भारत में मानसिक रोगियों की संख्या में दिनों-दिन इजाफा हो रहा है। इंटरनेशनल जर्नल आफ सोशल साइकियाट्री द्वारा 2023 में प्रकाशित की गई रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर चार में से एक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं में चिंता, तनाव, डिप्रेशन और एंजाइटी शामिल हैं। वहीं, यूनिसेफ 2021 की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में सिर्फ युवाओं और बुजुर्गों में ही नहीं, बल्कि बच्चों में भी मानसिक समस्याओं का खतरा कई गुणा बढ़ गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में 14 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे अवसाद की गिरफ्त में हैं। गौर करने वाली बात यह है कि आधुनिक भारत में आज भी मानसिक बीमारियों को पागलपन, दिमागी दौरा और भूत-प्रेस बेतुकी बातों से जोड़कर देखा जाता है। लगातार बढ़ रही मानसिक समस्याओं के समाधान के लिए इसके प्रति जागरूकता लाना बहुत जरूरी है। जो लोग मानसिक समस्याओं को लेकर जागरूक हैं, उन्हें इस बात को समझने में परेशानी होती है कि आखिरकार उन्हें अपनी समस्या लेकर मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए या फिर मनोवैज्ञानिक के पास? अगर आप भी इस बात को लेकर कंफ्यूजन में हैं कि आपको कब मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए और कब मनोवैज्ञानिक के पास तो इसका जवाब आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक में क्या अंतर है?
मनोवैज्ञानिकों में मनोचिकित्सक के मुकाबले मनुष्य के दिमाग और मनुष्य के बर्ताव की ज्यादा गहरी समझ होती है। मनोवैज्ञानिक बनने के दो तरीके होते हैं, साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन करने के बाद आप या तो psyD यानी डॉक्टर ऑफ साइकोलॉजी या फिर Ph.D. यानी डॉक्टर ऑफ फिलोसोफी करते हैं। मनोवैज्ञानिक साइकोलॉजी की थ्योरी, विकासात्मक मनोविज्ञान और ह्यूमन साइकोलॉजी की जानकारी रखते हैं। वहीं दूसरी ओर, मनोचिकित्सक मेडिकल कॉलेज के बाद MD करते हैं। इसके बाद चार साल का रेसीडेंसी प्रोग्राम होता है और उसके बाद आप मनोचिकित्सक बनते हैं। मनोचिकित्सा में साइकोपैथी और मानसिक स्वास्थ्य की जानकारी होती है।
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सबसे बड़ा अंतर दोनों की मूल्यांकन की तकनीक और इलाज के तरीके में होता है। दोनों ही अपने मरीज की मनोस्थिति को क्लीनिकल इंटरव्यू और टेस्टिंग के द्वारा ही समझते हैं। साइकोथेरेपी, जो एक मनोवैज्ञानिक करता है, उसमें व्यक्ति की भावनात्मक समस्याओं का निवारण होता है। इसके लिए मनोवैज्ञानिक अपनी ह्यूमन बेहवियर की समझ का प्रयोग करते हैं। साइकोथेरेपी के दौरान आप मनोवैज्ञानिक से बात करते हुए खुद को समझ पाती हैं, जिससे आपके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार खुद-ब-खुद होता है। मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सक दोनों के परीक्षण के तरीके में फर्क होता है।
ठीक इससे उलट, मनोचिकित्सक मानसिक रोगों का इलाज करते हैं। ऐसे रोग जो न्यूरोलॉजिकल सिस्टम में होते हैं। इसके लिये वे दवा का उपयोग करते हैं। मानसिक समस्या जैसे अवसाद, एंग्जायटी या तनाव का इलाज दवाओं के माध्यम से जल्दी हो सकता है। और इन दवा के लिए आपको मनोचिकित्सक की जरूरत पड़ेगी। ऐसा कहना ठीक होगा कि दोनों के काम करने का तरीका अलग है, लेकिन अंततः दोनों ही आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करते हैं।
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