गलत लाइफस्टाइल के कारण बच्चों में आंखों के रोग और आंखों की कमजोरी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आजकल शहरो में रहने वाले बहुत से बच्चों की आंखों में 10 साल की उम्र से पहले ही चश्मा चढ़ जाता है। इसका कारण कुछ तो बच्चों में शुरुआत से ही गलत खान-पान की आदतें हैं और कुछ लाइफस्टाइल की गलतियां हैं। बच्चों में कुछ आदतों को बार-बार देखकर इस बात का पहले की अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी आंखें कमजोर हो रही हैं। आइए आपको बताते हैं क्या हैं वो आदतें।
नाजुक होती हैं बच्चों की आंखें
आंखे शरीर के सबसे नाजुक अंगों में से एक हैं। उस पर बच्चों की आंखें वयस्कों से भी ज्यादा नाजुक होती हैं क्योंकि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनके आंखों में कुछ जरूरी महीन टिशूज का निर्माण होता रहता है। इसलिए बचपन में आंखों की खास देखभाल की आवश्यकता होती है। लेकिन कई बार गलत आदतों के कारण बच्चों को आंखों से संबंधित समस्याएं होना शुरु हो जाती हैं और हम ध्यान नहीं देते हैं जैसे- बच्चे बार-बार आंखों पर हाथ लगाते हैं जिसकी वजह से आंखों में संक्रमण की आंशका बढ़ जाती है। कभी-कभी यह संक्रमण बढ़ते बच्चों की आंखो के लिए काफी हानिकारक भी साबित हो सकते हैं। इसलिए इससे बचाव व समस्या का तुरंत उपचार जरूरी होता है।
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ज्यादातर बच्चों को निकट दृष्टि दोष
बच्चों में दृष्टि दोष के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। खासतौर पर निकट दृष्टिदोष, जिसमें दूर की वस्तुएं साफ दिखाई नहीं देती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इन समस्याओं से बचाव के लिये बच्चों में आंखों की नियमित जांच जरूरी है, साथ ही पढ़ने का सही तरीका, प्राकृतिक रोशनी और स्क्रीन पर कम समय बिताना जरूरी है।
बच्चों में ये लक्षण हैं आंखों की समस्या का संकेत
- एक आंख का घूमना या किसी और दिशा में देखना।
- बच्चों की आंख बार-बार झपकना, टीवी देखते वक्त या फिर किताब पढ़ते समय आंख मसलते रहना।
- सही न देख पाना या हाथ से वस्तुओं का बार-बार गिर जाना आदि पर।
- चीजों को बहुत नज़दीक लाकर देखना या चीज़ को देखने के लिए सिर को बहुत अधिक झुकाना।
- बिना कारण सिरदर्द, आंखों में पानी आना या एक वस्तु का दो-दो दिखाई देना।
- फोटो में आंखों में सफेद निशान नज़र आना।
कब जरूरी है बच्चों के आंखों की जांच
आमतौर पर अगर बच्चा किसी अच्छे हॉस्पिटल में पैदा हुआ है, तो जन्म के समय ही डॉक्टर उसके आंखों की जांच करते हैं। लेकिन फिर भी आपको समय-समय पर बच्चों के आंखों की जांच करवाते रहना चाहिए।
- 3-4 साल की उम्र में जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करे, तब करवाएं आंखों की जांच
- 5 साल की उम्र में एक बार फिर जरूरी है आंखों की जांच
- अगर बच्चे की नजर ठीक है, फिर भी हर 2 साल में बच्चों की आंखों की जांच जरूरी है।
- अगर बच्चे की नजर कमजोर है, तो 14 साल की उम्र तक हर 6 महीने में जरूरी है आंखों की जांच
- अगर बच्चे को पहले ही चश्म लग चुका है या वो लेंस लगाता है, तो हर 2 महीने में आंखों की जांच करवानी चाहिए।
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कैसे रखें बच्चों की आंखों को सुरक्षित
- प्राकृतिक रोशनी में समय बिताएं।
- टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल और वीडियो गेम्स का कम से कम इस्तेमाल करें।
- आंख और किताब/स्क्रीन के बीच सही दूरी (कम से कम 30 सेमी. की दूरी) का हमेशा ध्यान रखें।
- ठीक रोशनी में काम करें।
- किताब, टेबलेट या फोन आदि पर लेटे हुए देर तक गेम्स न खेलें।
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