अधिक समय तक रहने वाला डायबिटीज़ (मधुमेह) शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करता है और यह प्रभावित अंग आपकी आंखें भी हो सकती हैं। जैसा की आप जानते हैं डायबिटीज़ रक्त वाहिकाओं की दीवार को प्रभावित करता है, जिससे रेटिना(जिसपर छवि बनती है) तक आक्सीजन ले जाने वाली नाडि़यां कमज़ोर हो जाती हैं।
डायबिटीज़ के मरीज़ों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती, तो वह डायबिटिक रेटिनोपैथी के शिकार हो सकते हैं। इस समस्या् का पता तब चलता है जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।
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विश्व सवास्थ्य संगठन के अनुसार अंधेपन का एक प्रमुख कारण है ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’।
रेटीनोपैथी के शुरूआती लक्षण:
• चश्मे का नम्बकर बार-बार बदलना
• सफेद मोतियाबिंद या काला मोतियाबिंद
• आंखों का बार-बार संक्रमित होना
• सुबह उठने के बाद कम दिखाई देना
• रेटिना से खून आना
• सरदर्द रहना या एकाएक आंखों की रोशनी कम हो जाना
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सामान्य व्याक्ति की तुलना में डायबिटीज़1 और डायबिटीज़2 के मरीज़ों में मोतियाबिंद होने की अधिक संभावना रहती है।
सुरक्षा के उपाय :
• समय-समय पर आंखों की जांच करायें, यह जांच बच्चों में भी आवश्य क है।
• रक्त। में कालेस्ट्राल और शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखें।
• अगर आपको आखों में दर्द, अंधेरा छाने जैसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत चिकित्सक से मिलें।
• डायबिटीज़ के मरीज़ को साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच करानी चाहिए।
• डायबिटीज़ होने के दस साल बाद हर तीन महीने पर आंखों की जांच करायें।
• गर्भवति महिला अगर डायबिटिक है तो इस विषय में चिकित्सीक से बात करे।
डायबिटीज़ जितने लम्बे समय तक रहता है, डायबिटिक रेटिनोपैथी की सम्भातवना भी उतनी ही बढ़ जाती है। हालांकि लेज़र तकनीक से इलाज के बाद अंधेपन की संभावना 60 प्रतिशत तक कम हो जाती है। लेकिन आपका जागरूक रहना और सावधानी के उपाय अपनाना आवश्यमक है।
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