मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) वाले रोगियों के लिए बेस्‍ट है ये सर्जरी, एक्‍सपर्ट से जानिए पूरा प्रॉसीजर

Myopia: मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष आंखों का विकार है, इसे ठीक करने के लिए कई बार सर्जरी की मदद ली जाती है। आइए जानते हैं।  
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मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) वाले रोगियों के लिए बेस्‍ट है ये सर्जरी, एक्‍सपर्ट से जानिए पूरा प्रॉसीजर

22 साल की साक्षी एयरहोस्टेस बनना चाहती थी और अपनी आंखों से चश्मा हटाना चाहती थी। उसने लेसिक कराने का मन बनाया लेकिन उस समय बहुत निराश हो गई जब उससे कहा गया कि उसकी आंखों में लेसिक सर्जरी नहीं हो सकती। साक्षी के आंखों के डॉक्टर ने उसकी आंखें चेक की तो पाया कि उसकी मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) की समस्या गंभीर है और उसका लेसिक नहीं किया जा सकता। हालांकि उसे चश्मा हटाने के लिए एक विकल्प के तौर पर कुछ और प्रॉसीजर करवाने की सलाह दी गई। 

दरअसल, कौन नहीं चाहता कि उसकी आंखों से चश्मा हटे। अगर आप सुबह उठें और आपको चश्मा ढूंढ़ने की जरूरत न पड़े तो कितना अच्छा लगेगा। जहां अधिकांश लोगों का लेसिक किया जा सकता है वहीं कुछ लोग इसके लिए क्वालीफाई नहीं कर पाते।  

अगर आपको पता चले कि आपका लेसिक नहीं हो सकता तो निराश होने की कोई बात नहीं है। इंट्रोक्यूलर लेंसेज (आईओएल) जिनमें फेकिक आईओएल और क्लियर लेंस एक्सचेंज (सीएलई) जैसे विकल्प हैं जो आपकी आंखों की देखने की समस्या को ठीक कर सकते हैं।

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सच तो यह है कि कुछ मामलों में इंट्रोक्यूलर लेंसेज के परिणाम लेसिक से बहुत बेहतर आते हैं। फेकिक इंट्रोक्यूलर लेंसेज और क्लियर लेंस एक्सचेंज सुरक्षित और प्रभावी हैं और इन दोनों स्तर पर खरे उतरते हैं। जिन रोगियों का मायोपिया बहुत ज्यादा है और जिनका रेटिना पतला पड़ गया है उनको भी यह प्रॉसीजर काफी फायदा पहुंचाते हैं। तो आइए अब जानते हैं कि अच्छा देखने के लिए यह प्रॉसीजर्स क्या हैं और इंट्रोक्यूलर लेंस प्रॉसीजर लेसिक से कितना अलग है?

फेकिक इंट्रोक्यूलर लेंसेज और क्लियर लेंस एक्सचेंज क्‍या हैं?

डॉक्‍टर समीर सूद कहते हैं कि, 'फेकिक आईओएल और सीएलई क्लियर इम्प्लांटेबल लेंस हैं जिन्हें सर्जरी के द्वारा कॉर्निया और आंख की पुतली के बीच में या पुतली के पीछे रख दिया जाता है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक लेंस को नहीं हटाया जाता। यह लेंस रेटिना पर प्रकाश का फोकस ठीक कर देते हैं और आंखों पर कुछ लगाए बिना भी आपको अच्छा दिखने लगता है। इसके अलावा अच्छा देखने के लिए यह कॉन्टेक्ट लेंस की तरह ही काम करते हैं। अंतर केवल यह है कि आईओएल स्थायी उपचार देते हैं।'

जहां लेसिक से कॉर्निया के आकार को सही कर दिया जाता है वहीं इंट्रोक्यूलर लेंस प्रॉसीजर में लेंस इम्प्लान्ट किए जाते हैं ओर यह कृत्रिम लेंस होते हैं। अगर इन प्रॉसीजर्स के लिए रोगी क्वालिफाई करता है तो इनसे 20/20 का विजन आ सकता है और चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस लगाने की जरूरत ही नहीं रहती। सच तो यह है कि चश्मे के बिना अच्छा देखने की दिशा में रिफ्रेक्टिव सर्जरी का चयन करना बेहतर कदम है। लेकिन यह सब आप अपने नेत्ररोग विशेषज्ञ से सलाह करके ही कर सकते हैं। जो आपकी आंखों का पूरा चेकअप करेंगे और फिर आपको सलाह देंगे।

प्रॉसीजर के लिए रोगियों का चयन कैसे करते हैं?  

