
हरेक आत्महत्या की अपनी परिस्थितियां और कारण होते हैं। इस आंकलन में केवल डिप्रेशन या तनाव के शिकार महिला पुरुष ही नहीं बल्कि बच्चे भी शामिल हैं।
बच्चों से लेकर कामकाजी पुरुषों व पेशेवर युवाओं के बीच ऑनलाइन गेमिंग ने अपनी पकड़ जमा ली है। 'पबजी', 'पोकेमॉन गो', 'ब्लू व्हेल' जैसे ऑनलाइन गेमों ने न सिर्फ लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है बल्कि कुछ लोगों ने इन गेमों के चक्कर में अपनी जिंदगियां खोई है। देश ही नहीं ब्लकि विदेशों में भी ऑनलाइन गेमिंग का नशा हर किसी की जुबान पर सिर चढ़कर बोल रहा है। इन गेमों ने न सिर्फ बच्चों बल्कि व्यस्कों को भी खासा प्रभावित किया है। लोगों की जिंदगियां लीलने के बाद भी लोगों में इन गेमों का नशा अलग तरीके का है और इसकी दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है। लोग भले ही इनके दुष्परिणामों से वाकिफ हो लेकिन इनकी लत छोड़ने से भी नहीं छूटती। आलम ये है कि इन गेमों में व्यक्ति इस कदर खो जाता है कि इनके टास्क को पूरा करते-करते वे अपनी जान तक गंवा बैठता है। यहां जान गंवाने से मतलब आत्महत्या करने से है।
श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के साइकेट्रिस्ट कंसलटेंट डॉ. अमित गर्ग का कहना है कि आत्महत्या के विषय में किसी एक नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए। हरेक आत्महत्या की अपनी परिस्थितियां और कारण होते हैं। इस आंकलन में केवल डिप्रेशन या तनाव के शिकार महिला पुरुष ही नहीं बल्कि बच्चे भी शामिल हैं। भावनात्मक स्तर पर व्यक्ति की समस्याएं बढ़ना तो आम हैं ही लेकिन साथ ही हाल ही में बच्चों में प्रचलित 'ब्लू व्हेल' गेम जैसा भी उदाहरण है जो उनको मानसिक रूप से कुंद कर देता है और आत्महत्या का कदम उठवा देता है। ऐसे में अपने और अपने आस पास के लोगों और बच्चों के व्यवहार पर नज़र रखें, उनपर बेवजह की महत्वाकांक्षाएं न थोपें। किसी भी स्थिति में मनोचिकित्सक के पास जाने में न हिचकें।
बच्चों को इन हरकतों पर हमेशा रखना चाहिए ध्यान
- किसी कारणवश घोर निराशा के घेरे में दिखे।
- कोई सबसे महत्त्वपूर्ण बार बार सेल्फ हार्म या मृत्यु के ही बारे में बात करे।
- अचानक गुमसुम रहने लगे या अपने मूल स्वभाव के वपरीत व्यव्हार करने लगे।
- बच्चों में इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर ऐसे में तुरंत एक अच्छे मित्र या साथी, सहकर्मी आदि होने के नाते तुरंत उस व्यक्ति को मनोचिकित्सक के पास लेकर जाएं और उनका हौंसला बढ़ाएं।
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क्या होती है गेमिंग एडिक्शन
किसी भी चीज के जरूरत से अधिक इस्तेमाल और उसके बिना अधूरा सा महसूस होने लगे तो इसे किसी चीज की लत लगना कहते हैं। शराब, चाय-कॉफी की लत की तरह लोगों, विशेषकर बच्चों में ऑनलाइन गेमों की लत लग गई है। सुबह आंख खुलने से लेकर रात को सोते वक्त बच्चों का फोन या फिर लैपटॉप की चपेट में रहना इस बात का संकेत है कि आपको ये लत लग चुकी है। कई लोग इस दुनिया में इतना खो जाते हैं कि वे बसों, स्टैंड, स्कूलों, पार्कों में सब कुछ भूलकर गेम में लगे रहते हैं। अगर इस स्थिति पर जल्द ही अंकुश न लगाया जाए तो यह बेहद तनावपूर्ण साबित हो सकता है।
ऑनलाइन गेमिंग से होने वाले नुकसान
- किसी भी चीज की लत किसी भी व्यक्ति के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। ऑनलाइन गेमिंग की लत व्यक्ति को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर बीमार बना देती है और लोगों को निम्नलिखित नुकसान पहुंचाती है।
- दिन-रात किसी गेम के लेवल्स को पार करने की सनक से व्यक्ति की एक्रागता में कमी आती है। स्टूडेंट्स, नौकरीपेशा लोग या हाउसवाइव्स, इन गेम की लत का शिकार होने वाले लोगों का मन किसी दूसरे काम में नहीं लग पाता है।
- लगातार गेम खेलने से लोगों को नींद से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं। उन्हें कभी देर से नींद आती है तो कभी रात भर गेम खेलते रहते हैं।
- लगातार गेमिंग के संपर्क में रहने से व्यक्ति अपने आसपास के लोगों से कटने लगता है। कुछ लोग फोटो एडिटिंग एप्स व फिल्टर्स के सहारे सेल्फी लेने में व्यस्त रहते हैं, जो भी एक प्रकार की लत है। ऐसे लोग समाज से कट जाते हैं और खुद में ही व्यस्त रहते हैं।
- ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण अधिकतर लोग, खासकर बच्चों में बहुत चिड़चिड़ापन दिखाई देने लगता है। वे ऑनलाइन गेमिंग में कई बार इतना खो जाते हैं कि खाना-पीना तक छोड़ देते हैं और इन सबके कारण वे पढ़ाई भी ढंग से नहीं कर पाते।
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कई डॉक्टर्स का मानना है कि व्यक्ति की मानसिक समस्याओं में आत्महत्या एक बहुत ही दुखद चरण है, जिसपर अन्य सभी सास्याओं से अलग वृहत स्तर पर विश्लेषित किये जाने की आवश्यकता है।
आंकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया की महिलाओं की सालाना आत्महत्या दर में भारत का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा है, वहीँ पुरुषों की आत्महत्या का तकरीबन एक चौथाई हिस्सा है। साथ ही आत्महत्या की दर 1990 के बाद से बहुत ही तेज़ी से बढ़ी है।
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