मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता तला था कि यदि नवजात शिशु का वजन औसत से आधा किलो अधिक हो, तो उसके लिए अपने जीवन में तपेदिक यानी टीबी से बचे रहना आसान हो जाता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
शोध का नेतृत्व कर रहे प्रो. एडुएड्रो विलामोर ने बताया कि जुड़वां बच्चों पर यह अध्ययन किया गया। उन्होंने बताया कि आधा किलो वजन ज्यादा हो, तो इसका फायदा लड़कों को लड़कियों के मुकाबले में अधिक होता है। शोध के अनुसार आधा किलो वजन अधिक होने पर लड़कियों में टीबी होने की आशंका 16 प्रतिशत और लड़कों में 87 प्रतिशत तक कम हो जाती है। यद्यपि अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि बच्चों में आगे चल टीबी होने का कोई संबंध उनके लालन-पालन से है या नहीं। परंतु यह शोध इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बीमारी के संक्रमण का खतरा दुनिया में एक-तिहाई लोगों के सिर पर मंडराता है। उल्लेखनीय है कि एचआईवी के बाद टीबी दुनिया का नंबर दो जानलेवा संक्रामक रोग है। यद्यपि पूरी दुनिया में औसत के कम वजन के शिशुओं का जन्म होता है। लेकिन विकासशील देशों में यह आंकड़ा बहुत ज्यादा है। यह शोध गर्भवती महिलाओं का खयाल रखे जाने का एक और कारण मुहैया कराता है।
टीबी पर अन्य शोध
दुनिया भर में हर बीस सेकंड में कोई न कोई इंसान टीबी, यानी तपेदिक से मर रहा है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी रोकथाम के लिए योजना बनाई। इस विषय में विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हर साल तकरीबन 20 लोग इस गंभीर बीमारी के कारण दम तोड़ बैठते हैं। वहीं हर साल 90 लाख लोगों को यह बीमारी अपना शिकार बना रही है। देखा गया है कि बिते कुछ वर्षों से यह बीमारी तेजी से फैल रही है।
दरअसल जिस व्यक्ति को एड्स के वॉयरस लग गया हो, उसे टीबी होने और उससे मृत्यु होने का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है। यही नहीं, उन बैक्टीरिया के प्रकारों की संख्या भी बढ़ रही है, जिन पर क्षयरोग की दवाएं बेअसर होती हैं। इसी के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने, 2006 में, एक योजना बनायी थी जिसमें उनका लक्ष्य इस बीमारी को पूरी तरह रोकना ना ही सही, 2015 तक इस रोग के बढ़ने को कम करना था।
स्वास्थ्य से अलग इसका एक दूसरा पहलू भी है। जिन परिवारों में टीबी के कारण कमाऊ व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो उन पर आर्थिक संकट आ जाता है। जिस कारण उनके घर में कमाने वाला कोई नहीं रहता, बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ता है और जिन महिलाओं और बच्चों को टीबी हो जाता है, परिवार उनका बहिष्कार कर देते हैं।
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इलाज आसान नहीं
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार टीबी के संक्रमण का हर नौवाँ मामला बैक्टीरिया कि किसी ऐसी प्रतिरोधी किस्म को दर्शाता है, जिस पर एक नहीं, बल्कि कई प्रकार की दवाएं बेअसर होती हैं। जिस कारण हर बीसवें रोगी को सही ढंग का उपचार नहीं मिल पाता। हालांकि अमरीकी वैज्ञानिकों ने दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने की टीबी के बैक्टीरिया की प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक नया कंप्यूटर प्रोग्राम बनाया है। इस प्रोग्राम के तह़त एक देश से दूसरे में जाने वाले रोगियों का इलाज करने का एक बिल्कुल नया और प्रभावी रूप बनाया गया है। भारत में टीबी के रोगियों की संख्या दुनिया के किसी भी अन्य देश से अधिक है। संसार के 30 प्रतिशत टीबी रोगी भारत के ही हैं।