क्या मौसम बदलने पर आपको होता है दुख और झल्लाहट? कहीं आप इस 'मेंटल डिसऑर्डर' के शिकार तो नहीं

आमतौर पर मौसम बदलते ही हमारे जीवनचर्या में भी बदलाव आ जाता है। ऐसे में अक्सर लोग दुखी या अवसाद से पीड़ित होने की शिकायत करते हैं। पर अगर यह हर साल किसी खास मौसम में आपको बार बार हो जाता है, तो यह 'सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर' (Seasonal Affective Disorder)के लक्षण हो सकते हैं।
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क्या मौसम बदलने पर आपको होता है दुख और झल्लाहट? कहीं आप इस 'मेंटल डिसऑर्डर' के शिकार तो नहीं

गर्मियों के जाने के बाद और सर्दियों के आने से पहले यूं तो मौसम खुशनुमा हो जाता है। लोगों में एक अजीब सी खुशी होती है। पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें मौसम में बदलाव पसंद नहीं आता। ऐसे लोग किसी भी दो मौसम के बदलाव के बीच परेशान नजर आते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि वह परेशान क्यों हो रहे हैं। कुछ लोग इसे 'मूड स्विंग्स' का नाम देते हैं, तो कुछ इसे अतीत में हुई खराब चीजों की याद से जोड़ते हैं। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल ऐसे लोग सैड यानी कि 'सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर' से पीड़ित हो सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो सितंबर से लेकर दिसंबर के बीच चलने वाले इस ऑटम सी़जन के दौरान लोगों के मानसिक तनाव में अचानक से वृद्धि हो जाती है।

सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर के कारण (Causes of Seasonal Affective Disorder)

शरीर में सेरोटोनिन की कमी

ऑटम सीजन में होने वाले सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर का एक बड़ा कारण सूरज की रौशनी में कमी है, जिससे कि शरीर में सेरोटोनिन का स्तर गिरता है। दरअसल इस मौसम में दिन छोटे और रात बड़ी होनी लगती है। ऐसे में स्वाभाविक है कि सूरज की रौशनी हमें कम ही मिलेगी। इसी कारण शरीर में सेरोटोनिन की कमी हो जाती है। दूसरी तरफ सेरोटोनिन ही एक मुख्य होर्मोन है, जो हमारे मूड, भूख और नींद के पैटर्न को प्रभावित करता है। और फिर इससे आए बदलाव से हम बेवजह ही परेशान होते हैं और इसके अन्य कारण ढूंढने लगते हैं।

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मेलाटोनिन की वृद्धि बढ़ाती है उदासी

मेलाटोनिन जो नींद और उदासी का सबसे बड़ा कारण होता है, यह ऑटम सीजन में बढ़ जाता है। लोग ऐसे में एकदम से अकेला महसूस करने लगते हैं और अचानक ही उदास हो जाते हैं। लड़ियां ऐसे में अक्सर रोने लगती हैं, जबकि यह एक तरीके से होर्मोनल विकार है।

वि़टामिन- डी की कमी

विटामिन -डी में कमी होना या घर के बाहर कम निकलना आदि एक बड़े अवसाद का कारण बन सकता है। इससे आप दुखी महसूस कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि आप बाहर निकलें, धूप लें और कमरे नें भी पर्याप्त लाइटिंग की व्यवस्था रखें।

एक और साल के खत्म होने का अफसोस

ऑटम सीजन (पतझड़) के आगमन का मतलब है कि लगभग एक साल के तीन-चौथाई हिस्से का खत्म होना। ऐसे में लोग इससे दुखी हो जाते हैं। उन्हें लगने लगता है कि साल खत्म हो गया और उनके बहुत से काम रह गए हैं। इस फीलिंग को कोई भी समझा नहीं पाता क्योंकि यह पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक है। सबके अपने अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और प्रोफेशनल कारण हो सकते हैं। ऐसे में किसी भी काम के रह जाने का अपसोस न करें। आगे के लिए नए तरीके से चीजों को प्लान करें और सोचें कि जो हो गया, अच्छा था व आगे भी अच्छा रहेगा।

दिन और रात के पैटर्न में बदलाव

ऑटम सीजन के शुरू होने के बाद दिन छोटे और रात बड़ी होने लगती हैं। दिन और रात के बीच हो रहे इस बदलाव में लोग अक्सर संतुलन बना नहीं पाते। संतुलन में गड़बड़ी आ जाने से हमारे मन पर इसका प्रभाव पड़ता है। हम बेवजह ही चिड़चिड़ा जाते हैं। ऐसे में जरूरी है अपने रूटीन में बदलाव करना और उसे एक नये तरीके से बनाना। फिर धीरे धीरे उसमें ढल जाना।

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सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर के लक्षण (Symptoms of Seasonal Affective Disorder)

  •  मूड में बदलाव 
  •  बेवजह की चिंता
  •  रह रह कर उदास हो जाना या अवसाद का महसूस करना
  •  चिड़चिड़ापन और सुस्ती
  •  नींद और थकान का ज्यादा महसूस करना
  •  रोजमर्रा के कामों में रुचि कम होना

सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर से बचने के उपाय( Ways to get rid of Seasonal Affective Disorder)

  • एक छोटा सा ब्रेक लें और फैमिली या दोस्तों के साथ घुमने जाएं।
  • बदलते हुए मौलम के कारण अपने डेली रूटीन को फिर से प्लान करें।
  • एक नई और ताजगी भरी शुरुआत करें।
  • हर दिल शाम और सुबह थोड़ा बाहर निकलें।
  • व्याम या योग को अपनाएं।
  • पॉजिटिव रहने के लिए अपने आस पास हमेशा हरियाली और पर्याप्त लाइटिंग रखें।

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