नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (एनएसीओ) के नए आंकड़ों के मुताबिक, देश में 15 से 49 की उम्र के बीच हर 100 लोगों में एचआईवी/ए़ड्स की दर की मात्र 0.22 है। हालांकि सरकार के लिए असल चुनौती इस सूची में हर साल शामिल हो रहे 10 हजार नए मरीज को रोकने की है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी। फिलहाल करीब 21.4 लाख लोग एचआईवी पॉजीटिव के साथ जिंदगी जीने को मजबूर है। इस आबादी में करीब 3 फीसदी बच्चे एचाईवी-एड्स से प्रभावित हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी का कहना है, ''अभी तक सरकारी रिकॉर्ड में 17 लाख लोग एचआईवी-एड्स जैसी गंभीर बीमारी से लड़ रहे हैं और इन 17 लाख में से 14 लाख से ज्यादा मरीज देश के विभिन्न अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। करीब 13 लाख मरीज सरकारी अस्पताल में जबकि एक लाख मरीज निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं और देश के सभी अस्पतालों में चिकित्सा सेवा उपलब्ध है।''
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अधिकारी ने कहा, '' हमारा लक्ष्य ट्रांसजेंडर, सेक्स वर्कर, ड्रग लेने वाले लोगों और अन्य लोगों जैसी लक्षित आबादी तक पहुंच बनाना और उन्हें शिक्षित करना है। जागरूकता अभियान चलाने में कई एनजीओ भी शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग भारत में एचआईवी-एड्स की स्थिति पर 2019 के अनुमान के साथ एजेंडे की तैयारी कर रहा है।''
इससे पहले सोमवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के साथ एक ज्ञापन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह इस तरह का अन्य सरकारी विभागों के साथ किया गया 18वां एमओयू है। डॉ. हर्षवर्धन ने एचआईवी-एड्स को रोकथाम के लिए नई इनोवेशन और नए विचारों की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा, ''स्वास्थ्य मंत्रालय 2030 तक एचआईवी-एड्स को समाप्त करने के सभी लक्ष्य तय करने के लिए प्रतिबद्ध है।''
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1980 से एनएसीओ इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई में एक अहम भूमिका निभा रहा है और इसी कारण देश में एचआईवी-एड्स की दर घट रही है। हालांकि एचआईवी और एड्स में मामूली अंतर होता है, जिससे पहचानना बेहद जरूरी है। इस कार्यक्रम ने 1995 में अपनी चरम पर रहे नए संक्रमण में करीब 80 फीसदी से ज्यादा की कमी लाई है। इतना ही नहीं 2005 में एड्स से संबंधित मौतों में भी कम से कम 71 फीसदी की कमी आई है। यूएनएड्स की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, नए संक्रमणों और एड्स से संबंधित मौतों में क्रमश 47 और 51 फीसदी की वैश्विक कमी दर्ज की गई है।
(एएनआई)
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