डेंगू, चिकुनगुनिया, मलेरिया और वायरल बुखार आजकल के मौसम में बहुत तेजी से बढ़ने वाली बीमारियां हो गई हैं।
डेंगू, चिकुनगुनिया, मलेरिया और वायरल बुखार आजकल के मौसम में बहुत तेजी से बढ़ने वाली बीमारियां हो गई हैं। देशभर में कई लोग इन बीमारियों की गिरफ्त में हैं। आलम ये है कि कई लोगों की इन बीमारियों के चलते मौत भी हो गई है। आज की स्थिति ये है कि भारत के कई राज्य इसकी चपेट में आ चुके हैं, खासकर राजधानी दिल्ली। यह रोग मच्छर के काटने से होता है। डेंगू के बारे में सबसे खास बात यह है कि इसके मच्छर दिन के समय काटते हैं तथा यह मच्छर साफ पानी में पनपते हैं। डेंगू के दौरान रोगी के जोड़ों और सिर में तेज दर्द होता है और बड़ों के मुकाबले यह बच्चों में ज्यादा तेजी से फैलता है।
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डेंगू होने के कारण
- -एडीज इजिप्टी नामक मच्छर के काटने से डेंगू फैलता है। डेंगू का मच्छर अधिकतर सुबह काटता है।
- -यह मच्छर साफ रुके हुए पानी जैसे कूलर व पानी की टंकी आदि में पनपता है।
- -डेंगू एक तरह का वाइरल इंफेक्शन है। यह वाइरस चार तरह-डेनवी1,डेनवी 2, डेनवी 3 और डेनवी 4 का होता है। मच्छर के काटने से यह वाइरस खून में आ जाता है।
डेंगू के लक्षण
- -सर्दी लगकर तेज बुखार आना।
- -सिरदर्द होना।
- -आंखों में दर्द होना।
- -उल्टी आना।
- -सांस लेने में तकलीफ होना।
- -शरीर, जोड़ों व पेट में दर्द होना।
- -शरीर में सूजन होना।
- -त्वचा पर लाल निशान पड़ना।
- -कुछ लोगों को इस बीमारी में रक्तस्राव (ब्लीडिंग)भी हो जाता है। जैसे मुंह व नाक से और मसूढ़ों से। इस स्थिति को डेंगू हेमोरेजिक फीवर कहा जाता है।
- -पेशाब लाल रंग का आना, काले दस्त आना, इस बीमारी के कुछ अन्य लक्षण हैं।
इलाज
- -गंभीर स्थिति में मरीज को अस्पताल में दाखिल करने की जरूरत पड़ती है। हालांकि डेंगू की गंभीरता न होने की स्थिति में घर पर रह कर ही उपचार किया जा सकता है और पीडि़त व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती।
- -इस रोग में रोगी को तरल पदार्थ का सेवन कराते रहें। जैसे सूप, नींबू पानी और जूस आदि।
- -डेंगू वाइरल इंफेक्शन है। इस रोग में रोगी को कोई भी एंटीबॉयटिक देने की आवश्यकता नहीं है।
- -बुखार के आने पर रोगी को पैरासीटामॉल की टैब्लेट दें। ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रखें।
- -रोगी को यदि कहीं से रक्तस्राव हो रहा हो, तब उसे प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
- -डेंगू का बुखार 2 से 7 दिनों तक रहता है। इस दौरान रोगी के रक्त में प्लेटलेट्स की मात्रा घटती है। सात दिनों के बाद स्वत: ही प्लेटलेट्स की मात्रा बढ़ने लगती है। लक्षणों के प्रकट होने पर शीघ्र ही डॉक्टर से संपर्क करें।
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