किसी भी आपदा से बुरा होता है, उसके बारे में अफवाहों का फैलना। सही जानकारी न होने के चलते लोग तरह-तरह के मिथ फैला देते हैं और एक डर का माहौल बन जाता है। लेकिन भले ही एबोला वायरस कितनी भी बड़ा खतरा बन जाए, जागरूक रहने पर आप खुद को सुरक्षित रख सकते हैं। तो चलिये यहां हम एबोला के बारे में कुछ ऐसे जरूरी तथ्यों की जानकारी देते हैं, जो आपके डर को कम करने में मदद कर सकते हैं।
पिछले महीने संयुक्त राज्य अमेरिका में एबोला का प्रकोप काफी देखा गया और ये सुर्खियों में भी था। इसी के चलते पीरे देश को इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार किया गया। पश्चिम अफ्रीका में केन्द्रित यह प्रकोप किसी भी देश के लोगों के जीवन के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। और ब्रिटेन व अमेरिका आदि में इसका उदाहरण देखा भी गया।
अभी तक का सबसे बड़ा प्रकोप बनी इस महामारी ने अब तक काफी जीवन छीने हैं। और अभी भी यह अपनी पहुंच फैला रहा है।
क्या है एबोला
एबोला वायरस एक घातक संक्रमित बीमारी है। जिसमें बुखार और अंदरूनी रक्तस्राव होता है। यह माहामारी शरीर के संक्रमित तरल पदार्थों के संपर्क के कारण होती है। दुर्भाग्यवश इस बीमारी से रोगी को मृत्यु की आशंका 90 प्रतिशत तक होती है। अभी तक यह बीमारी सबसे अधिक अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में देखने को मिली है। यह और भी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बीमारी का अभी तक कोई पक्का इलाज नहीं ढूंढा जा सका है।
इतिहास की सबसे घातक बीमारियों में से एक एबोला के फैलने के जवाब में, सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी, पश्चिम अफ्रीका में इस रोग के होने व इसके प्रसार को रोकने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
साथ ही, दुनिया भर के शोधकर्ता एबोला के इलाज और इसकी रोकथाम के तरीके विकसित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
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कहां हुई शरुआत
1976 में पहली बार जायरे (वर्तमान कोंगो लोकतांत्रिक गणराज्य) में एबोला वायरस के मामले की सूचना मिली। मानव और बंदरों में इस वायरस से उग्र रक्त-शोध हो जाता है। जिसकी वजह से शरीर की रक्तवाहिकाएं खराब होने लगती हैं और आतंरिक रक्तस्राव होने लगता है। इसमें संक्रमित व्यक्ति को बहुत तेज बुखार हो जाता है। अर्थात एबोला वायरस से संक्रमित प्रति 5 व्यक्तियों में से 4 की मृत्यु हो जाती है।
एबोला वायरस की पांच प्रजातियां।
अभी तक एबोला वायरस की पांच प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है। इन पांचों में से चार वायरस इंसानों में रोग का कारण बनते हैं। जायरे एबोलावायरस, सूडान एबोलावायरस, कोट डी'इवोइरे एबोलावायरस तथा बुन्दीबुग्यो एबोलावायरस पहली चार प्रजातियां हैं। वहीं पंचवां, रेस्टन नामक एबोलावायरस आमतौर पर मनुष्यों को नहीं होता है। यह आमतौर शूकरों में पाया जाता है। हालांकि इसके कुछ विरले मामले मनुष्यों में भी देखने को मिले हैं।
पश्चिम अफ्रीका में सबसे ज्यादा मामले।
एबोला पश्चिम अफ्रीका में सबसे व्यापक रूप में फैला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गिनी, सियरा, लाइबेरिया और लियोन के देशों में 10 अक्टूबर 2014 को एबोला वायरस के 8376 मामलों की सूचना मिली थी। बाद में नाइजीरिया, सेनेगल, स्पेन और संयुक्त राज्य अमेरिका देशों में अतिरिक्त 24 मामलों की सूचना मिली। वहीं कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में इसके 71 मामले सामने आए।
