अल्जाइमर मेंटल हेल्थ से जुड़ी एक गंभीर समस्या है, जिसमें लोगों की मेमोरी पावर कमजोर होने के साथ ही सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। आमतौर पर यह समस्या 60 वर्ष के बाद होती है। हर साल 21 सितंबर को वर्ल्ड अल्जइमर डे मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे का मकसद लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना होता है।
क्या है अल्जाइमर?
दरअसल, अल्जाइमर मेंटल हेल्थ से जुड़ा एक रोग है, जिसमें लोगों के दिमाग पर प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में कई बार चलने, फिरने में समस्या होने के साथ ही चीजें भूलने की भी आदत हो जाती है। अल्जाइमर या डिमेंशिया होने पर व्यक्ति सुस्त, थका हुआ और कंफ्यूज्ड रहने लगता है। अल्जाइमर होने पर मरीज को खाने की इच्छा कम होने के साथ ही वजन भी अचानक घटने लगता है।
अल्जाइमर डे का इतिहास
अल्जाइमर डिजीज इंटरनेश्नल (ADI) द्वारा पहली बार साल 1994 में अल्जाइमर को स्थापित किया गया था। दरअसल एडीआई एक संस्था है, जो अल्जाइमर से पीड़ित लोगों के गाइड करने के लिए साल 1984 में बनाई गई थी। दरअसल, अल्जाइमर के लक्षणों को पहली बार पहचानने वाले जर्मन फीजिशियन डॉ. एलोइस अल्जाइमर के Dr. Alois Alzheimer के जन्म दिवस 21 सितंबर को अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है। इसके बाद से हर साल 21 सितंबर को अल्जाइमर दिवस मनाया जाने लगा।
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अल्जाइमर डे का महत्तव
हर साल वर्ल्ड अल्जाइमर डे मनाए जाने के पीछे का महत्व लोगों को के बीच अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूक करना है। इस दिन जगह-जगह पर कॉन्फ्रेंस करने और कैंप लगाकर लोगों को इस बीमारी से बचने और इसे मैनेज करने के तरीकों के बारे में बताया जाता है। इस दिन अल्जाइमर के रोगियों और उनके परिवारों को बुलाकर अल्जाइमर से होने वाली जीत का जश्न मनाया जाता है। ऐसे में लोगों को मेंटल हेल्थ बेहतर रखने के साथ ही इस बीमारी के होने पर खुद को सक्रिय रखने की टिप्स शेयर की जाती हैं।
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अल्जाइमर डे 2023 की थीम
अल्जाइमर डे 2023 की थीम " नेवर टू अर्ली नेवर टू लेट" यानि कभी भी बहुत जल्दी नहीं और कभी लेट नहीं। इस थीम से अल्जाइमर के रोगियों को ये समझना चाहिए कि इस बीमारी के लक्षण दिखने पर कभी भी देर करने के बजाय बीमारी को डाइग्रोस कराएं और चिकित्सक की सलाह लें।