न चाहते हुए भी निकल जाता है पेशाब, तो हो सकती है दिमाग से संबंधित ये गंभीर बीमारी

यूरिनरी इकंटिनेंस दिमाग से संबंधित बीमारी है। इस रोग में तनाव के चलते कई बार रोगी का न चाहते हुए भी पेशाब निकल जाता है।
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न चाहते हुए भी निकल जाता है पेशाब, तो हो सकती है दिमाग से संबंधित ये गंभीर बीमारी

आमतौर पर छोटे बच्चे ही पेशाब लगने पर अपने कपड़े गंदे करते हैं। बच्चा जब थोड़ा बड़ा हो जाता है, तो वो पेशाब, मल, प्यास आदि को थोड़ी देर रोकना सीख जाता है। लेकिन कुछ लोगों में वयस्क होने के बाद भी ये आदत बनी रहती है। कुछ लोगों में ये आदत के कारण हो सकता है जबकि ज्यादातर लोगों में ये किसी न किसी रोग के कारण होता है। ऐसा ही एक रोग है यूरिनरी इकंटिनेंस। ये दिमाग से संबंधित बीमारी है। इस बीमारी के लक्षण पार्किंसन रोग से मिलते जुलते हैं मगर इसमें मरीज का न चाहते हुए या रोकने के बावजूद पेशाब निकल जाता है।

क्या है यूरिनरी इनकंटिनेंस

इस बीमारी के तहत हालांकि मरीज यूरिन कंट्रेाल नहीं कर पाता। लेकिन इसी बीमारी के तहत अवसाद बढ़ने लगता है जैसा कि पर्किंसन डिजीज में भी देखा जाता है। बहरहाल यूरिनेरी इनकंटिनेंस के चलते मरीज को तनाव होता जिस कारण मरीज के न चाहते हुए भी पेशाब निकल जाता है। यह महिला और पुरुष को अलग अलग तरह से प्रभावित करता है। इतना ही नहीं बच्चों में भी इस तरह की बीमारी देखी जा सकती है। इस तरह की बीमारी के कारण मरीज शर्मसार रहता है जिस कारण वह लोगों से ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करता। नतीजतन उसमें गुस्सा और चिड़चिड़ापन तक भर जाता है। कई बार गुस्सा इस हद तक भी हो सकता है कि उसका शरीर कांपने लगे जो कि मरीज के वश में ही न हो।

दिमाग से जुड़ी अन्य खतरनाक बीमारियां

पार्किंसन रोग

पर्किंसन डिजीज क्रोनिक और प्रोग्रेसिव मूवमेंट डिसआर्डर है। इसके लक्ष्ण एक बार उभरने के बाद धीरे धीरे बुरे से बुरे स्तर पर पहुंच जाते हैं। मौजूदा समय में इसका कोई इलाज नहीं है और न ही इसकी वजह से हम पूरी तरह अवगत हैं। हालांकि कुछ दवाओं के जरिये इसके असर को कम किया जा सकता है। पर्किंसन डिजीज वास्तव में मस्तिष्क में मौजूद वाइटल नर्व सेल को पूरी तरह नष्ट कर देता है या फिर उसे पूरी तरह संकेत नहीं पहुंच पाते। पर्किंसन डिजीज शुरुआती चरण में न्यूरोन्स को प्रभावित करता है। यही नहीं यह हमारे मूवमेंट को अपने जद में ले लेता है। कहने का मतलब यह कि हमारा खुद अपने ऊपर वश नहीं चलता। बहरहाल पर्किंसन डिजीज से मिलते जुलते तमाम ऐसी तमाम बीमारियां हैं जो धीरे धीरे अपने पांव पसार रही है। हम यहां ऐसी ही बीमारियों पर चर्चा करेंगे।

