बीते कुछ सालों में हमने पारिवारिक मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझने में बेहतर काम किया है। लेकिन, जब बात पिता बनने जा रहे पुरुषों की आती है तो, हम अभी भी अंधकार में खड़े नज़र आते हैं। नए पिता बनने जा रहे पुरुषों के साथ होने वाले परिवर्तनों और चुनौतियों से संबंधित बातें प्रसवकालीन और प्रसवोत्तर स्वास्थ्य की चर्चाओं से अनुपस्थित हैं। कई पुरुषों के लिए, पिता बनना भ्रामक, दर्द दने वाला और तनावपूर्ण होता है। अनुमानों से पता चला है कि नए पिता बनने जा रहे पुरुषों में से 25 प्रतिशत से अधिक पहले साल में अवसाद का अनुभव करते हैं, जोकि न तो पहचाना जाता है और न ही इसका इलाज किया जाता है।
शुक्र से एक छोटे से, शोधकर्ताओं और चिकित्सकों के उभरते समूह ने पहले पहल पिता बनने जा रहे पुरुषों के साथ होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों और चुनौतियों पर प्रकाश डालाने और उनकी मदद की दिशा में काम करना शुरू किया है।
पिता बनना एक बड़ा जैविक और भावनात्मक परिवर्तन है
पिता बनना जैविक, मनोवैज्ञानिक और वास्तविक परिवर्तन से भरा होता है। ऐसा नहीं कि मां के लिये ये समय आसान होता है, हालांकि महिलाओं के लिये काउंसलिंग की काफी सुविधाएं होती हैं और सामाजिक तौर पर भी उन पर काफी ध्यान दिया जाता है। लेकिन पुरुषों पर इस संबंध में किसी का ध्यान नहीं जाता है। बच्चे के जन्म के बाद के पहले वर्ष में हार्मोनल बदलाव के जवाब में पुरुष के मस्तिष्क के पूरे क्षेत्रों का विकास होता है, जोकि उसे नवजात शिशु की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण कौशल सिखाता है। इस समय, ठीक महिलाओं में होने वाले अनुकूल हार्मोनल बदलावों की ही तरह, पुरुषों में भी ये बदलाव नैदानिक अवसाद या मूड विकार पैदा कर सकते हैं।
इसलिये जरूरी है कि नए पिताओं के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी ध्यान दिया जाए और इस दिशा में उपयुक्त डाटा और निदान व उपचार की सुविधआएं उपलब्ध करायी जाएं। साथ ही समाज में भी इस संबंध में जागरूकता और जानकारी का प्रसार किया जाए। इस ततरह न सिर्फ नए पिता बनने जा रहे पुरुषों की मदद होगी, बल्कि यह भविष्य व वर्तमान में भी शिशु और पूरे परिवार के लिये बेहद लाभप्रद रहेगा।
Iamge Source - Getty
Read More Articles On Parenting in Hindi.