मानव शरीर में रेस्पिरेटरी सिस्टम यानी कि श्वसन तंत्र में नाक, गले, ग्लोटिस, विंड पाइप से शुरू होता है और ये ब्रोंकोइलस से फेफड़ों तक एल्वियोली से भरा होता है। एल्वियोली, जो अंगूर के आकार का होता है। इसमेंसूजन, या रुकावट आने के कारण ही किसा को भी श्वसन यानी सांस से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। वहीं दिल, मस्तिष्क या बुखार की कुछ अन्य चिकित्सा समस्याएं भी श्वसन संकट को ट्रिगर कर सकती हैं। बच्चों का बात करें, तो ये परेशानी उनमें और गंभीर हो जाती है। जब आप एक बच्चे को तेजी से सांस लेते हुए देखते हैं और इसे करने में उसे कोई भी परेशानी हो तो समझ जाए कि उसे श्वसन संबंधी कोई परेशानी है। अगर साँस लेना छाती में, रिब पिंजरे में या ऊपरी पेट या गर्दन में, बिना थकान या पसीने के साथ जुड़ी विभिन्न प्रकार की श्रव्य सांस की आवाजों के साथ है तो ये और गंभीर रूप में है। वहीं मां-बाप के लिए इसे पहचानना मुश्किल हो जाता है। इसलिए आइए जानते हैं कि माता-पिता को कैसे पता चलेगा कि उनके बच्चों को क्या समस्या है।
सर्दियों में बच्चों में होने वाली सांस से जुड़ी परेशानी को कैसे पहचानें?
हमारे शरीर की कोशिकाओं को जीवित रहने के लिए और सांस द्वारा रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। यह सामान्य रूप से एक सामान्य स्वस्थ बच्चे में पूरे दिन अनजाने में डायाफ्राम के उपयोग के साथ होता है। लेकिन किसी भी चिकित्सा रोगों के कारण, अगर पर्याप्त ऑक्सीजन का उपयोग कोशिकाओं तक नहीं होता है, तो उपयोग में वृद्धि या आपूर्ति में कमी के कारण ये फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड को निकालने में सक्षम नहीं होते हैं। यह रक्त पीएच स्तर कर देता है। यह तेजी से सांस लेने, गहरी रैस्पिंग के माध्यम से प्रतिबिंबित होता है, कभी-कभी पीछे हटने, नाक बहने और श्रव्य शोर की आवाज़ के साथ आती है। अगर आपके बच्चों में इस तरह की कोई भी परेशानी दिखे तो समय पर इलाज करवा लें, नहीं तो ये गंभीर सांस की तकलीफ का रूप भी ले सकती है।
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बच्चों में सांस की तकलीफ से जुड़ी समस्याएं क्या हैं?
- निमोनिया
- फेफड़े की खराबी
- अस्थमा
- ब्रोंकाइटिस
- फेफड़ों के फोड़े
- श्वसन प्रणाली में कोई भी परेशानी
- गंभीर लैरींगाइटिस
- पेरिटोनसिलर फोड़ा आदि
किस आयु वर्ग में अतिसंवेदनशील होते हैं?
संक्रामक रोगों के कारण श्वसन संबंधी संक्रमण के साथ-साथ सामान्य बीमारी का भी हिस्सा हो सकता है। रेस्पिरेटरी सिस्टम के किसी भी ऑर्गन में संक्रमण होना इसे और संवेदनशीलता से बना सकता है।वहीं बच्चे 3 से 6 वर्ष की आयु के हैं तो उनमें ये और पेचीदा हो जाता है। ऐसे में समय रहते टीकाकरण कर लिया जाए, तो बच्चों को टीके से बचाव योग्य बीमारियों से बचाया जा सकता है। साथ ही बड़े बच्चों की तुलना में छोटे बच्चों की संख्या कम ही होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि तब तक उनका इमिन्यूटी बिल्ट हो चुका होता है। साथ ही जरूरत इस बात की है कि आप सर्दियों में अपने बच्चों का थोड़ा ज्यादा ख्याल रखें। वहीं अगर आप अपने बच्चे को तेज गति से सांस लेते हुए देखते हैं, , तो आपको डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। वहीं ये भी समझ लें कि सांस की तकलीफ का कोई घरेलू उपचार नहीं हैं।
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ऐसे में बच्चों के लिए क्या किया जा सकता है?
श्वसन संकट के कारण बच्चों को गंभीर परेशानियां देखने को मिल सकती हैं। ऐसे में बच्चे का एक्स-रे, ब्लड टेस्ट और स्कैन द्वारा श्वसन संकट का कारण खोजने के लिए जांच करवाएं। फिर उपचार इन्हीं कारणों पर निर्भर करता है। श्वसन संकट से पीड़ित रोगियों में से कई को न केवल अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, बल्कि बाल चिकित्सा आईसीयू और कभी-कभी वेंटिलेटर केयर में भी निगरानी की जाती है। अगर रोग तेजी से और गंभीर रूप से विकसित होता है तो ऐसे में मां-बाप तुरंत बच्चे को लेकर अस्पताल जाना चाहिए।
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