
कोरोनावायरस (COVID-19), जो चीन के वुहान शहर (Wuhan city of China) में उत्पन्न हुआ था। COVID-19 ने अब तक 100 से अधिक देशों को शिकार बना चुका है। जहां लाखों लोग कोरोनावायरस की चपेट में है। अगर, भारत की बात करें, तो यहां कोरोनावायरस के अब तक 73 मामले सामने आए हैं। हालांकि, अच्छी बात यह है कि अभी तक भारत में कोरोनावायरस से एक भी मौत नहीं हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकारें सभी महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं। जबकि, कोरोनावायरस (Coronavirus) के प्रसार को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसे महामारी घोषित कर दिया है, साथ ही इसका सामना करने की सलाह और सावधानियों के बारे में बताया है।
कोरोनोवायरस के प्रकोप के बाद से ही डब्ल्यूएचओ के अलावा हेल्थ एक्सपर्ट और अन्य स्वास्थ्य संगठन साबुन और पानी से हाथ धोने की सलाह दे रहे हैं। लेकिन, हाल ही में एक बहस सामने आई है, जो यह बताती है कि क्या साबुन और पानी प्रभावी है या वायरस को दूर रखने के लिए सैनिटाइटर सही है? यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ वेल्स के प्रोफेसर पॉल थोरार्डसन बताते हैं कि साबुन किसी सैनिटाइजर से बेहतर कैसे है और कैसे हाथ धोने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है? जैसा कि अध्ययनकर्ताओं द्वारा कहा गया है कि साबुन आसानी से वायरस में मौजूद लिपिड को मिटा सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि साबुन में फैटी एसिड और लवण जैसे तत्व होते हैं जिन्हें एम्फीफाइल कहा जाता है। साबुन में छिपे ये तत्व वायरस की बाहरी परत को बेअसर कर देते हैं।
साबुन कैसे काम करता है?
कम से कम 20 सेकंड तक हाथ धोना यह सुनिश्चित करता है कि आपके हाथों के बैक्टीरिया और वायरस खत्म हो गए हैं। हाथ धोने के बाद सूखापन यह बताता है कि साबुन गंदगी, बैक्टीरिया और वायरस को मारने के लिए त्वचा की सबसे निचली परत तक कैसे जाता है।
अध्ययन यह भी बताता है कि साबुन और पानी से सैनिटाइजर क्यों कम प्रभावी है। जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार, जेल, तरल या क्रीम के रूप में सैनिटाइज़र कोरोनोवायरस से लड़ने में साबुन के रूप में अच्छा नहीं है। कोरोनोवायरस से निपटने में केवल वही सैनिटाइजर सक्षम होंगे जिनमें अल्कोहल होता है।
वर्तमान परिदृष्य और कुछ नए अध्ययन
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में कोरोनावायरस अधिक आम है, कोरोनोवायरस से मरने वाले ज्यादातर वृद्ध इस बात का सबूत हैं। साबुन व पानी और सैनिटाइटर्स के बीच अंतर को समझने में मदद करने के लिए, डिस्कवरी एलीमेंट्री स्कूल की रॉबर्टसन ने एक रोमांचक विज्ञान प्रयोग किया, जिसमें बच्चों को ताजे ब्रेड को छूने के लिए कहा गया था। इसके अंतर्गत सबसे पहले बच्चों को क्रोमबुक पर काम करने वाले बच्चे को ब्रेड छूने के लिए कहा गया, जिसका रंग बिल्कुल काला हो गया। इसके बाद गंदे हाथों से और हैंड सैनिटाइजर से हाथ धोने के बाद बच्चे ने ब्रेड को छुआ, दोनों ही स्थितियों में ब्रेड का कलर बदल गया है। यहां आपको बता दें कि सबसे कम प्रभाव साबुन व पानी से हाथ धोने के बाद दिखा, जिसमें ब्रेड का रंग अनटच्ड (बिना टच किया हुआ) ब्रेड के रंग से काफी कम अंतर था। यानी साबुन व पानी से हाथ धोने के बाद टच किया गया ब्रेड काफी कम संक्रमित था।
ये वायरल फेसबुक पोस्ट सोशल मीडिया पर घूम रहा है, जिसमें रॉबर्टसन ने हर बच्चे को हाथ धोने का महत्व समझाया। यह प्रयोग फ्लू के मौसम की शुरुआत में किया गया था और परिणाम आने में कम से कम 3-4 सप्ताह का समय लगे थे। प्रयोग के बारे में नीचे विस्तार से पढ़ सकते हैं:
प्रयोग से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें
- छात्रों से कहा गया कि वे ब्रेड के टुकड़ों को छूएं।
- इस प्रयोग में आने वाले ब्रेड सफेद थे।
- छूने के बाद प्रत्येक ब्रेड को ज़िपलॉक बैग में रखा गया था। प्रत्येक ब्रेड एक समान और एक ही दिन बनाए गए थे।
- बच्चों ने पानी से हाथ धोने के बाद, सैनिटाइजर से और क्रोमबुक पर काम करने के बाद एक-एक ब्रेड पीस को छुआ।
- इसके बाद, प्रभाव दिखाने के लिए रोटी के टुकड़ों के लिए 3-4 सप्ताह लग गए। नीचे परिणाम देख सकते हैं:
इन परिणामों को देखने के बाद, प्रोफेसर ने सैनिटाइजर के बजाए सामान्य पानी और साबुन से हाथ धोने के के महत्व पर जोर दिया। हालांकि, अल्कोहल युक्त सैनिटाइजर का प्रयोग वायरस को मारने में सक्षम हैं। अतिरिक्त सावधानियों के साथ साबुन व पानी और सैनिटाइजर का प्रयोग कर सकते हैं।
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