
शिक्षा का अभाव, संसाधनों का अभाव और पारंपरिक विश्वास की वजह से लोगों में दांतों से जुड़े मिथक सच बन जाते हैं।
हिंदुस्तान में विज्ञान पर भरोसा कम है और अंधविश्वास पर ज्यादा है। यही वजह है कि कई बार अंधविश्वास के चक्कर में पड़कर लोग खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं। कोई मानसिक रोग हो या शरीर का कोई और रोग, इसे लेकर तरह-तरह के भ्रम लोगों के बीच काम करते हैं। इन्हीं मिथकों में से कुछ मिथक दांतों से संबंधित भी हैं। दांत हमारे चेहरे की खूबसूरती का सबसे जरूरी अंग होते हैं। लेकिन 90 फीसद लोग दांतों से जुड़ी परेशानियों को नजरअंदाज करते हैं। यही वजह है कि दांतों से जुड़े कई मिथक आज भी लोगों के बीच काम कर रहे हैं। दांतों से जुड़े मिथकों के बारे में हमारी बात एक प्रैक्टिसिंग डेंटिस्ट डॉ. तुलिका वाखलु (BDS, MDS) से हुई और उन्होंने बताया कि दांतों से जुड़े मिथक लोगों में जागरुकता की कमी की वजह से होते हैं। दांतों से जुड़े मिथक पनपते क्यों हैं, वो मिथक क्या हैं व उनकी सच्चाई क्या है, इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी डॉ तुलिका ने।
दांतों से जुड़े मिथक के पीछे कारण
1. शिक्षा का अभाव
भारत में लोगों में डेंटल मामलों को लेकर शिक्षा का अभाव है। यही वजह है कि वे गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं और डेंटल प्रोब्लम्स को जरूरी समस्या मानते ही नहीं हैं।
2. पारंपरिक विश्वास
भारत में लोग डॉक्टर से ज्यादा विश्वास ओझा पर करते हैं या नीम हकीम के पास मर्ज का इलाज कराने चले जाते हैं। उदाहरण के तौर पर लौंग रखने से दांत के दर्द से फौरी राहत मिल रही है तो वे उसे ही इस्तेमाल करेंगे और डॉक्टर के पास ही जाएंगे जब दर्द असहनीय हो जाए।
3. संसाधनों की कमी
डॉक्टर तुलिका बताती हैं कि दांतों से जुड़ी पेरशानियों से संबंधित कम ज्ञान होने की वजह और डेंटल सुविधाओं का अभाव होने पर पहाड़ों पर या दूरदराज के गांव जैसे क्षेत्र में रहने वाले लोग उसे एक बीमारी मानते ही नहीं। जिस वजह से वे दंत चिकित्सक और मॉडर्न साइंस को समझ ही नहीं पाते।
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दांतों से जुड़े कॉमन मिथक
मिथक 1. दांत निकालने से आंखें कमजोर हो जाती हैं
सच्चाई- डॉ. तुलिका ने बताया कि उनके पास ऐसे कई पेशेंट आते हैं जो यह मानते हैं कि ऊपर का दांत निकालने से आंखें कमजोर हो जाती हैं। जबकि यह सच्चाई नहीं है। यह केवल एक भ्रांति हैं। सही तकनीक से दांत को सुन्न करके निकाला जाता है। जिसेस पेशेंट का दांत बिना दर्द के निकल जाता है और आंखों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मिथक 2. दांत की सफाई से दांत ढीले होते हैं
सच्चाई- दांत की सफाई कराने से दांत ढीले नहीं होते हैं। डॉ. तुलिका का कहना है कि पेशेंट हमारे पास एडवांस्ड स्थिति में आता है जब उनके दांतों पर बहुत सारा कैल्कुलश जो दिखने में पीले रंग का पत्थर के समान होता है, वह जमा हो जाता है। इस गंदगी की वजह से मसूडे नीचे चले जाते हैं, दांत निकलने लगते हैं, लंबे दिखने लगते हैं और ठंडा गर्म लगने की भी समस्या हो जाती है। जब dentist पेशेंट की dental क्लीनिंग कर देता है तो पेशेंट को ऐसा लगता है कि कैल्कुलस नहीं बल्कि सफाई से ही उनके दांत हिल रहे हैं।