जिन रोगियों की लेसिक नहीं हो सकती उनमें वे रोगी शामिल होते हैं जिनका निकटदृष्टि दोष, दूरदृष्टिदोष और दृष्टिवैषम्य बहुत ज्यादा हो या फिर कॉर्निया पतला हो गया हो या कॉर्निया का आकार खराब हो गया हो। या फिर आंखों में केरेटोकोनस या ड्राई आंखों की समस्या हो। चूंकि इंट्रोक्यूलर लेंसेज बहुत अधिक मायोपिया (20 डाएओपटर से ज्यादा) और 3 डाएओपटर से कम के विजन को सही नहीं कर पाते हैं इसलिए फेकिक आईओएल की सलाह नहीं दी जाती।

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डॉक्‍टर समीर सूद के मुताबिक, लेसिक एक बहुत ही लोकप्रिय प्रॉसीजर है जो जल्दी भी हो जाता है और जिसमें दोनों आंखें एक साथ ऑपरेट की जा सकती हैं। हालांकि इससे कॉर्निया के जो टिश्यूज अलग हो जाते हैं वे वापस नहीं लाए जा सकते हैं। दूसरी तरफ लेंस इम्प्लांट थोड़ा ज्यादा इनवेसिव होता है।

फेकिक आईओएल को वापस बदला जा सकता है जबकि सीएलई को नहीं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक लेंस निकाल दिए जाते हैं। इसके अलावा इन प्रॉसीजर्स में इंफेक्शन की संभावना भी रहती है इसलिए डॉक्टर्स एक बार में एक ही आंख का ऑपरेशन करते हैं। इसके अतिरिक्त लेंस इम्प्लान्ट अल्ट्रावायलेट विकिरणों से भी सुरक्षा करता है जो कैट्रेक्ट बनने और एज रिलेटेडमैक्यूलर डीजेनरेशन का एक कारण भी है।

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पूरे प्रॉसीजर में कितना समय लगता है?

लेसिक प्रॉसीजर में एक आंख में एक मिनट से भी कम समय लगता है। पूरे प्रॉसीजर में करीब 15 मिनट लगते हैं जबकि लेंस इम्प्लान्ट में एक आंख के लिए 20 से 30 मिनट चाहिए होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि दूसरी आंख की लेंस इम्प्लान्ट सर्जरी के एक हफ्ते के बाद ही हो पाता है। फिर भी विजन रिकवरी और फॉलोअप में दोनों सर्जरी में एक जैसा ही समय लगता है।

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प्रॉसीजर की लागत

लेंस इम्प्लान्ट लेसिक से महंगे होते हैं क्योंकि लेंस इम्प्लान्ट ज्यादा इनवेसिव होता है और इनमें ज्यादा समय लगता है। लेंस इम्प्लान्ट की लागत अलग से आती है इसलिए यह प्रॉसीजर महंगा होता है। जिन रोगियों को देखने में ज्यादा दिक्कत नहीं है और उन्हें आंख की कोई बीमारी नहीं है उनके लिए लेसिक सर्जरी अच्छी है। रिफ्रेक्टिव लेंस एक्सचेंज या लेंस इम्प्लान्ट उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प है जिनका दृष्टिदोष बहुत ज्यादा है ओर जो लेसिक उपचार नहीं करवा सकते हैं। जब भी आप लेसिक या लेंस इम्प्लांट करवाने का मन बनाते हैं तो पहले किसी वरिष्ठ एवं अनुभवी नेत्र चिकित्सक से पहले सलाह लेकर ही करवाएं।

नोट: यह लेख नई दिल्ली स्थित शार्प साईट (ग्रुप ऑफ़ आई हॉस्पिटल्स) के वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक, डॉक्‍टर समीर सूद से हुई बातचीत पर आधारित है।

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