अगली बार जब आप अतिरिक्त फाइबर, ताकत और स्वाद के लिए सेब खाएं तो याद रखिएगा कि आप अपने गले से नीचे 100 मिलियन यानी की 10 करोड़ बैक्टीरिया को उतार रहे हैं हालांकि इसमें पाए जाने वाले माइक्रोब अच्छे हैं या बुरे इस बात पर निर्भर करता है कि सेब का विकास कैसे हुआ है।
अधिकतर माइक्रोब सेब के भीतर होते हैं लेकिन ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कौन सा बाइट खाया है चाहे वह जैविक ही क्यों न हों। शोधकर्ताओं का कहना है कि जैविक रूप से विकसित सेब अधिक विविध और संतुलित बैक्टीरिया से लैस होते हैं, जो उन्हें पारंपरिक सेबों की तुलना में स्वस्थ और स्वादिष्ट बनाते हैं।
ऑस्ट्रिया की ग्रेज यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलोजी के प्रोफेसर गेब्रियल बर्ग का कहना है, ''हमारे खाने में मौजूद बैक्टीरिया, फंगी और वायरस हमारी आंत में जाकर बस जाते हैं। किसी भी चीज को पकाने से ये समाप्त हो जाते हैं इसलिए कच्चे फल और सब्जियां विशेषकर हमारी आंत के लिए एक अच्छा स्त्रोत है।''
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जर्नल फ्रंटियर इन माइक्रोबायोलिजी में प्रकाशित अध्ययन में पांरपरिक स्टोर से खरीदे गए सेबों और जैविक रूप से विकसित सेबों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया की तुलना की गई।
तना, छिलका, गूदा, बीज और कैलेक्स को अलग-अलग कर उनका विश्लेषण किया गया। कुल-मिलाकर जैविक और परांपरिक सेबों में बैक्टीरिया की समान संख्या पाई गई।
बर्ग ने बताया, ''प्रत्येक सेब के तत्व की औसत को साथ रखकर हमने अनुमान लगाया कि एक 240 ग्राम सेब में करीब 10 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं।'' लेकिन सवाल ये उठता है कि ये बैक्टीरिया हमारे शरीर के लिए कितने प्रभावी है या कितने नुकसानदायक।
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बर्ग ने कहा, ''ताजा कटे, जैविक रूप से प्रबंधित सेबों में अधिक विविधता पाई गई। इसके साथ ही उनमें स्टोर या पारंपरिक रूप से बिकने वाले सेबों की तुलना में संतुलित बैक्टीरिया भी पाए गए।''
हमारे सेहत को प्रभावित करने वाले विशेष बैक्टीरिया समूह जैविक रूप से विकसित सेबों में अधिक पाए।
शोधकर्ताओं ने कहा, ''रोगजनक के रूप मे प्रसिद्ध सहित बैक्टीरिया का एक समूह, जिसे शिगेला कहते हैं वह पारंपरिक रूप से बिकने वाले सेबों में अधिक पाया जाता है लेकिन यह जैविक रूप से विकसित सेबों में नहीं मिलता। हालांकि हमारे सेहत के लिए फायदेमंद लैक्टोबैसिलस का फायदा इसके विपरीत है।''
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