
मधुमेह (डायबिटीज) वह स्थिति है, जब रक्त में ग्लूकोज (शुगर) की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। ग्लूकोज शरीर का मुख्य ऊर्जा स्रोत है, लेकिन जब रक्त शर्करा(ब्लड शुगर) लंबी अवधि तक ज्यादा रहे, तो यह दोनों किडनियों को नुकसान पहुंचा सकती है।
क्या है डायबिटिक नेफ्रोपैथी
किडनी में अत्यंत सूक्ष्म रक्त वाहिकाएंहोती हैं। ये खून को साफ करने का काम करती हैं, लेकिन डायबिटीज में अधिक शुगर इन रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाती हैं और धीरे-धीरे व्यक्ति की किडनी काम करना बंद कर देती है। डायबिटीज से ग्रस्त लगभग 30 प्रतिशत लोगों को किडनी की बीमारी (डायबिटिक नेफ्रोपैथी) हो जाती है। किडनी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है हमारे शरीर में नमक और पानी के संतुलन को बनाए रखना। शरीर में पानी और नमक की मात्रा को नियंत्रित करके दोनों किडनियां ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखती हैं। डायबिडीज, हाई ब्लड प्रेशर और उच्च कोलेस्ट्रॉल ब्लड प्रेशर को अनियंत्रित कर सकता है।
ध्यान दें
आम तौर पर किडनी को नुकसान पहुंचने के लक्षण कुछ मामलों में प्रकट हो सकते हैं और कुछ में नहीं। वास्तव में इस बीमारी के लक्षण नजर आने के पांच से दस साल पहले से ही किडनी को क्षति पहुंचनी शुरू हो जाती है।
डायबिटिक नेफ्रोपैथी के कारण हैं...
- एक लंबी अवधि के लिए रक्त-शर्करा (ब्लड शुगर) के स्तर का बढ़ा हुआ होना।
- अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होना। धूम्रपान करना।
- हाई ब्लड प्रेशर नेफ्रोपैथीकी समस्या का प्रमुख कारण है।
- डायबिटीज से संबंधित दूसरी समस्या होना। जैसे डायबिटिक रेटिनोपैथी या डायबिटिक न्यूरोपैथी।
- डायबिटिक नेफ्रोपेथी का कोई पारिवारिक इतिहास।
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परीक्षण
डायबिटीज से ग्रस्त रोगी नेफ्रोपैथी की अवस्था से बच सकते हैं, बशर्ते सही समय पर उनकी जांच करवाई जाए। किडनी की क्षति का शुरू में पता लगाने की प्रक्रिया सरल और दर्दरहित है। डायबिटीज का पता लगने के बाद इसकी जांच हर साल करानी चाहिए। डॉक्टर पेशाब परीक्षण करवाते हैं। यदि इस परीक्षण के बाद पता चले कि पेशाब में एल्ब्यूमिन (प्रोटीन) की मात्रा विसर्जित हो रही है, तो यह समझा जाता है कि नेफ्रोपैथी की समस्या उत्पन्न हो रही है।
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ऐसे करें बचाव
- डायबिटीज वालों को रक्त-शर्करा को नियंत्रित रखने पर ध्यान देना चाहिए। इस संदर्भ में डॉक्टर से परामर्श करें।
- ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित रखें। डॉक्टर से सलाह लें। ब्लड प्रेशर को 120/80 के आसपास रखें।
- भोजन में सैचुरेटेड फैट जैसे घी, मक्खन, चिकनाईयुक्त तैलीय खाद्य पदार्थों का कम सेवन करें।
- खाली पेट सामान्य तौर पर रक्त शर्करा का स्तर 80 एमजी/डीएल से 120 एमजी/डीएल होना चाहिए। इसी तरह भोजन के 2 घंटे बाद का स्तर 180 से कम।
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