अवसाद

अवसाद एक ऐसी बीमारी है जो धीरे धीरे हमारी जीवनशैली का हिस्सा बनती जा रही है। हर दस में एक व्यक्ति ऐसा है जो जीवनभर के लिए अवसाद से ग्रस्त हो जाता है। अवसाद के दौरान भी हमारा खुद पर वश नहीं चलता। हद तो यह है कि मरीज आत्महत्या करने की कोशिश कर बैठता है। कई बार तो मरीज को अपनी जान तक गंवानी पड़ जाती है। अवसाद के पनपने के पीछे कई वजहें छिपी है। किसी को सामाजिक परेशानियां होती हैं तो किसी को मानिकस समस्या होती है। कुछ पर्यावरण के चलते भी अवसाद से परेशान रहते हैं। बहरहाल अवसाद का उम्र दर उम्र प्रभाव अलग अलग देखने को मिलता है। हालांकि अवसाद शारीरिक से ज्यादा मानसिक समस्या है। अतः जैसे आप खुद में कुछ अलग अनुभव करें या फिर ज्यादा चिड़चिड़े हो जाएं तो तुरंत अपने दोस्तों और परिजनों की मदद लें।

हटिंगटन्स डिजीज

हटिंगटन्स डिजीज एक काम्प्लेक्स डिसआर्डर है। इसके तहत मरीज की सोचने, समझने, महसूसने की क्षमता प्रभावित होती है। पर्किंसन डिजीज की तरह समय के साथ साथ इसके लक्षण भी अपनी चरम तक पहुंच जाते हैं। हटिंगटन्स डिजीज के मरीजों में देखा गया है कि यह पारिवारिक बीमारी है। यह आसानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होती रहती है। असल में इसे हम आनुवांशिक समस्या भी कह सकते हैं। यह काफी हद तक अवसाद की तरह है। इसमें मूड स्विंग होना, गुस्सा आना, अवसाद होना आम बात है। यही नहीं मरीज की इसमें निर्णय लेने की क्षमता से लेकर याद्दाश्त तक प्रभावित होती है। साथ ही शरीर में कुछ मूवमेंट होते हैं जो हमारे वश में नहीं होते। खासकर अंगुलियों, चेहरे आदि हिस्सों में। हटिंगटन्स डिजीज के ट्रीटमेंट को बीच रास्तें में नहीं रोका जा सकता। बहरहाल इसके मरीज को चाहिए कि प्रतिदिन एक्सरसाइज करे और हर समय किसी न किसी अच्छे काम में संलग्न रहें ताकि मूड सकारात्मक बना रहे।

ट्रेमर

ट्रेमर भी काफी हद तक पर्किंसन डिजीज की तरह है। इसमें भी अनैच्छिक और रिद्मि मूवमेंट होते हैं जो कि मरीज के वश में नहीं होते। ट्रेमर के तहत मरीज के तमाम हिस्सों में मूवमेंट होते रहते हैं मसलन हाथ, कंधे, सिर, पांव आदि। असल में ट्रेमर न्यूरोलोजिकल डिसआर्डर के चलते होता है। इसके अलावा ट्रेमर के कारण ब्रेन इंज्युरी, हृदयाघात होने का खतरा भी होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक जिंदगी भर ट्रेमर जैसे का तैसा ही रहता है। इससे आसानी से पीछा नहीं छूटता। यही कारण है कि कई बार ट्रेमर मरीज के लिए शर्म का विषय बन जाता है। यही नहीं यह बीमारी शरीर के साथ साथ मानसिक रूप से भी मरीज को आहत करती है।

डिमेंशिया

डिमेंशिया के तहत मरीज की याद्दाश्त कमजोर होना, शब्दों को पहचानने की भूल करना, निर्णय लेने की क्षमता का प्रभावि होना शामिल है। इसकी समस्या दिन पर दिन बुरे चरम तक भी पहुंच सकती है। डिमेंशिया भी पर्किंसन डिजीज की तरह ब्रेन सेल में मौजूद न्यूरोन के आहत होने से होता है। इसका रिश्ता पारिवरिक इतिहास से भी है। इसके अलावा यदि मरीज काफी ज्यादा शराब पीता है तो भी उसे डिमेंशिया होने का खतरा होता है

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