बच्चे बहुत ही संवेदनशील होते हैं और कोई भी बात उनके दिमाग में आसानी से घर कर जाती है। यानी बच्चों की परवरिश जिस माहौल में होती है वैसा ही उनका व्यवहार बाद में भी देखने को मिलता है। घर में होने वाले छोटे झगड़े हो या फिर कोई दूसरी बात बच्चे पर इसका बुरा असर पड़ता है और इससे उबरने में उसे वक्त लगता है। इसलिए बच्चों को घर नकारात्मक माहौल से दूर ही रखें, नहीं तो वह उसका अनुसरण करेगा और यह उसकी आदत के साथ व्यवहार में भी तब्दील हो जायेगा। बच्चों को सामान्य मानसिक आघात से बचाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें।
पारिवारिक झगड़े
अक्सर देखा गया है कि माता-पिता के बीच उत्पन्न झगड़ों का सीधा असर बच्चों के मस्तिष्क पर पड़ता है। आए दिन होते झगड़ों को देख-देख कर बच्चा भी झगड़ालू प्रवृत्ति का हो जाता है या तनाव में रहने लगता है। इसके अलावा तनावग्रस्त पेरेंट्स बच्चों से भी गुस्से से बात करती है, जो बच्चे के कोमल मन पर आघात पहुंचाता है और बच्चा अपने ही माता-पिता से डरने लगता है या फिर उनसे बिल्कुल ही कट जाता है। इस समस्या से उन्हें बचाने के लिए आपको उनके प्रति दयालु बनाना होगा। अपने बच्चे के व्यवहार पर ध्यान दिये बिना उन्हें शांत करने की कोशिश करनी होगी। अपने बच्चे से बातचीत के जरिये ही आप उसकी इस समस्या को दूर कर सकते हैं।
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घर के किसी सदस्य की मौत
घर में किसी सदस्य की मौत का भी बच्चे के मन और मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर पड़ता है, विशेष रूप से तब जब वह सदस्य या जानवर उसका प्रिय हो। वह इस घटना से चिंतित, एकांतप्रिय और बेचैन हो जाता है। साथ ही उसकी खाने की आदते असंतुलित हो जाती है और भावनाओं के बीच बहने लगता है। एक पल में चुप तो दूसरे पल मे ही उत्तेजित होने लगता है। अधिकांश बच्चे मौत को समझ ही नही पाते और उन्हे लगता है कि वह उनके जीवन में किसी भी समय वापस आ जायेगा। अगर आप बच्चा पूछने के लिए सवाल करता है तो उसका जवाब बहुत ही ईमानदारी से दें और इस तरह से दें कि उसे आसानी से समझ में आ सकें।
तलाक
माता-पिता के बीच तलाक का बच्चों के दिमाग पर बहुत गहरा असर पड़ता है। अकसर माता-पिता के अलगाव की वजह से बच्चों के मन में कई गलतफहमियां बैठ जाती हैं। जैसे वे अब अकेले हैं। उनकी सिर्फ मां हैं या उनके सिर्फ पिता हैं। उनके माता-पिता उनसे प्यार नहीं करते। वह इस बात को लेकर अंदर ही अंदर घुटता चला जाता हैं। अमेरिका के विस्कोंसिन-मैडिसन यूनिवर्सिटी के एक दल द्वारा पांच साल के दौरान किए गए इस अध्ययन में पाया गया है कि ऐसे बच्चे क्लास में काफी पीछे रह जाते हैं और चिंता, अकेलापन और दु:ख से ग्रस्त रहते हैं। यह बेहद जरूरी है कि आप अपने बच्चों से लगातार बातचीत करें और उनसे संपर्क बनाये रखें। यह बेहद जरूरी है कि आप अपने बच्चों की फिक्र करें। उनसे बात करें। दोस्ती करने की कोशिश करें और उन्हें यह एहसास दिलायें कि वे कहीं से भी कमजोर नहीं हैं।
एक्सीडेंट
अपनी आंखों से देखे गये एक्सीडेंट के प्रति बच्चों की जटिल प्रतिक्रिया होती है। इससे आघात होने के बाद बच्चों में भूख की कमी या बार-बार बुरे सपने देखना जैसे अनुभव होने लगते हैं। कुछ बच्चे तो बार-बार उस जगह को याद कर करके बहुत अधिक दुखी होने लगते है। उन्हें ऐसा भी लगता है कि कहीं ऐसी घटना उनके साथ घटित न हो जाये। बच्चों के इस मानसिक आघात को सुधारने के एक ही रास्ता है आप बच्चे के साथ उसके घटना के बारे में चर्चा करें। उन्हें इस पूरी घटना के बारे में फोटो की मदद से चर्चा करके भी बता सकते हैं।
ऐसी समस्याओं से बचने का एक ही रास्ता है बच्चों से बातचीत। इसलिए नियमित रूप से बच्चों से बातचीत करने के लिए समय निकालें। बातचीत बच्चों में समाज के साथ भावनात्मक संबंध के निर्माण के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
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