पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति कैसा व्यवहार रखें, रिश्ते और परिवार के बीच संतुलन कैसे बिठाएं और कैसे शादी को सफल बनाएं, इसके लिए समाज में कई नियम हैं। मगर समय के साथ कई धारणाएं टूट रही हैं और कुछ नए नियम भी बन रहे हैं। आज हम इसी विषय पर आपसे बात कर रहे हैं। शादियां स्वर्ग में तय होती हैं...। शादी के बारे में सबसे चर्चित आम धारणा यही है, लेकिन इस धारणा का दूसरा पहलू यह है कि शादी तय कहीं भी हो, उसे निभाना तो इसी धरती पर पड़ता है।
आज रिश्ते जिस रफ्तार से दरक रहे हैं, उससे कई पुरानी धारणाएं ध्वस्त होती दिख रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि शादी को लेकर जो ढेरों मिथक हैं, वे वास्तविकता के धरातल पर गलत साबित हो रहे हों? या फिर लोगों की जिंदगी में आने वाले बदलाव इतने बड़े हैं कि शादी के पुराने स्वरूप के साथ उनका तालमेल नहीं बैठ पा रहा है?
शादी करो, एक-दूसरे से प्यार करो, जीवन साथ मिल कर जिओ, बच्चों और परिवार की खातिर साथ चलो...बड़ा सीधा सा अर्थ रहा है शादी का। हमारे दादा-दादी, नाना-नानी, उनके माता-पिता और हमारे माता-पिता ने यही किया। फिर आखिर यह रिश्ता इतना जटिल कैसे बन गया कि इस पर दुनिया भर में सर्वे और शोध करने पड़ें! शादी को बचाने के लिए लेख लिखने पड़ें और आए दिन काउंसलर्स को दंपतियों की सिटिंग्स लेनी पड़ें।
यह सच है कि हर व्यक्ति रिश्तों को बचाना चाहता है। इसके बावजूद जिंदगी में हमेशा अपना चाहा नहीं हो पाता। शादी के बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है। शादी यकीनन जिंदगी का सबसे करीबी रिश्ता है, लेकिन इसके बारे में भी कुछ ठोस सच्चाइयों को पहले ही देख-समझ लें तो रिश्ता बेहतर हो सकता है।
प्यार के बिना कहे ही बहुत सी चीजें समझ ली जाती हैं। सच यह है जो मन की बातें बिना कहे समझ ले, ऐसा पार्टनर सिर्फ किताबों या फिल्मों में मिलता है। इच्छाओं, जरूरतों, अपेक्षाओं को खुलकर बताने के बाद भी जरूरी नहीं कि पार्टनर हर बात को वैसे ही समझेगा, जैसा आप समझाना चाहते हों। समझ भी ले तो वह उसे पूरा करेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। वास्तविकता यह है कि साथी को अपने एहसासों-इच्छाओं के बारे में बताएं और इस हकीकत को जान लें कि बिना बताए वह कुछ नहीं समझेगा। आपकी बातों से वह समझ सकता है कि रिश्ते से आपकी अपेक्षाएं क्या हैं। रिश्ते में तनावमुक्त रहने के लिए संवाद ही एकमात्र जरिया है।
दोनों को बराबर काम करना चाहिए। सच यह है! हो सकता है कि यह बात फेमिनिज़्म के कुछ खिलाफ जाए, लेकिन सच्चाई यही है कि शादी में हमेशा 2+2=4 नहीं होता। कई बार एक पार्टनर अपना 80 प्रतिशत देता है, मगर दूसरा 20 प्रतिशत ही दे पाता है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। काम के लंबे घंटे, बीमारी, तनाव या दबाव, थकान...। पत्नी/पति को ऑफिस से आते-आते रात के 9-10 बज जाएं और पार्टनर चाहे कि वह आकर किचन संभाल ले तो यह अपेक्षा शादी के लिए ठीक नहीं।
घरेलू कार्यों का बराबर बंटवारा कई बार व्यावहारिक नहीं होता। यह बात सच है कि काम बांटने से दंपती खुश रहते हैं, लेकिन इस नियम को पत्थर की लकीर बना कर नहीं चला जा सकता। शादी में फिफ्टी-फिफ्टी के फेर में रहेंगे तो दुखी रहेंगे और दुखी करेंगे। शादी तभी अच्छी चलती है, जब पार्टनर को खुश रखने की इच्छा पति-पत्नी दोनों में समान रूप से हो। कौन परिवार के लिए ज्यादा करता है? कौन ज्यादा जिम्मेदारियां उठाता है....इन बातों पर बहुत सोचने से रिश्ते को नुकसान होता है। यानि कि कहने का अभिप्राय है कि इसी तरह हमारे समाज में कई तरह की धारणाएं बनी हुई है।
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