बच्चों पर कभी न डालें ये 5 दबाव, हाइपर पैरेंटिंग से होते हैं डिप्रेशन के शिकार

कुछ मां-बाप बच्चों के जीवन से जुड़ा हर फैसला स्वयं करते हैं और उनपर हर बार हर क्षेत्र में सफल होने का अनावश्यक दबाव बनाते हैं। इसे ही हाइपर पैरेंटिंग कहते हैं।
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बच्चों पर कभी न डालें ये 5 दबाव, हाइपर पैरेंटिंग से होते हैं डिप्रेशन के शिकार

हर मां-बाप अपने बच्चे को बेहतर और योग्य बनाना चाहते हैं। बच्चे के भविष्य के लिए उनकी अपनी कुछ आशाएं-आकांक्षाएं होती है। कई मां-बाप बच्चों को अपनी मर्जी से सीखने-समझने और निर्णय लेने की छूट देते हैं, वहीं कुछ मां-बाप बच्चों के जीवन से जुड़ा हर फैसला स्वयं करते हैं और उनपर हर बार हर क्षेत्र में सफल होने का अनावश्यक दबाव बनाते हैं। इसे ही हाइपर पैरेंटिंग कहते हैं।

बच्चों के दिमागी विकास पर पड़ता है असर

भारत में- खासकर शहरों में- बच्चों पर बचपन से ही इतने सारे बोझ डाल दिए जाते हैं कि उसका बचपन मर जाता है। स्कूलों के लंबे और बोझिल सिलेबस के बाद कोचिंग क्लासेज, स्पोर्ट्स कोचिंग, कंप्यूटर क्लासेज, लैंग्वेज क्लासेज, स्विमिंग क्लासेज, कराटे क्लासेज आदि के कारण बच्चों को बिल्कुल समय नहीं मिलता है। छुट्टियों में भी बच्चों को समर कैंप्स, एडवेंचर कैंप्स, नेचर कैंप्स में भेज दिया जाता है। बच्चों पर इतने सारे दबावों का कारण है मां-बाप का बच्चों के भविष्य के प्रति सशंकित होना। ऐसे मां-बाप की बच्चों के भविष्य के प्रति आशंका कई बार बच्चों का बचपन खराब कर देती है। ऐसे दबावों से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और विकास पर असर पड़ता है और कई बार वो बड़े होने के बाद भी असामान्य व्यवहार करते हैं। आइये आपको बताते हैं कि बच्चों पर किन बातों का दबाव बनाना गलत है।

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मां-बाप की क्या है जिम्मेदारी

मां-बाप होने के नाते आपकी जिम्मेदारी ये है कि आप अपने बच्चे को जीवन की चुनौतियों और संघर्षों के लिए तैयार करें। वो अपने लिए जैसा भविष्य चुने उसमें अगर मदद कर सकें, तो करें। मगर इसका मतलब ये नहीं है कि बच्चों का भविष्य आप ही तय करें। हां ये बात अलग है कि बचपन में बच्चों का दिमाग इतना विकसित नहीं होता है कि वो स्वयं के लिए सही और गलत का निर्णय कर सकें। इसलिए बचपन में जब कभी बच्चे गलत निर्णय लें या गलत काम करें, तो उन्हें टोकें और रोकें। मगर इसके साथ ही उनके दिमाग को इस तरह से विकसित होने का अवसर दें कि वो अपने निर्णय स्वयं ले सके।

बच्चों को क्रियेटिव करने से न रोकें

बच्चे अगर पढ़ाई से अलग कुछ क्रियेटिव करना चाहते हैं, तो उन्हें करने दें। आजकल हर क्षेत्र में कैरियर की अपार संभावनाएं हैं। इसके अलावा कई बार कुछ बच्चे गॉड गिफ्टेड होते हैं, जो कोई खास हुनर लेकर पैदा होते हैं, जिसे तराशने की जरूरत होती है। हालांकि अकादमिक पढ़ाई एक जरूरी और महत्वपूर्ण हिस्सा है हमारे जीवन को सुरक्षित बनाने का मगर सिर्फ अकादमिक पढ़ाई किसी की भी सफलता का मानक नहीं हो सकती है।

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बच्चों को मारें नहीं

क्या आपको पता है हमारा दिमाग हमेशा वही काम चुनता है जिसे वो सबसे सही समझता है। इसमें हमारा वश नहीं है और हम अपने आप ही ऐसा करते हैं। जब बच्चे कोई काम करते हैं, तो वो अपनी समझ के अनुसार करते हैं। गलत काम करने या गलत निर्णय लेने पर आप बच्चों को प्यार से समझाएं या जरूरत हो तो थोड़ा डाटें, मगर मारें कभी नहीं। बच्चों को मारने से बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है और वो अगली बार वही गलती होने पर आपसे झूठ बोल सकता है।

बच्चों पर हर समय दबाव न बनाएं

बच्चों पर हर समय पढ़ने और कुछ सीखते रहने का ही दबाव न बनाएं। हम जितना देखकर सीखते हैं उससे ज्यादा करके सीखते हैं और जितना करके सीखते हैं उससे कहीं ज्यादा सोचकर सीखते हैं। बच्चों को कल्पना के लिए समय दें। उन्हें टीवी पर कुछ मनोरंजक चीजें जैसे साइंस फिक्शन, कार्टून, एडवेंचर, हिस्ट्री आदि के कार्यक्रम देखने दें, कोर्स से अलग कुछ किताबें पढ़ने दें और आउटडोर गेम्स खेलने दें।

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