World Heart Day 2020: हार्ट के किन मरीजों को पड़ती है हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी की जरूरत?

World Heart Day 2020: कार्डियक सर्जन से जानें दिल के मरीजों  में हार्ट फेल्योर के शुरुआती लक्षण, कब पड़ती है हार्ट ट्रांसप्लांट करने की जरूरत और कैसे किया जाता है ऑपरेशन?
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World Heart Day 2020: हार्ट के किन मरीजों को पड़ती है हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी की जरूरत?

World Heart Day 2020: हृदय का मुख्य काम रक्त को पंप कर के पूरे शरीर तक पहुंचाना है, जिससे किसी भी अंग में ऑक्सीजन की कमी न हो। लेकिन जब दिल अपना काम ठीक से करना बंद कर दे तो इसे हार्ट फेलियर कहते हैं। आमतौर पर ऐसा तब होता है जब दिल ऑक्सीजन को फेफड़ों से निकालने या पंप करने में सक्षम नहीं रहता है। रक्त दिल से पंप होकर फेफड़ों और शरीर के अन्य हिस्सों में जमा होता रहता है। यही वजह कि कई बार आपको सांस की समस्या के साथ हाथों और पैरों में सूजन की शिकायत होती है। हार्ट फेल्योर क्या होता है, मरीज को कब पड़ती है हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत और कैसे किया जाता है हार्ट ट्रांसप्लांट, इन सब सवालों के जवाब दे रहे हैं मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली के हार्ट ट्रांसप्लान्ट व वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइसेस के डायरेक्टर और प्रसिद्ध कार्डियक सर्जन डॉक्टर केवल कृष्ण

डॉ. कृष्ण के अनुसार हार्ट फेलियर वाले कुछ लोगों का हृदय सामान्य आकार से बड़ा हो जाता है जिसे एक्स-रे की मदद से आसानी से देखा जा सकता है। चूंकि, कमज़ोर हृदय रक्त को पूरे शरीर तक पहुंचाने में असमर्थ हो जाता है इसलिए दिल की मांसपेशियों में खिचाव आने लगता है। इस खिंचाव के कारण धीरे-धीरे हृदय बड़ा और कमज़ोर होने लगता है। यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है जिसके लिए मरीज को तत्काल मेडिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ सकती है। शुरुआती जांच और मेडिकेशन मरीज को बिना किसी अन्य इलाज के ठीक करने में सहायक हो सकता है।

heart transpant surgery

लेकिन यदि मेडिकेशन से मरीज की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है तो इसे अंतिम चरण का हार्ट फेलियर कहा जाता है। निदान और सटीक उपचार के लिए अनुभवी हृदय रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना आवश्यक है।

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हार्ट फेलियर को कैसे पहचानें?

शुरुआती लक्षण बढ़ती उम्र या अन्य बीमारियों के समान होने हैं जिसके कारण बिना निदान के बीमारी की सही पहचान संभव नहीं है। हार्ट फेलियर जितना गंभीर होता जाएगा इसके लक्षण मरीज को उतना अधिक परेशान करने लगेगें। निम्नलिखित समस्याएं हार्ट फेलियर का संकेत देते हैं:

  • सांस लेने में परेशानी: यदि कुछ ही सीढ़ियां चढ़ने पर आपकी सांस फूलने लगती है या बैठे होने पर भी सांस लेने में परेशानी होती है तो यह हार्ट फेलियर का संकेत हो सकता है।
  • सोने में परेशानी: सांस की कमी के कारण व्यक्ति रात को ठीक से नहीं सो पाता है। सोते वक्त करवट लेने में परेशानी या आधी रात को सांस फूलने के कारण नींद टूटना भी हार्ट फेलियर का संकेत है।
  • खांसी: सोते समय सूखी खांसी और लेटते समय गुलाबी रंग का बलगम आना।
  • थकान: हार्ट फेलियर का मरीज हमेशा थका हुआ महसूस करता है।
  • सूजन: चूंकि हृदय शरीर तक रक्त पहुंचाने में असमर्थ हो जाता है इसलिए शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन आ जाती है।
  • भूख की कमी: हार्ट फेलियर की एडवांस स्टेज में मरीज को भूख का एहसास होना बंद हो जाता है।
  • जल्दी-जल्दी पेशाब आना: आधी रात में बार-बार पेशाब लगना।
  • हार्ट पैल्पिटेशन: दिल तेज़ी से धड़कने लगता है। पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप करने के चक्कर में दिल तेज़ गति में धड़कने लगता है।

