बच्चों में व्यस्कों के मुकाबले प्रतिरक्षा क्षमता (इम्यूनिटी पावर) कम होती है इसलिए आमतौर पर बच्चे किसी बीमारी का शिकार वयस्कों की अपेक्षा जल्दी होते हैं। बीमारी चाहे कोई भी हो व्यस्कों में बच्चों के मुकाबले हर बीमारी को सहने, उसे झेलने और लड़ने की क्षमता अधिक होती है। मलेरिया एक प्रकार का संक्रमण है जो मच्छरों द्वारा फैलता है। बारिश के बाद और सर्दियों से पहले इस बीमारी की आशंका काफी बढ़ जाती है। मलेरिया वायरस से ग्रस्त मच्छर के काटने पर बच्चे इस बीमारी का शिकार जल्दी हो जाते हैं। लक्षणों को पहचानकर सही समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए, तो मलेरिया को आसानी से ठीक किया जा सकता है। मगर यदि इलाज में लापरवाही बरती गई, तो मलेरिया जानलेवा भी हो सकता है। हम आपको बता रहे हैं बच्चों में मलेरिया होने पर इसे कैसे पहचानें।
बच्चों में मलेरिया- शुरुआती लक्षण
- डेंगू और चिकनगुनिया की तरह ही मलेरिया भी मच्छर के काटने से होता है। बच्चों में मलेरिया काफी संख्या में होता है। यह अधिक गर्मी के कारण होता है।
- मलेरिया से संक्रमित होने के प्रारंभिक दौर में बच्चे चिड़चिड़े, मूडी, उदंडी हो जाते हैं और उन्हें भूख भी कम लगती है और ठीक तरह से नींद न आने की भी शिकायत करते हैं। ये सभी लक्षण यदि बच्चे में पाए जाते हैं तो यह समझना चाहिए कि बच्चे के शरीर में मलेरिया वायरस फैल रहा है।
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बच्चों में मलेरिया लक्षण की दूसरी स्टेज
- प्रारंभिक दौर के बाद जब बच्चा मलेरिया के सभी लक्षणों का अनुभव कर लेता है तो बच्चों को अक्सर ठंड लगने लगती है जिससे वह बुखार का शिकार हो जाता है। बुखार के दौरान बच्चे तेजी से सांस लेने लगते है। बुखार में ही एक या दो दिन तक शरीर उच्च तापमान में रहता है। कुछेक मामलों में बुखार अचानक से 105 डिग्री या उससे भी अधिक तक चला जाता है और जब बुखार उतरता है तो शरीर का तापमान तेजी से सामान्य होने लगता है और बच्चा पसीने से तर जाता है।
- जब यही लक्षण (पसीना, बुखार, ठंड लगना) दो या तीन दिन में बार-बार होने लगते है तो मलेरिया का संक्रमण तेजी से बच्चे, के शरीर में फैलता है।
बच्चों में मलेरिया लक्षण का तीसरी स्टेज
- बच्चों में अन्य सामान्य मलेरिया के लक्षण जैसे मतली, सिर दर्द और विशेषकर पेठ और पीठ दर्द भी होता है। बच्चों में बढ़ते हुए मलेरिया के अन्य वही लक्षण पाए जाते हैं जो एक व्यस्क के मलेरिया के होने से होते हैं।
- मलेरिया वायरस से बच्चों के ब्रेन और किडनी पर भी प्रभाव पड़ता है। ब्रेन पर प्रभाव पड़ने से बच्चे की चेतना पर खासा प्रभाव पड़ता है। किडनी पर असर होने से बच्चे के मूत्र का एक असामान्य राशि का उत्पादन कम हो सकता है।
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