सिंगल पैरेंट होने के फायदे: बच्चों की परवरिश अकेले करने से आपको भी होते हैं ये 3 लाभ

एकल अभिभावक आपको आत्मनिर्भर बनाती है। साथ ही मैच्योर और सतर्क बनाती है। एकल अभिभावक का बच्चों के रिश्ता मजबूत होता है।
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सिंगल पैरेंट होने के फायदे:  बच्चों की परवरिश अकेले करने से आपको भी होते हैं ये 3 लाभ

भारत में सिंगल पैरेंटिंग का चलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। आज सुष्मिता सेन से लेकर करण जौहर तक बॉलीवुड के सितारे सिंगल पैरेंट के नाम से जाने जाते हैं। यह बात अलग है कि सिंगल पैरेंटिंग के चलन की जब हम बात करते हैं तो वह उच्च वर्ग की ओर इशारा होता है। क्योंकि अभी तक मध्यमवर्ग या निम्न मध्यमवर्ग में ऐसा चलन नहीं है। भारत में आज भी शादी की संस्था बच्चे पैदा करने के कॉन्सेप्ट पर चल रही है। ऐसे में सिंगल पैरेंटिंग की व्यवस्था ने शादी की इस संस्था पर भी सवाल खड़ा किया है। खैर...अगर आप भी खुद को ऐसी कैटेगरी में रखते हैं जिमसें आप शादी नहीं करना चाहते, या मेडिकल कंडीशन की वजह से आपने बच्चा पैदा नहीं किया या बच्चा पैदा करने का आपका मन नहीं था तो आप सिंगल पैरेंट बन सकते हैं। 

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क्या है सिंगल पैरेंटिंग?

जैसा कि नाम से ही समझ आता है कि एकल अभिभावक। जिसमें एक बच्चे की परवरिश एक ही व्यक्ति मां और पिता दोनों बनकर करता है। इस तरह की पैरेंटिंग एक बच्चे की परवरिश का जिम्मा किसी एक ही व्यक्ति पर होता है। आजकल लोग खुद का बच्चा पैदा नहीं करते बल्कि गोद ले लेते हैं। ऐसे में उसकी परवरिश का जिम्मा उनके खुद के ऊपर होता है। सिंगल पैरेंट का जिम्मा जब कोई लेता है तब उसके रिस्क के बारे में भी पहले ही जान लेता है। बहरहाल, यहां हम आपको बता रहे हैं कि सिंगल पैरेंटिंग के फायदे क्या हैं।

सिंगल पैरेंटिंग के फायदे

1. आत्मनिर्भरता

जब आप सिंगल पैरेंट होते हैं तब यह समझ आता है कि बच्चे की परवरिश पर पूरा अधिकार आपका है। आप ही उसके जीवन के कर्ता धर्ता हैं। साथ ही खुद में ऐसा आत्मविश्वास भी आता है कि हम किसी की जिंदगी बना सकते हैं। ऐसा नहीं है कि जिसको किसी मां ने जन्म दिया हो वही उसकी औलाद हो, बल्कि बिना बच्चा पैदा किए हुए भी आप मां बन सकती हैं या सकते हैं। खुद का प्यार उस बच्चे पर लुटा सकते हैं। ऐसे माता-पिता में आत्मनिर्भरता आती है। इसी आत्मनिर्भरता से बच्चों में आत्मविश्वास आता है।

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2. मजबूत रिश्ता

ऐसे पेरेंट जो सिंगल पैरिंटिंग कर रहे हैं उनका अपने बच्चों के साथ रिश्ता बहुत मजबूत होता है। मां या पिता अपना पूरा समय बच्चे को देते हैं। वे बाकी माता-पिता से ज्यादा सतर्क रहते हैं कि कहीं उनके अकेले पैरेंट होने की वजह से बच्चे को किसी की कमी न खले। इसलिए सिंगल पैरेंट अधिक सतर्क रहते हैं। ऐसे में पैरेंट और बच्चे के बीच रिश्ता भी मजबूत होता है। बच्चा अभिभावक से खुलकर बात कर पाता है। वह पैरेंट को अपना दोस्त समझता है। 

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3. बच्चे का विकास

जिन बच्चों की परवरिश एकल अभिभावक ने की होती है, ऐसे बच्चे माता-पिता के उन पारिवारिक कलह से भी बच पाते हैं जो अक्सर शादीशुदा जोड़ों के बीच होते हैं। घर की कलह का नकारात्मक प्रभाव बच्चे पर पड़ता है और आगे जाकर वह भी वैसे ही काम करता है जैसा कि वह घर माता-पिता के बीच में देखता है। लेकिन सिंगल पैरेंटिंग में यह समस्या दूर हो जाती है। ऐसे बच्चे ज्यादा मैच्योर होते हैं और दिमागी रूप से ज्यादा समझदार और बुद्धिमान भी।

साथ ही हमें यह भी समझना जरूरी है कि इस सिंगल पैरेंटिंग के नुकसान भी होते हैं। मसलन सिंगल पैरेंट होने की वजह से सारी जिम्मेदारी आप पर होती है, ऐसे में कई बार वह जिम्मेदारी आपको बोझ भी लगने लगती है। तो वहीं, कई बार बच्चा अगर बीमार पड़ गया तो आपको अपना काम छोड़कर उस पर ध्यान देना होगा। ऐसे में वित्तीय परेशानी आ सकती है। इस तरह सिंगल पैरेंटिंग की कुछ अच्छाइयां हैं तो कुछ बुराइयां भी हैं। आपको तय करना होगा कि आप सिंगल पैरेंटिंग कर सकते हैं या नहीं।

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