इन समस्याओं में पड़ती है ट्रांसप्लान्टेशन की जरूरत पड़ती है

कोरोनरी हार्ट डिजीज़: कोरोनरी हार्ट डीजीज़, जिसे आमतौर पर कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ भी कहा जाता है, कोरोनरी धमनियों का पतला या ब्लॉक होना है। ये धमनियां हृदय की मांसपेशियों तक रक्त पहुंचाने का काम करती हैं। यह बीमारी तब होती है जब धमनियां कड़ी व पतली हो जाती हैं। जब धमनियों की अंदरूनी दीवारों पर एक परत चढ़ने लगती है तो धमनियां सिकुड़ने या कड़ी होने लगती हैं। इस परत को एथेरोस्क्लेरोसिस के नाम से जाना जाता है। जैसे-जैसे यह परत मोटी होती जाती है, धमनियों के अंदर का रिक्त स्थान भी छोटा होता जाता है जिसके कारण रक्त प्रवाह के लिए जगह कम पड़ जाती है। अंतत: दिल की मांसपेशियों तक रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। चूंकि रक्त में जरूरी मात्रा में ऑक्सीजन मौजूद होती है इसलिए रक्त प्रवाह कम होने के कारण दिल की मांशपेशियों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। हार्ट ट्रांसप्लान्ट तब किया जाता है जब दिल पूरी तरह फेल हो जाता है और किसी भी अन्य तरीके से ठीक नहीं किया जा सकता है।

कंजेस्टिव हार्ट फेलियर (सीएचएफ): हार्ट फेलियर के अंतिम चरण में दिल की मांसपेशियां शरीर में खून पंप करने में लगभग पूरी तरह असमर्थ हो जाती हैं। इस चरण में अन्य कोई भी उपचार मदद नहीं कर सकता है। हार्ट फेलियर को कंजेस्टिव हार्ट फेलियर या सीएचएफ भी कहा जाता है। यह स्थिति तब होती है जब दिल पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप करना बंद कर देता है। हार्ट फेलियर की पहचान होने का यह मतलब नहीं है कि दिल धड़कना बंद कर देगा। फेलियर का यह मतलब है कि कमज़ोरी के कारण दिल की मांसपेशियां खून को सामान्य रूप से पंप करने और शरीर तक पहुंचाने में असमर्थ हो चुकी हैं।

कार्डियोमायोपैथी: हार्ट अटैक के कारण होने वाली दिल की बीमारियों के विपरीत, जहां रक्त प्रवाह में समस्या आ जाती है, कार्डियोमायोपैथी दिल की मांसपेशियों की बीमारी है। कार्डियोमायोपैथी के कई मामलों में कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ और हार्ट वॉल्व डिजीज़ शामिल हो सकती है। कार्डियोमायोपैथी तीन प्रकार से हो सकती है- डायलेटेड, हाइपरट्रॉफिक और प्रतिबंधात्मक, जो दिल की रक्त पंप करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं।

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हार्ट फेलियर का वर्गीकरण

वर्गीकरण हृदय रोग की पुरानी और प्रगतिशील प्रकृति को समझने में और सीधे उपचार हस्तक्षेप में मदद करता है।

पहला चरण: कोरोनरी आर्टरी डिजीज़, उच्च रक्तचाप और डायबिटीज मेलिटल आदि जैसी बीमारियों के कारण मरीज में हार्ट फेलियर का खतरा बढ़ जाता है।

दूसरा चरण: रोगियों को संरचनात्मक हृदय रोग और लेफ्ट वेंट्रिकुलर सिस्टोलिक डिस्फंक्शन होता है लेकिन आराम के दौरान इसके कोई लक्षण नहीं नज़र आते हैं।

तीसरा चरण: मरीजों को सिस्टोलिक डिस्फंक्शन होने के साथ हार्ट फेलियर के लक्षण नज़र आने लगते हैं या पहले कभी नज़र आए हों।

चौथा चरण: मरीज में लक्षण गंभीर हो जाते हैं जहां मेडिकल थेरेपी के बाद भी सांस फूलना और आराम के बाद भी थकान महसूस होना आदि शामिल है। इस स्टेज को हार्ट फेलियर का अंतिम चरण माना जाता है।

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हार्ट ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया के दौरान क्या होता है?

हार्ट ट्रांसप्लान्ट प्रक्रिया में 3 ऑपरेशन शामिल हैं। पहले ऑपरेशन में डोनर का दिल निकाला जाता है। डोनर आमतौर पर वह होता है जिसके मस्तिष्क में घातक चोट लगी हो जिससे कारण उसका शरीर तो जिंदा रहता है लेकिन उसका मस्तिष्क पूरी तरह मर चुका होता है और इलाज योग्य नहीं रह जाता है।  

दूसरे ऑपरेशन में मरीज के खराब हृदय को निकाल दिया जाता है। हृदय को निकालना आसान भी हो सकता है और बहुत मुश्किल भी। यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज पहले कभी हार्ट सर्जरी करा चुका है या नहीं। यदि पहले भी सर्जरी हो चुकी है तो हृदय को निकालना मुश्किल हो जाता है।

तीसरे ऑपरेशन बाकियों की तुलना में सबसे आसान होता है, जहा केवल 5 लाइनों के टांके लगाए जाते हैं। ये टांके दिल में प्रवेश करती और बाहर निकलती बड़ी रक्त वाहिकाओं को जोड़ने का काम करते हैं। सर्जरी में कोई समस्या नहीं होने पर मरीज सर्जरी के एक हफ्ते के अंदर घर वापस जा सकता है। यह ट्रांसप्लान्ट केवल डोनर के परिवार की दया और मदद से ही संभव हो पाता है।

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