हार्ट अटैक के बाद के जरूरी 90 मिनट

क्या आप जानते हैं कि हार्ट अटैक आने पर 90 मिनट के भीतर यदि थ्रंबोलाइसिस तकनीक की मदद से दवाएं देकर हार्ट की नलियों की रुकावट को खोल दिया जाए, तो मरीज की जान को बचाया जा सकता है।
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हार्ट अटैक के बाद के जरूरी 90 मिनट

यदि समय का ध्यान रखा जाए, और सही जानकारी हो तो हार्ट अटैक के मरीजों की जिंदगी बचाना आसान हो जाता है। हार्ट अटैक आने पर 90 मिनट के भीतर यदि थ्रंबोलाइसिस तकनीक की मदद से दवाएं देकर हार्ट की नलियों की रुकावट को खोल दिया जाए, तो मरीज की जान बचाई जा सकती है। हार्ट अटैक आने के बाद के 90 मिनट बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और इस दौरान किया गया उपचार ही मरीज को जीवन दे सकता है।

 

Heart Attack in Hindi

 

वहीं परकुटेनिय ट्रांसलिमिनल कोरोनरी एंजियोप्लास्टी (पीटीसीए) की मदद से कुछ ऐसे उम्रदराज मरीजों की भी जान बचाई जा सकती है, जिन्हें लो ब्लडप्रेशर की दिक्कत होती है। लेकिन इस तकनीक में भी समय का उतना ही महत्व होता है। ऐसे मामलों में अटैक आने से ट्रीटमेंट शुरू तक ज्यादा से ज्यादा 90 मिनट का अंतर ही होना चाहिए। इसीलिये हार्टअटैक में यह समय गोल्डन टाइम कहा जाता है।  

अटैक आने के तुरंत बाद जीभ के नीचे एस्पिरिन की एक गोली रखने से भी जोखिम काफी कम हो सकता है। इसके साथ-साथ समय के साथ हार्ट अटैक के लक्षणों में आ रहे अंतर को समझना भी बेहद जरूरी होता है। उदाहरण के लिये सामान्य लोगों से उलट ज्यादातर डायबिटिक लोगों में हार्ट अटैक आने पर  सीने में दर्द होने के बजाय सांस फूलने, घबराहट, छाती में भारीपन, चक्कर आना तथा जबड़े में जकड़न जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

 

हार्ट अटैक के बाद

 

ध्यान रखें कि रोगी नहीं बता सकता कि उसे ये तकलीफ होने वाली है। तकलीफ हो जाने पर ही उसे पता चलता है, उसकी छाती में असहनीय पीड़ा होती है और उसकी नाड़ी की गति धीमी व कमजोर हो जाती है। चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है, सांस फूलने लगती है व ठंडे पसीने आते हैं। वह निढाल और बेबस सा हो जाता है।

तो यदि रोगी को ये लक्षण हों तो शोर न करें बल्कि सचेत व सजग बने रहें। डाक्टर को शीघ्र बुलाएं या रोगी को सबसे पास के अस्पताल ले जाएं। ध्यान रहे इस दौरान जो करें संयमित होकर करें। रोगी के बटन खोलें और कपड़े ढीले कर दें। यदि उसकी रीढ़ की हड्डी या छाती में तेज दर्द हो रहा हो तो गर्म या ठंडे पानी का स्पंज करें। गर्म पानी में भिगोकर और फिर निचोड़ कर पट्टी को हृदय के आस पास की जगह पर रखें। जब तक रोगी की धड़कन सामान्य न हो जाए या आप डाक्टर के पास न पहुंच जाए, रोगी का उपचार जारी रखें। रोगी के आस-पास शांति बनाए रखें। तेज रोशनी और शोर शराबा न करें और बार-बार पट्टी उठा कर त्वचा को साफ करते रहें। हो सके तो रास्ते में डॉक्टर से फोन पर संपर्क बनाएं और उसके अनुदेशों को पालन करें।



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