इसलिए 50 की उम्र के बाद तेजी से बढ़ता है माइग्रेन का खतरा

जिस तरह बच्चा बचपन में शैतानियां करता है उसी तरह बुढ़ापे में भी व्यक्ति कई ऐसे काम करता हैं जो उन्हें नहीं करने चाहिए।
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इसलिए 50 की उम्र के बाद तेजी से बढ़ता है माइग्रेन का खतरा

जिस तरह बच्चा बचपन में शैतानियां करता है उसी तरह बुढ़ापे में भी व्यक्ति कई ऐसे काम करता हैं जो उन्हें नहीं करने चाहिए। कहते हैं कि बचपन में बुढ़ापे में व्यक्ति की मनोदशा लगभग एक जैसी ही होती है। बढ़ती में व्यक्ति को कई तरह की मानसिक या मनोवैज्ञानिक समस्याएं घेर लेती हैं। उम्र के दूसरे पड़ाव में होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एक बहस का विषय हो सकती है। इस उम्र में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और उसकी प्रकृति के अनुसार उससे लड़ने के लिए डॉक्टर बहुत सारी सलाह देते हैं। लेकिन कई बार डॉक्टर की सलाह भी काम नहीं आती है। यानि कि कहने का मतलब ये है कि बढ़ती उम्र के पड़ाव में व्यक्ति को खुद में भी कई बदलाव करने की जरूरत होती है। नहीं तो व्यक्ति बुरी तरह से मनोवैज्ञानिक बीमारियों की चपेट में आ जाता है। 

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क्यों होता है ऐसा?

जब व्यक्ति 50 और 60 साल के बीच में होता है तो उसे अपने दैनिक जीवन और दिनचर्या में काफी बदलाव करना पड़ता है। अचानक होने वाले इन बदलावों को व्यक्ति जल्दी से स्वीकार नहीं कर पाता है। जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण इसे इस बदलाव के अनुकूल उसे ढालने में मदद करता  है।जिन लोगों की पहचान उनकी नौकरी या व्यवसाय से जुड़ी रहती है वैसे लोगों को सेवानिवृति के बाद मानसिक तौर पर अस्वस्थ्य होने की संभावना अधिक रहती है। जिन लोगों में बढती उम्र का एहसास कुछ ज्यादा होता है और वह देखने में भी बुढ़े लगने लगते है उनमें स्वंय को लाचार और असहाय समझने जैसी हीन भावना आ जाती है। जो इस रोग का कारण बनते हैं।

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इससे होने वाले नुकसान

मानसिक रोग होने के कई नुकसान हो सकते हैं। उम्र बढने के साथ अचानक मरने का विचार मन में आने लगना। अपने जीवन में होने वाले बदलावों के प्रति असंतुष्ठि का भाव और कुछ अधुरे सपने और दमित इच्छाओं को पानेे की अपेक्षाएं। अपने परिवार में पत्नी, बच्चे या किसी अन्य इष्ट की मौत हो जाने या किसी सहकर्मी की मौत से भी व्यक्ति व्यथित हो जाता है। व्यक्ति को लगता है कि वह दूसरों पर बोझ बन रहा है और अब उसकी किसी को जरूरत नहीं है। परिवार में बच्चों द्वारा अपने माता पिता को घर में अकेला छोड़ कर खुद अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहने की बढ़ती प्रवृति के कारण भी बूढे लोगों में एक तरह से असुरक्षा का भाव पनपने लगता है। वह भावनात्मक रूप से काफी संवेदनशील हो जाता है। जिसके चलते व्यक्ति हार्ट अटैक, डिप्रेशन और बीपी हाई व लो जैसे रोगों से घिरने लगता है।

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