दवाइयों के साथ-साथ घरेलू नुस्खों से भी मैनेज किया जा सकता है। मेडिकल मैनेजमेंट के लिए स्त्रीररोग विशेषज्ञ और इम्यूनोलॉजिस्ट से मदद लेनी चाहिए। रोगी को एंटी-इंफ्लेमेटरी थेरेपी जैसै हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (hydroxychloroquine) दी जाती है। कुछ मामलो में क्लॉट को रोकने के लिए एंटीकोआगुलेंट के साथ कम डोज की एस्प्रिन दी जाती है। इससे मिसकैरेज को रोकने में मदद मिलती है। अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट के जरिए भ्रूण की सेहत का ध्यान रखा जाता है।
डॉ. रेनू ने कुछ घरेलू नुस्खे बताए हैं, जो प्रेग्नेंसी की जटिलताओं को रोकने में मदद करते हैं।
- संतुलित डाइट जिसमें ओमेगा-3, फैटी एसिड, आयरन और फोलेट शामिल हों, इससे इम्यून सिस्टम को सपोर्ट मिलता है और भ्रूण का विकास सही तरीके से होता है।
- हरी सब्जियां, सैल्मन और दालें खाने में शामिल करनी चाहिए। ये रेड ब्लड सेल्स बढ़ाने में मदद करते हैं।
- पानी की मात्रा सही रखनी चाहिए, जिससे प्लेसेंटा को सही तरीके से काम करने में मदद मिलती है।
- स्ट्रेस को मैनेज करने के लिए प्रीनेटल योगा और मेडिटेशन मददगार हैं। इससे इम्यून संतुलित रह सकता है।
डॉ. रेनू ने खासतौर पर जोर देते हुए कहा है कि अगर किसी महिला को ऑटोइम्यून की समस्या है, तो प्रेग्नेंसी में उसे किसी भी तरह की दवाई या घरेलू नुस्खे इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से इसकी सुरक्षा और असर को सुनिश्चित करें, ताकि भ्रूण का सही विकास हो सकें।