गिनी, लाइबेरिया और सिएरा लियोन के लिए यात्रा न करने की चेतावनी जारी की गई है।
जैसा कि एबोला का प्रकोप इन वेस्ट अफ्रीका के क्षेत्रों में सबसे तीव्र है, "दी यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन" ने इन देशों के लिए अनावश्यक यात्रा के खिलाफ सूचना जारी की है।
एबोला के एक आरएनए (ribonucleic acid) वायरस के संक्रमण से होता है।
यह महामारी आरएनए (Ribonucleic एसिड) वायरस का परिणाम है। जो चमगादड़, गोरिल्ला और चिम्पांजी आदि जंगली जानवरों को संक्रमित होता है। ऐसा माना जाता है कि किसी संक्रमित जानवर के खून या शरीर के तरल पदार्थ के संपर्क में आने से यह संक्रामक रोग होता है।
एबोला के लक्षण वायरल संक्रमण के लक्षणों के समान होते हैं।
एबोला के प्रारंभिक लक्षणों में बुखार, सिर दर्द, शरीर में दर्द, खांसी, पेट दर्द, उल्टी और दस्त शामिल होते हैं। एबोला रक्तस्रावी बुखार की ऊष्मायन अवधि 2 से 21 दिनों तक हो सकती है। इ सकके प्रारंभिक लक्षणों में अचानक बुखार, ठंड लगना तथा मांसपेशियों में दर्द भी शामिल हो सकते हैं। वहीं इन लक्षणों के शुरू होने के बाद लगभग पांचवें दिन त्वचा पर लाल चकत्ते भी दिखाई दे सकते हैं। इसके लक्षण तेजी से गंभीर होते जाते हैं और पीलिया, तेजी से वजन घटना, मानसिक भ्रम, सदमा, तथा मल्टी ऑर्गन फेल्योर के कारण भी बन सकते हैं। डॉक्टरों का मानना है कि एबोला वायरस पीड़ित को पहले तेज बुखार आता है, साथ ही उसे हड्डियों में दर्द, डायरिया व उल्टी आदि की समस्या होती है।
एबोला के लिए क्या रखें सावधानी।
डब्यूएचओ की एक वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टर ईज़ाबेल न्यूटाल के अनुसार यदि मरीज का रक्त, पसीना या उल्टी होने के जरिए निकला पदार्थ किसी अन्य व्यक्ति के सम्पर्क में आता है तो उससे एबोला वायरस फैलने का खतरा रहता है। उन्होंने इस बात का खास ध्यान दिलाते हुए बताया कि एबोला वायरस के मरीज से ये संक्रमण तभी दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है जब मरीज़ को बुखार आ रहा हो या उसे दस्त या उल्टियां हो रही हों।
एबोला के बाद के चरणों में रक्तश्राव आम है।
एबोला के बाद प्रारंभिक लक्षण के कुछ ही दिनों के भीतर इसके बड़े लक्षण दिखाई देने लगते हैं। जैसा की इसके बाद के लक्षणों में आंतरिक और बाहरी रकितश्राव होता है, रोगी की आंखें लाल हो जाती हैं तथा उसे खून की उल्टी या खूनी दस्त शुरू हो जाते हैं।
एबोला में अक्सर मौत हो जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार पश्चिम अफ्रीका में एबोला वायरस संक्रमण के मामलों में से करीब आधे लोगों की मौत हुई है। वर्तमान सूचना के अनुसार इस प्रकोप से 8,400 मामलों में से 4033 लोगों की मृत्यु हो गई है। तो यदि मोटा-मोटा देखा जाए तो एबोला वायरस से संक्रमित प्रति 5 व्यक्तियों में से 4 की मौत हो जाती है।
अभी तक एबोला को रोकने के लिए कोई वैक्सिनेशन मौजूद नहीं है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, एबोला से लड़ने की वैक्सीन के विकास में अभी तक यह केवल जानवरों पर किए अध्ययन में संक्रमण को रोकने में प्रभावी रहा है। इसलिए अभी तक तो केवल इस वायरस के प्रति सचेत रह कर व इससे संबंधित जानकारी प्राप्त कर ही इससे खुद को व अपने प्रियजनों को बचाया जा सकता है।
Image courtesy: dailymail.co.uk