मिथक 3. दांतों से लंबा कीड़ा निकलता है
सच्चाई - डॉ. तुलिका ने बताया कि ये मिथक लोगों में बहुत कॉमन है कि सडे हुए दांतों में कीड़ा लग जाता है। डॉ. तुलिका का कहना है कि दांतों की सडन माइक्रोओर्गनिज्म की वजह से होती हैं, जो आंखों से नहीं दिखते। दांतों में कैविटी होने पर एक क्वालिफाइड डेंटिस्ट से ही सलाह लें और इलाज करवाएं।
मिथक 4. पायरिया होने पर दांतों को ब्रश न करें
सच्चाई- पायरिया होने पर मसूड़े कमजोर होने लगते हैं और उनसे खून निकलता है। लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि मूस़ड़ों से खून निकलने पर आप ब्रश नहीं करेंगे। अगर आप ऐसी स्थिति में ब्रश नहीं करेंगे तो मुंह से दुर्गंध आएगी और ये समस्या बढ़ती चली जाएगी। अगर मसूड़ों से ब्रश करने पर, खाना खाने पर या अपने आप ही खून आ रहा है तो घरेलू उपाय अपनाने से बेहतर है कि डॉक्टर के पास जाकर इसका जड़ से इलाज कराया जाए।
मिथक 5. अगर दांत में दर्द नहीं है तो डॉक्टर के पास न जाएं
सच्चाई- ये एक अजीब विडंबना है कि हम शरीर की सफाई रोजाना नहाकर कर लेते हैं, लेकिन दांतों की सफाई तो हाइजीन में शामिल ही नहीं करते। ये एक बड़ा मिथक है कि जब तक दांत में दर्द न हो तब तक डॉक्टर के पास न जाएं। लेकिन डेंटिस्ट का मानना है कि स्वस्थ मुस्कान के लिए हर छह महीने में डेंटिस्ट के पास जाना चाहिए। इनका रूटीन चेकअप जरूरी है।
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मिथक 6. दूध के दांतों को इलाज की जरूरत नहीं
सच्चाई- माता-पिता इस भ्रम में रहते हैं कि दूध दांत तो टूट जाएंगे इसलिए इनके इलाज अथवा उनके ब्रश या सफाई करने की जरूरत नहीं है, लेकिन डॉ. तुलिका का कहना है कि स्वस्थ दूध के दांत बच्चों को केवल खाना खाने में मदद करते हैं, बच्चों की सुंदरता को बढ़ाते हैं और पक्के दांतों को सही जगह आने में सहायता करते हैं। सडे हुए दूध के दांतों में दर्द, पस और सूजन हो जाता है जिससे बच्चे और उनके माता पिता की परेशानी बढ़ जाती है। इसलिए अगर दूध के दांतों का रंग बदलने लगे या कैविटी हो रही है तो dentist के पास जाएं।
मिथक 7. ओरल हेल्थ जनरल हेल्थ से संबंधित नहीं है
सच्चाई- यह तो सच है कि बहुत से लोग दांतों की परेशानी को नजरअंदाज करते हैं। इसी कड़ी में लोगों में ये सबसे बड़ा भ्रम है कि मुंह की स्वच्छता से शरीर की सेहत संबंधित नहीं है। सच्चाई यह है कि बहुत सी शरीर की बीमारियों के लक्षण मुंह से ही आते हैं। इसके अलावा डायबिटिज और दिल के रोग मुंह और दांतों की सेहत से संबंधित हैं।
डॉ. तुलिका का कहना है कि दांतों की परेशानियां आगे और न बढ़ें उसके लिए जरूरी है कि लोगों में दांतों से संबंधित पेरशानियों के प्रति जागरूकता पैदा की जाए। सामुदायिक स्तर पर इस जागरूकता की जरूरत है। जिन क्षेत्रों में डेंटल सर्विसिस नहीं पहुंचा पाती हैं वहां उन तक वे सेवाएं पहुंचानी चाहिए। इसे भ्रांतियों में पड़कर और न बढ़ाएं और समय रहते अपने नजदीकी डॉक्टर के पास जाएँ।
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